Friday, January 3, 2014

कोटगेट और सांखला फाटक

शहर की बड़ी समस्या कोटगेट और सांखला रेलवे फाटकों का बार-बार बन्द होना और बन्द होने पर सर्वाधिक व्यस्त सड़कों पर जाम लगना है। रियासती शासक गंगासिंह ने बीकानेर को रेल सेवाओं से जुड़वाया था। लेकिन लोक में चतुर छवि के गंगासिंह को बीकानेर स्टेशन से लालगढ़ स्टेशन को जोड़ने वाली लाइन को ऐन कोटगेट के आगे से होकर गुजारने की क्या सूझी जबकि दोनों स्टेशनों के बीच की यह वर्तमान की लाइन लगभग अर्धचन्द्राकार बनाते जाती हैै। यदि इसे तब सीधा बनाया जाता तो जूनागढ़ के पिछवाड़े से होते हुए अमरसिंहपुरा होकर लालगढ़ स्टेशन पहुंचती। ऐसे में इसकी केवल लम्बाई कम होती बल्कि इन इलाकों की बसावट तब के बराबर थी, सो बनाते वक्त भविष्य की संभावनाओं का ध्यान आसानी से रखा जा सकता था। कोटगेट के पास से रेलवे लाइन को गुजारने के लोक में दो तरह के तर्क दिये जाते हैं। एक तो यह कि इसे शहर के पास से इसलिए गुजारना था कि शहर के लोग इसे देखें और गंगासिंह को सराहें और दूसरा यह कि यह लाइन जूनागढ़ के ऐन निकट और लालगढ़ पैलेस के ज्यादा नजदीक हो जाती जिससे रात को गुजरने वाली गाड़ियों की सीटी और आवाज से शासक परिवारों की रात की नींद में खलल होता। लोक की बात है उसे यहीं छोड़ते हैं, वे तो और भी क्या कुछ कहते हैं!
रेल फाटकों की समस्या पर कल शहर में फिर उद्वेलन हुआ। मौके पर बीकानेर (पश्चिम) के विधायक गोपाल जोशी भी पहुंचे और मण्डल रेल प्रबन्धक मंजू गुप्ता भी। इस समस्या को लेकर गोपाल जोशी का सुर कल पहली बार सकारात्मक लगा। उन्होंने बाइपास की बात कर ऐलिवेटेड रोड की बात की, जो कि इस समस्या का एकमात्र आदर्श समाधान है। वहीं व्यापारियों की चौधर झाले निजी स्वार्थों के वशीभूत कुछ लोग हमेशा की तरह फिर इकट्ठा होकर बाइपास का राग आलापने लगे। दरअसल यही वे लोग हैं जो इस समस्या को बनाये रखना चाहते हैं और दिखावा समाधान का करते हैं।
विनायक लगातार इस समस्या पर लिखता रहा है जिन्हें आज फिर उद्धृत करना जरूरी समझता है।
शहर की बड़ी समस्या कोटगेट के पास स्थित दो रेलवे फाटकों में से एक के नीचे अंडर ब्रिज के लिए प्रक्रिया फिर शुरू हो गई है।
इस प्रक्रिया में हमें यह भी ध्यान करना चाहिए कि शहर के अन्दरूनी हिस्से की बारिश का लगभग एक चौथाई पानी इसी फाटक से होकर गुजरता है। थोड़ी सी बारिश से ही कोटगेट क्षेत्र में 4-6 इंच पानी की चादर चलने लगती है। अंडर ब्रिज बनने के बाद पानी निकासी की मुकम्मल व्यवस्था के लिए वल्लभ गार्डन तक लगभग 3 किलोमीटर की पाइप लाइन डालनी होगी। क्या उसे हमेशा मेंटेन रखा जा सकेगा? सूरसागर में बारिश का पानी जाये इस हेतु बनी बाइपास पाइप लाइन थोड़ी ज्यादा बारिश होने पर ही विफल साबित हो जाती है।
अलावा इसके कोटगेट का तल तो पहले ही फाटक से ऊँचा है तो दूसरी ओर फड़ बाजार चौराहा नजदीक है--इस स्थिति में क्या अण्डर ब्रिज की सड़क की ढलान ट्रैफिक इंजीनियरिंग के मानक के हिसाब से रह पायेगी। रानी बाजार रेल ओवरब्रिज की ढलान भी मानक से कम है जिसका खमियाजा आये दिन भुगतना होता है।
