Thursday, January 9, 2014

नई सरकार की साख और ‘रमसा’ की खरीद

सुनामी, अलनीनो आदि-आदि तूफानों के आने के बाद उससे प्रभावित क्षेत्र कई-कई दिनों तक आशंकित रहते हैं। दिल्ली मेंआम-आदमी पार्टीकी सफलता के बाद ऐसा-सा ही आपदा-मंजर स्थापित राजनीतिक पार्टियों में देखा जा रहा है। यद्यपि उत्तरप्रदेश में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी अपने को इससे बेअसर जाहिर कर रही है और सैफई उत्सव में करोड़ों रुपये खर्च कर उसने अपनी फूहड़ता की पुख्तगी की है। इसी तरह की बेपरवाहियों के चलते ही चुनावों में किसी पार्टी विशेष का सूपड़ा साफ होता है, पर इस भय से मन की ना करें तो खुद की साख भी दावं पर जो लग जाती है। फूहड़ता की यह साख आम आदमी के पैसे से बचे तो फिर कहना ही क्या?
राजस्थान में वसुन्धरा की पिछली सरकार की जो साख थी उससे इस बार उलट उसके चाल-चलन को आम आदमी पार्टी की सफलता से उपजी सावचेती को ही माना जा सकता है। आमजन में राज के एहसास का भरोसा पैदा करने के वास्ते ही राजे ने शपथ ग्रहण के दिन से ही जिला प्रशासनों को मुस्तैद कर दिया और कम से कम शहरी और कस्बाई जन जीवन सुकून-मय बनाने के लिए साफ-सफाई, पानी-बिजली की पुख्ता व्यवस्था सड़कों के किनारे के कीकरों को हटवाना, सड़कों के पेचवर्क और रात में उन्हें रोशन रखने से लेकर उन लौकिक और प्राकृतिक (कीकर हटवाना) दोनों तरह के अतिक्रमणों से मुक्त करने की कार्रवाई ध्यानाकर्षित करती है। मुख्यमंत्री इस बार शुरू से अपनेमहारानीविशेषण को झुठलाने को तत्पर दिख रही हैं। पहले निजी सुरक्षा में कटौती और फिर सड़कों से अतिविशिष्ट की बजाय केवल विशिष्ट के रूप में गुजरने की उनकी कवायद चर्चा का विषय बनी। अब कल उन्होंने सभी जिला कलक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के साथ मीटिंग लेकर प्रशासनिक क्रिया कलापों में सादगी बरतने की हिदायत दी है। लाल बत्ती के होकड़े को उच्चतम न्यायालय ने पहले ही हटवा कर इस सादगी को थोप दिया था।
आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजस्थान मेंआम आदमी पार्टीऐसी ठीक-ठाक दस्तक तो दे ही सकती है जिससे खुद भले ही कुछ हासिल करे लेकिन शहरी क्षेत्रों से प्रभावित सीटों पर प्रभाव रखने वाली भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है। ऐसे में उसे भ्रष्टाचार जैसे उस फैक्टर का विशेष ध्यान रखना जरूरी होगा जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। वित्तीय और प्रक्रिया सम्बन्धी अनियमितताओं का जो मामला सरकार बनते ही सामने आया है, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा अभियान के अन्तर्गत करोड़ों की खरीद में भ्रष्टाचार की बू इसलिए महसूस की जाने लगी कि इस खरीद का सारा गुड़ चुनावी आचार संहिता की कोथली में केवल फोड़ा गया बल्कि आदेश देने में इतनी हड़बड़ी बरती गई कि नई सरकार के शपथ ग्रहण का इन्तजार भी नहीं किया गया। सरकार इस खरीद पर कोई पुख्ता और प्रभावी निर्णय नहीं लेती और हरी झण्डी दिखा देती है तो उसके द्वारा प्रथम ग्रास में मक्षिका ग्रहण करना ही कहलाएगा। यदि ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी को नयी-नवेली और पुरानी दोनों सरकारों के खिलाफ बड़ा मुद्दा मिल जायेगा जिसका खमियाजा आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों को उठाना पड़ेगा।
हो सकता है पूरी खरीद में ऐसी सावचेती बरती गई हो जिससे प्रक्रिया त्रुटिहीन लगे लेकिन लोगों में इस खरीद में अब तक की सबसे बड़ी रिश्वत (40 से 45%) अग्रिम दिए जाने की चर्चा है। इस गूंज से यह खरीद मुक्त नहीं हो सकेगी। राजस्थान में पुस्तकालयी पुस्तकों की विभिन्न सरकारी खरीदों में रिश्वत में दिए जाने वाले प्रतिशत में पिछले तीस वर्षों में तीस प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दांतों तले अंगुलिया दबाने की हद तक पहुंच गई है, जो बड़ी चिन्ता का कारण भी बनती है।

09 जनवरी, 2014

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