Tuesday, January 28, 2014

मीडिया, राहुल और मोदी

सोशल नेटवर्किंग साइट्स अखबारों के स्थानीय संस्करणों में टीवी चैनलटाइम्स नाउपर टेलिकास्ट हुए राहुल गांधी के इंटरव्यू की चर्चा है। राहुल को देखने-समझने के अपने पूर्वाग्रही चश्मे से जितना पढ़ा-देखा है, उसमें इस साक्षात्कार से एक समझ तो यह बरामद हुई कि अपरिपक्वता भी मन की निर्मलता और मलिनता के प्रदर्शन का एक जरीया बनती है। बालिग होने की जद्दोजेहद में लगे राहुल नरेन्द्र मोदी की तरह शातिर नहीं हैं वहीं मोदी के शातिराना तरीकों में चतुराई का अभाव सतत लक्षित होता देख-समझ सकते हैं। कहा जा सकता है कि बात राहुल गांधी के इंटरव्यू से शुरू हुई, इसमें मोदी कहां से गये। ऐसा ही कुछ नजारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी देखा जा रहा है, कई पोस्टों में राहुल और मोदी की तुलना की जा रही है।
राहुल से पूछे गये प्रश्नों में 1984 के सिख विरोधी बवाल पर प्रश् जरूरी था जो पूछा भी गया। राहुल के जवाब में सचाई थी पर परिपक्वता का अभाव था। राहुल ने यह तो स्वीकार किया कि उक्त फसाद में शामिल दंगाइयों में कुछ कांग्रेसी भी रहे लेकिन उन्होंने सिख संहार के लिए माफी मांगने से यह कह कर इनकार कर दिया कि उन दंगों में वह व्यक्तिगत तौर पर शामिल नहीं थे। राहुल के जवाब की मासूमियत वैसी ही थी जैसी दंगों के समय उनकी उम्र (14) अन्यथा उन्हें आत्म-विश्वास से यह स्वीकार करना था कि चूंकि उन दंगों में कुछ कांग्रेसी भी शामिल थे और फिलहाल उस पार्टी की बागडोर लगभग उनके पास है, सो, इसी नाते उस बलवे को लेकर वे शर्मिंदा हैं। ...लेकिन हो सकता है उन्हें तैयार करके भेजने वालों को यह उकता ही नहीं कि ऐसा प्रश् भी सकता है, भाड़े की परिपक्वता इतनी ही काम करती है। कांग्रेस और कांग्रेसियों ने अपनी समझ का समय रहते परिपक्व उपयोग नहीं किया तो फिर वोटर ही मालिक है। वो अपनी समझ, जरूरत और प्रलोभन से जिसे भी वोट कास्ट कर देगा उसे स्वीकारने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होगा।
लगभग चौवालीस की इस उम्र में राहुल प्रश्नों से रू-बरू होने तो लगे हैं पर तेरह साल से मुख्यमंत्री पद कीजिम्मेदारीसम्हाल रहे और प्रधानमंत्री होने को मुंह धोए-तैयार नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय मीडिया में एक से अधिक बारएक्सपोजहोने के बाद कैमरे से केवल मुंह चुराने लगे बल्किपत्रकारजैसे जीव से कतराने भी लगे हैं। वह कई प्रश्नों पर प्रतिक्रिया असहज होकर देते यह भूल जाते हैं कि उनके इस तरह से खिसियाने और कैमरे से पलायन करते हुए को भी चैनल-विशेष के दर्शक देखेंगे ही।
राहुल के प्रोम्पटरों ने राहुल से 1984 और 2002 के दंगों पर जो उत्तर दिलवाया वह चतुराईपूर्ण और एक हद तक सटीक भी है। राहुल ने जवाब में कहा कि 2002 में गुजरात सरकार ने दंगे भड़काने का काम किया और 1984 में कांग्रेस ने दंगा रोकने का। 2002 के दंगों के सन्दर्भ पर मोदी का असहज होनाचोर के मन के चानणेजैसा ही है। अब जब मोदी देश के प्रधानमंत्री होेने की पूरी कवायद में लगे हैं और संप्रग सरकार से जनता की ऊब औरआम आदमी पार्टीके देशीय स्तर पर विकल्प हो सकने की अक्षमता के चलते फिलहाल खुद के लिए हरी दिखती उम्मीदों के बीच मोदी को यह पलटा खा लेना चाहिए! मोदी 2002 के गुजरात दंगों के लिए माफी मांग लेते हैं तो एक और जहां वे राष्ट्रधर्म निभाने की ग्लानि से मुक्त हो जाएंगे वरन् ऐसे आत्मविश्वास को भी हासिल कर लेंगे जिसकी जरूरत उन्हें अपनी उत्कट आकांक्षा (प्रधानमंत्री होने) पूर्ति करने में है।

28 जनवरी, 2014

1 comment:

maitreyee said...

बहुत अच्छा!!