Tuesday, January 14, 2014

राजस्थान और सचिन पायलट

राजस्थान प्रदेश ने अपने उदार मन के कई उदाहरण दिए हैं। महाराष्ट्र में अकसर दूसरे प्रदेशों से काम-काज के लिए आने वालों का जब तब विरोध होता रहा है। राजस्थान में ऐसे विरोध की छिट-पुट सुगबुगाहट के मुकाबले दूसरे प्रदेशों के लोग केवल यहां आए बल्कि यहीं के होकर रह गये। बहुत से राजस्थानी बाहर जाकर कमा-खाए हैं तो बाहर के बहुत यहां आकर आबाद भी हुए हैं। रही बात मानवीय श्रम के शोषण की तो ऐसी मानवीय बुराई अधिकांश समर्थों में कमोबेश सभी जगह मिलती हैं।
राज की बात करें तो जिस भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेत्री सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध उनके विदेशी होने के नाम पर किया था उसी पार्टी की वसुन्धरा राजे मध्यप्रदेश से ब्याह कर राजस्थान आईं और दूसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं। जिस भारतीय संस्कृति के आधार पर शादी के बाद महिला के पति के घर को ही महिला का घर माना जाता है, भारतीय संस्कृति की ठेकेदारी का दम भरने वाली भाजपा ने सोनिया के मुद्दे पर अतार्किक विरोध किया था। जिन तथाकथित भारतीय संस्कारों की बात भाजपा करती रही है, उन्हीं कसौटियों पर सोनिया गांधी को भारतीय बहू, भारतीय पत्नी और भारतीय मां के रूप में खरा देखा सकता है। इस सबके बावजूद मैली राजनीति के संवाहकों ने फोटोशॉप की गई सोनिया की अश्लील तसवीरों की सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भरमार मचा रखी है।
परदेशी के ऐसे मुद्दों पर आज ध्यान तब गया जब कांग्रेस ने सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी। सचिन पायलट बातचीत में बेहद सुलझे नेता लगते हैं, टीवी कार्यक्रमों में भी उनकी बातचीत समझ-भरी और संजीदा होती है। हालांकि उनकी कुछ सीमाएं भी हैं-वह राजस्थान मूल के नहीं हैं। उत्तर प्रदेश से आए उनके पिता राजेश पायलट ने राजस्थान में सफल व्यावहारिक राजनीति की। आलेख के शुरू में राजस्थानी के उदार मन की बात इसीलिए की है। दूसरा यह कि वह किसी ऐसे बहुसंख्यक या दबदबे वाले समाज से नहीं आते। ऐसे में सचिन अपने वरिष्ठ अशोक गहलोत की तरह माने जा सकते हैं, जो वैसे ही वर्ग से आए और प्रदेश में प्रभावी राजनीति करने में सफल भी हुए। देखा जाय तो सचिन के सामने अशोक गहलोत से ज्यादा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियां हैं और समय कम है। अगले तीन महीनों में लोकसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस अपने नेतृत्व में चल रही केन्द्र की संप्रग सरकार की छवि के चलते प्रदेश में अब तक के सबसे बुरे वक्त में है। ऐसे में सचिन से किसी चमत्कार की आशा करना उनके साथ ज्यादती होगी। इसके बावजूद कांग्रेस के वह वोट प्रतिशत को सुधार लेते हैं तो यह उनकी उपलब्धि ही होगी। उनकी मुख्य प्रतिद्वन्द्वी वसुन्धरा भी ठोकर खाकर लौटी हैं। हो सकता है वह अपनी पिछली लापरवाहियों को दोहराएं नहीं। ऐसे में सचिन का टास्क और भी मुश्किल जान पड़ता है। सचिन चाहें तो नई राजनीति की शुरुआत करके प्रदेश में आगामी पांच वर्षों में कांग्रेस को सचमुच की आमजन की पार्टी बना सकते हैं। लेकिन इसके लिए वर्तमान के उन अधिकांश दिग्गजों और पदाधिकारियों को किनारे करना होगा जो केवल भोगने की मंशा से राजनीति करते हैं अन्यथा भीखा (वसुन्धरा राजे) अपनी दुर्गति बना कर उतरने की बारी ले ले उसी का इन्तजार करना होगा। इस बीच यदिआम आदमी पार्टीप्रदेश में जगह बना लेती है तो सचिन तो क्याजाजमपर बैठना किसी के लिए भी आसान नहीं रहेगा।


14 जनवरी, 2014

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