Monday, April 29, 2013

सरबजीत की बात


पड़ोसी पाकिस्तान की लाहौर स्थित कोट लखपत जेल में बन्द भारतीय सरबजीत पर कुछ कैदियों ने मिल कर हमला बोल दिया। खबर है कि हमलावरों का इरादा सरबजीत को खत्म कर देने का था। सरबजीत के सिर सहित जबड़े, पेट और शरीर के अन्य अंगों पर भी गहरी चोटें हैं, खास कर सिर की चोटें ज्यादा गंभीर हैं इसीलिए वह कोमा में भी है। डॉक्टरों का कहना है कि हालात स्थिर हुए बिना ऑपरेशन सम्भव नहीं है।
चीनी घुसपैठ के चलते विदेश मंत्रालय पहले ही दबाव में है और यह दुर्घटना और हो गई। सरबजीत की रिहाई का मसला उसकी बहिन दलबीर और पाकिस्तान के मानवाधिकारवादियों की सक्रियता के चलते काफी अरसे से चर्चा में रहा है। सरबजीत पर आरोप है कि वह 1990 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुए बम धमाकों के लिए जिम्मेदार है। इस हमले में चौदह जनों की मौत हो गई थी। अदालतों ने फांसी की सजाई सुनाई और बरकरार रखी है। वहीं सरबजीत के परिजनों का कहना है कि वह भटक कर पाकिस्तानी सीमा में चला गया था। गिरफ्तार होने के बाद उसे बम धमाकों के लिए बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
नामों के भ्रम के चलते कुछ माह पहले यह सूचना गई थी कि सरबजीत को रिहा किया जा रहा है। लेकिन कुछ ही घंटों में यह भ्रम दूर हो गया और निराशा व्याप्त हो गई। जिस भारतीय की रिहाई हुई थी उसकी रिहाई की खुशियों को भी ग्रहण लग गया था।
भारत और पाकिस्तान की तुलना करें तो कानून और व्यवस्था की स्थिति पाकिस्तान में भारत से बदतर है लेकिन जेलों की स्थितियां कमोबेश एक-सी है। एक जेल में उसकी क्षमता से कई गुना ज्यादा सजायाफ्ता और न्यायिक हिरासत वाले कैदी होते हैं। तय मानकों के अनुसार ना न्यूनतम सुविधाएं वहां उपलब्ध होती हैं ना ही चाक-चौबन्द चौकसी और सुरक्षा व्यवस्था। दबंग हिरासती वहां अपनी सरकार अलग से चलाते हैं, रंगदारी वसूली जाती है, जातीय साम्प्रदायिक घृणा का बोलबाला रहता है। जेलों के अन्दर की और भी कई तरह की खबरें आए दिन पढ़ने-सुनने को मिलती ही है।
कहा जा रहा है कि सरबजीत पर हमला पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आइएसआइ की सह पर हुआ है। हो सकता है यह सच भी हो लेकिन आइएसआइ जिस स्तर के कृत्यों के लिए बदनाम है उससे लगता नहीं कि इस तरह कीटुच्चीहरकतों में उसका हाथ होगा। क्योंकि सरबजीत की रिहाई या उसे सबक सिखाने जैसी बातों में आइएसआइ अपना समय शायद ही जाया करें।
कोट लखपत जेल जहां सरबजीत हिरासत में है। उस जेल की क्षमता चार हजार कैदियों की है लेकिन हाल फिलहाल वहां सत्तरह हजार कैदी ठूंसे हुए हैं। उक्त सब के चलते यह जेल सुधारगृह की बजाय बिगाड़गृह ज्यादा है। कोई सुधरना भी चाहे तो वहां की स्थितियां इतना तनाव देती है कि सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं बची रहती। कैदियों के अपने-अपने गैंग बने हुए हैं यानी पाकिस्तान की जेलों में वही सब और भी बदतर होता है जो हमारे देश की जेलों में होता है।
हमारे देश में इस हमले को लेकर आक्रोश और गुस्सा जायज है। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि इस तरह के विरोध प्रदर्शन अन्तरराष्ट्रीय दबाव का एक कारक होता ही है। लेकिन ऐसे मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और ना ऐसी घटनाओं से विदेश नीति ताक पर हो जाती है। उक्त सब बताने का मकसद इतना ही है इस तरह की घटनाओं पर सामान्यजन में आक्रोश और विरोध तो होना चाहिए लेकिन यह घटना ऐसी नहीं है कि इससे अपने देश की विदेश नीति को भुण्डाया जाय या कूटनीति या राजनय की विफलता माना जाए।
29 अप्रैल, 2013

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