Saturday, January 25, 2014

सरकारी, राजनीतिक और निजी क्षेत्र की मिलीभगत

अंगरेजी के एक कार्टून में बालक अपने पिता से पूछता है कि वह संगठित अपराध को पेशे के रूप में अपनाने पर विचार कर सकता है क्या? कार्टूनिस्ट ने पिता से प्रतिप्रश् करवायासरकारी या निजी क्षेत्र।यानी पिता उसके विचार से सहमत तो है पर वह जानना चाह रहा है कि उसकी रुचि सरकारी क्षेत्र के संगठित अपराधों में है या निजी क्षेत्र के। कार्टूनिस्ट की सीमाएं होती है कि उसे कम से कम रेखाओं शब्दों में सटीक संदेश सम्प्रेषित करना है। अन्यथा पिता से वह तीसरा विकल्पराजनीतिक क्षेत्र के संगठित अपराधोंका दिलवाता। आइडियलिस्ट का यह कार्टून मित्र अफलातून ने आज फेसबुक पर रेखांकित किया है।
सरकारी लवाजमे, कॉरपोरेट क्षेत्र और राजनीति करने वालों की जुगलबंदी को कार्टून कला में दर्शाने का यह अच्छा उदाहरण है। सार्वजनिक जीवन में थोड़ी भी रुचि रखने वाले को इन तीनों संगठित समूहों की सांठ-गांठ की वाकफियत रहती है और पूछने पर बानगी देने से भी नहीं चूकेंगे!
वसुंधरा सरकार को राजपाट सम्हाले एक महीना भी नहीं हुआ होगा कि पिछली कांग्रेस सरकार के फैसले पलटने की फेहरिस्त बननी केवल शुरू हो गई बल्कि उस पर अमल भी किया जाने लगा है। गहलोत सरकार ने पर्यावरण सम्बन्धी एक अच्छा फैसला लिया कि वनों में पेड़ काटने-छांगने पर पचीस हजार रुपये का जुर्माना लगेगा जिसे नई मुख्यमंत्री ने आदिवासियों को राहत देने की आड़ में वन-माफियाओं को कृतार्थ करने के लिए जुर्माने की राशि धड़ाम से नीचे गिरा कर पांच सौ रुपये कर दी। पत्रकार मित्र ओम थानवी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है--‘जुर्माने का प्रावधान रोकथाम के लिए कायम किया जाने वाला भय होता है, अपराध की कीमत नहीं
गहलोत सरकार के आखिरी दो सालों मेंराजस्थान माध्यमिक शिक्षा अभियानके बजट से दो चरणों में पुस्तकालयी पुस्तकों की करोड़ों रुपये की खरीद की प्रक्रिया बहुत चतुराई से सम्पन्न करवाने की जुगत बिठाई गई। नौकरशाही ने पहले वर्ष तो नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के प्रकाशकों को कुछ आदेश देकर चेहरे को बचाने के उपाय किये और कोथली में गुड़ फोड़ लिया, लेकिन पिछले वर्ष नवम्बर के उत्तरार्द्ध और दिसम्बर के पूर्वार्द्ध में जब चुनाव से सरकारों के बनने-बिगड़ने का काल चल रहा था तब उक्त अभियान के कारिन्दों ने मौके का फायदे उठाते हुए एनबीटी जैसे अच्छी पुस्तकों के प्रकाशकों को भी दरकिनारकहते हैंइसलिए कर दिया गया क्योंकि उनसेरिटर्न गिफ्टभी हासिल नहीं होता है। विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के साथ-साथ वसुन्धरा राजे के शपथ ग्रहण से पहले लगभग पन्द्रह-सोलह करोड़ के आदेश बांट भी दिए। सरकार को इस करतूत की भनक तुरत लग गई और एकबारगी उन आदेशों पर स्थगन रख दिया।
अब जब वसुन्धरा सरकार रफ्त में गई है तो सुनने में यह रहा है कि मोटा माल पहुंचाने वाले प्रकाशकों के गिरोह और उक्त अभियान सेबहुत कुछ हासिल करने वालेकारिन्दे इस जुगाड़ में हैं कि करोड़ों की इस डील को कुछ और ले-देकर किसी तरह क्यों बचा लिया जाय।
भिन्न-भिन्न तरह के अपराधों को सरकारी, निजी और राजनीति करने वाले संगठित रूप से किस तरह अंजाम देते हैं, उक्त उल्लेखित दो बानगियों से इसे भली-भांति समझ सकते हैं।

25 जनवरी, 2014

No comments: