Saturday, January 18, 2014

जिसे डूबना हो डूब जाते हैं सफीनों में

चूहों की बेचारगी की एक कथा प्रचलित है जिसमें बिल्ली का उन पर झपटने और खाए जाने से बचने की युक्ति तो उन्हें सूझ गई पर उस युक्ति के अनुसार बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? ऐसी-सी बेचारगी इन दिनों तमाम कांग्रेसियों में देखी जा सकती है, बल्कि इनकी स्थिति तो और भी बदतर है। अपने तईं ये सभी जानते हैं कि 2014 के चुनाव का बेड़ा राहुल गांधी के चलते पार नहीं लगने वाला, बावजूद इसके इस बात की हिम्मत कोई नहीं कर रहा कि कहें कि अन्य किसी विकल्प पर विचार तो कर लें। जैसे सभी प्रणव मुखर्जी के 1984 के सबक को हिए से लगाए बैठे हैं जिसमें आकांक्षा भर से मुखर्जी को पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था।
राहुल को प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित ना करने की रणनीति चाहे किसी कारण हो पर सभी जानते हैं कि बिल्ली के भाग का छींका यदि टूट भी गया तो दही पर लपकने का विशेषाधिकार किसे होगा? पांच में से चार विधानसभाई चुनावों के बाद और आगामी लोकसभा चुनावों से पहले कल दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई जिसमें राहुल गांधी लगभगजंजीरीअमिताभ के रूप में प्रकट हुए। चूंकि राहुल अपने अमित अंकल की तरह अभिनय में पारंगत नहीं हैं सो कल भी और इससे पहले कि विभिन्न आम सभाओं में इस रूप के पूर्वाभ्यासों में वे बनावटी लगे। राहुल को अपने से अभी तक यह समझ नहीं आया है कि कांग्रेस इस गत में पहुंची कैसे और यह भी कि जिन अधिकांश कांग्रेसियों को इसकी समझ है वे या तो चूहों की सी सहमी और भयभीत स्थिति में हैं या जो चतुर हैं वे सभी उस कथा के दरबारी हैं जिसमें राजा को एक चतुर द्वारा सुझाई गईअदृश्य पौशाकपहन कर दरबार में आने पर उन्हें नंगा कहने की हिमाकत कोई दरबारी इसलिए नहीं करता कि रहना इसी रियासत में है सो राजा को नाराज कौन करे।
राहुल की मां और सप्रंग चेयरपरसन सोनिया गांधी भली महिला लगती हैं। उन्हें भी असल स्थिति का भान नहीं है, जितना उन तक पहुंचाया जा रहा वह उसे ही सच मान रही हैं। कांग्रेसी इमारत को दरकने से बचाने की जिन टगों का जिक्र कल राहुल ने उक्त बैठक में किया, लगता नहीं है उनमें से कोई उसे बचाने में कारगर होगी। महंगाई- भ्रष्टाचार कम करने का भरोसा, महिलाओं को पुरुषों के समान भागीदारी, ‘आपपार्टी की तर्ज पर लोगों से पूछ कर उम्मीदवार तय करना और चुनावी घोषणा पत्र बनाना, अनुदानित एलपीजी सिलेंडरों को बढ़ाने जैसे उपायों से ही कुछ होना जाना था तो कम से कम राजस्थान में कांग्रेस इक्कीस के आंकड़े में नहीं सिमटती। दरअसल कांग्रेस नेतृत्व में पिछले दस साल से केन्द्र में चल रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार की साख इस कदर खराब हो चुकी है कि बड़े-बड़े निष्पक्ष विशेषज्ञों को भी इस खराबे से उबरने के उपाय नहीं सूझ रहे हैं। राहुल के सलाहकार प्रतिभाहीन-प्रतिभाशाली जैसे भी हों वे सब सिर्फ और सिर्फ ठकुर सुहाती में लगे हैं और राहुल उस विवेकहीन निर्वस्त्र राजा की मुद्रा में। विडम्बना देखें कि राहुल की ऐसी मुद्रा पर कांग्रेसियों के चेहरों पर हंसी तो दूर मुस्कुराहट की सहज प्रतिक्रिया भी नहीं देखी जा रही है। ऐसे मेंविनायकअसदुल्लाह खांगालिबका स्मरण ही कर सकता है।
मुझे रोकेगा तू नाखुदा गर्क होने से
कि जिसे डूबना हो डूब जाते हैं सफीनों में

18 जनवरी, 2014

1 comment:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

भीतर से खोखले बॉंस हमेशा खोखले ही रहते हैं...