इसके समाधान के लिए तीन वर्ष पूर्व बनी एलीवेटेड रोड योजना पर समझदारी और उदारतापूर्वक पुन: विचार किया जाना चाहिए। यह शार्दूलसिंह सर्किल से लेकर राजीव गांधी मार्ग तक बननी थी। आमजन का इसके प्रति सकारात्मक रुख होने के बावजूद, जहां से इस एलीवेटेड रोड को गुजरना था वहॉं के व्यापारियों के विरोध के चलते इस योजना को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।
अगर एलीवेटेड रोड बनती तो जिन्हें महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड पर खरीददारी का या अन्य कोई काम होता वही लोग ही नीचे से गुजरते। अन्य वे जिन्हें शहर के अन्दरूनी हिस्से में या स्टेशन की ओर या इसकी विपरीत दिशा में जाना होता वे ही एलीवेटेड रोड से गुजरते।
इस स्थिति में वे ग्राहक जो इन बाजारों की भीड़-भाड़ के चलते यहां आने में संकोच करते हैं, वे सभी ग्राहक एलीवेटेड रोड बन जाने के बाद बेहिचक इन बाजारों में खरीददारी करने सकते हैं। उन्हें एलीवेटेड रोड के नीचे व्यवस्थित पार्किंग की सुविधा भी मिलती। इस स्थिति में यह बाजार ग्राहकी से ज्यादा आबाद होते।
विनायक 26 अगस्त 2011
हां, पाठकों को यह तो जानकारी होगी ही कि रेलवे तो इस बाइपास के लिए एक पैसा भी लगाने को तैयार नहीं है और यह भी कि शहर के बीच से गुजरने वाली रेल लाइन को रेलवे नहीं हटायेगी। बीकानेर से गुजरने वाली सवारी गाड़ियां शहर से ही गुजरेंगी। रेलवे इन दोनों ही शर्तों पर टस से मस भी नहीं है। इस स्थिति में रेलवे बाइपास के बाद भी शहर की यह बड़ी समस्या बनी रहेगी। क्योंकि अधिकतर मालगाड़ियां तो अभी भी शहर से रात को ही गुजरती हैं। और सवारी गाड़ियों को बाइपास से गुजारने पर उनके समय में लगभग पैंतालीस मिनट की बढ़ोतरी होगी। जो लम्बी दूरी की गाड़ियों के लिए रेलवे उचित नहीं मानता।
विनायक 2 सितम्बर 2011
उक्त दोनों उद्धरणों से काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है।
मण्डल रेल प्रबन्धक ने कल एक सकारात्मक बात और भी कही। उन्होंने इन फाटकों को चौड़ा करने की जुगत तलाशने का भरोसा दिलाया है। विनायक ने  27 अप्रैल 2013 के अपने सम्पादकीय में दिए रेलवे सम्बन्धी सुझावों में इसका जिक्र किया था। जिसे आज पुन: उद्धृत कर रहे हैं।
कोटगेट सांखला फाटक पर जब तक अण्डरब्रिज और एलिवेटेड रोड की योजना परवान चढ़े तब तक सांखला फाटक की चौड़ाई डबल की जा सकती है। इस फाटक को डबल बेरियर लगा कर कोयला गली स्थित तुलसी प्याऊ तक बढ़ाया जा सकता है। रेलवे क्रॉसिंगों पर इस तरह के डबल बेरियर देश में कई जगह देखे गये हैं। यदि ऐसा होता है तो फाटक खुलने पर अभी की तरह आधे-आधे घण्टे के जाम नहीं लगेंगे। यह काम मण्डल रेल प्रबन्धक स्तर पर अंजाम दिए जाने का इसलिए भी है कि इसमेंमैन पावरतो बढ़ना नहीं है अन्यथा रेलवे बोर्ड से इजाजत लेना भारी हो सकता है। क्योंकि एक ही द्वारपाल दोनों बेरियर को संचालित कर सकता है।
विनायक  27 अप्रैल 2013


03 जनवरी, 2014

1 comment:

maitreyee said...

Bahut Acha....very knowledgeable...