Thursday, January 2, 2014

कर्तव्यहीन होते हम!

प्रदेश में नई सरकार आने के बाद से लग रहा है कि शहर का कायाकल्प होने वाला है। शहर की सड़कों के किनारे के कब्जे हटाए जा रहे हैं, सड़क-नालियों को साफ किया जा रहा है, रोड लाइटें दुरुस्त की जा रही हैं, ट्रैफिक पुलिस को मुस्तैद किया गया है। यह सब उसविशेष-अभियानके तहत हो रहा है जिसमें मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने शपथ लेते ही जिलों के प्रशासन को हड़काते हुए निर्देश दिए थे कि लोगों को आभास हो-कि सुराज गया है।
किसी भी अभियान के सीमित दिन होते हैं। उसके बाद सभी कुछ अपने ढर्रे की ओर लौट आता है। ऐसा बरसों से देखते आए हैं। इस जिक्र के मानी ये कतई नहीं है कि ऐसे अभियानों का विरोध हो, ऐसे अभियानों के बहाने ही सही, कुछ जरूरी काम-काज हो ही जाते हैं। विचारणीय यह है कि यह जो कुछ अभियानों के तहत होता है वह सब तीसों दिन क्यों नहीं होता? क्या यह सब शासन और प्रशासन के कर्तव्यों (ड्यूटीज) में नहीं आता।हो नहीं सकतातो इसलिए गले नहीं उतरता क्योंकि वह सब अभियानों में या वीआईपीयों के दौरे से पहले होता ही है! कुल जमा बात यही निकलती है कि निष्ठा नीयत नहीं है, और यह नीयत यदि सरकारी मुलाजिमों की नहीं है तो क्या दोषी केवल वे अकेले हैं। जो आम-आवाम है वह अपनी ड्यूटीज (कर्तव्यनिष्ठा) कितनी पूरी करता है? कर्तव्यहीनताओं की फेहरिस्त बनाने बैठें तो काफी लम्बी होगी।
साफ-सफाई से ही शुरू करें तो, जहां मन हुआ थूकेंगे, खा-पीकर डिस्पोजल फेंकेंगे। घर के झाड़ू-पोछो से निकली गन्दगी को भी नियत स्थान पर नहीं फेंकेंगे। प्लास्टिक-थैलियों और गुटके पर रोक के बावजूद उनका धड़ल्ले से उपयोग करेंगे, जहां मन हुआ और आड़ दिखी किहलकेहोने को तत्पर रहेंगे। कुछ भी हासिल करने को धैर्य नहीं रखेंगे, बिना पंक्ति से गंतव्य तक पहुंचने की जुगाड़ की तलाश में रहेंगे। सड़कों और मोड़ों पर एक-आध मिनट की हड़बड़ी में गलत दिशा से निकलने की कोशिश रहेगी। हेलमेट, बेल्ट को आफत समझेंगे। वस्तु खरीदते वक्त मंशा यही रहेगी कि कर (टैक्स) चुकाना पड़े और वहीं कुछ भी अतिरिक्त या समयपूर्व हासिल करने को ऊपर से कुछ देने मेंमूंजीपणाबिलकुल नहीं दिखाएंगे? ऐसा कोई यदि भी करता हो, होते हैं इतने खरे कुछ तो, लेकिन क्या ऐसों की ड्यूटी में यह नहीं आता कि गलत-सलत करनेवालों को रोकें टोकें। समाज का समर्थ और प्रभावी वर्ग अपने कर्तव्यों से च्युत हो जाए और उम्मीद यह करे कि उनके चुने हुए नेता और इन नेताओं द्वारा नियुक्त अधिकारी-कर्मचारी कर्तव्य-परायणता से अपना काम करेंगे तो ऐसी उम्मीद करना वैसा ही है जैसेखुद गुरुजी बैंगन खाएं-दूसरों को प्रमद (विवेकहीन) बताए इस तरह केविवेकका बटेगा क्या, प्रमाण प्रत्यक्ष है, अधिकांश का अपनी ड्यूटी से कोई लेना-देना नहीं और भुंडाएंगे शासन-प्रशासन को। खुद सुधरेंगे तो व्यवस्था सुधरेगी, समाज निखरेगा। अन्यथा ऐसे ही अभियानों पर अतिरिक्त धन बरबाद करके काम चलाना होगा। यह धन किसी और का नहीं, हम सबका है जिसे सरकारें कब और किस-किस तरह हमसे वसूल लेती हैं, कई बार तो आभास तक नहीं होता। और जो बड़ी परियोजनाएं विकास के नाम पर परवान चढ़ती हैं वह सब विदेशी कर्जे से चढ़ रही हैं। कर्जा चुकाने कोई और नहीं आएगा हमें और हमारी पीढ़ियों को ही चुकाना होगा।

02 जनवरी, 2014

2 comments:

maitreyee said...

This is one of the best articles I have ever read...

mani ram said...

सही है!