Friday, April 19, 2013

मतदान प्रणाली


मतदान प्रणाली को संशयहीन बनाने को लेकर आजादी बाद से जब-तब मांग उठती रही है और आवश्यकता भी महसूस की जाती रही है। पहले आम चुनाव से लेकर अब तक कई परिवर्तन हुए हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन तो दूसरे आम चुनाव में ही हो गया था। पहले आम चुनाव में मतदान पेटियां उतनी ही थीं जितने उम्मीदवार थे यानी प्रत्येक उम्मीदवार का चुनाव चिह्न चस्पा करके अलग-अलग पेटियां मतदान केन्द्रों पर रखी गईं थीं। मतदान अधिकारी द्वारा दी गई पर्ची मतदाता अपने पसन्द के उम्मीदवार की पेटी में डाल कर अपने मत का प्रयोग करता था। पहले ही चुनाव में लग गया था कि यह प्रणाली न पूरी तरह गोपनीय है और ना ही व्यावहारिक है। क्योंकि पर्दे की ओट में ही सही, यह अन्दाज तो लग ही जाता था कि मतदाता किस पेटी की ओर गया है। दूसरा, इस प्रणाली में प्रत्येक मतदान केन्द्र के लिए जरूरत की मतपेटियों की संख्या धीरे-धीरे इतनी बढ़ती कि उनकी व्यवस्था करना मुश्किल होता। और यह भी कि जिस उम्मीदवार की पेटी भरने से बदलनी पड़े तो मोटा-मोटा परिणाम मतगणना से पहले ही घोषित हो जाता। दूसरे चुनाव में मतपत्र द्वारा मतदान हुआ जिसमें एक ही मतपत्र पर सभी उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न अंकित थे मतदाता अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम-चिह्न के पास चोफुली  की मुहर लगा कर मत पत्र को मोड़ कर छोटा करके मतपेटी में डाल देता। इस मोड़ने में कई बार चोफुली की स्याही दूसरे उम्मीदवार के नाम चिह्न पर भी लग जाती और मत पर विवाद हो जाता। फिर मतदान अधिकारी प्रत्येक मतपत्र को मोड़ कर और खोल कर यह बता के देने लगे की इसे इसी तरह मोड़ना है। इसके बावजूद गणना के समय बहुत से मतपत्रों को चुनौती दी जाती रही। इस समस्या से बचाव के लिए पिछली सदी के आठवें दशक में चौफुली की मुहर में बदलाव किया गया। इस नई तरह की मुहर में चोफुली के निशान को   इस तरह घड़ी की सूइयों की दिशा में चला दिया ताकि छाप और प्रतिछाप को पहचाना जा सकें। सही छाप का मतलब यानी तीर घड़ी की सूइयों की दिशा में और तीर घड़ी से उलटी दिशा में है तो प्रतिछाप है। इस तरह की मतदान प्रणाली मोटा-मोट इस शताब्दी के शुरू तक चलती रही। ज्यों-ज्यों मतदाता बढ़ते गये तो यह प्रणाली भी पेचीदा और समय खाऊ लगने लगी। फिर आई ईवीएम यानी इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन प्रणाली। 2004 के आम चुनावों में कुछ क्षेत्रों में ईवीएम से तो कुछ में मतपत्रों से चुनाव हुए क्योंकि तब तक चुनाव आयोग के पास पर्याप्त मात्रा में ईवीएम नहीं थी। पिछले यानी 2008 के आम चुनाव पूरी तरह ईवीएम से करवाए गये। इन चुनावों में हार के बाद प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने बल्कि उसके नेता स्वयं लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर संशय खड़े किये कि कुछ उन क्षेत्रों की ईवीएम केप्रोग्राममें पूर्व में ही ऐसी सेटिंग कर दी गई होगी कि दूसरे उम्मीदवारों को दिया गया मत भीहाथके मत में परिवर्तित हो गया। इसे लेकर एकबारगी तो पूरे देश में असमंजस हो गया, मामला अदालत में भी गया और पाया गया कि भाजपा और आडवाणी का संशय निर्मूल है।
अभी हाल ही में इन ईवीएम में एक और परिवर्तन की खबरें देखने को मिली हैं। आगामी चुनावों में सभी ईवीएम में रिकार्ड के लिए प्रत्येक मत के बाद एक पर्ची निकलेगी जिसे मतदान अधिकारी अपने पास फाइल करेगा। ताकि किसी तरह का विवाद जब भी हो तो उसे प्रमाण के रूप में पेश किया जा सके कि मतदाता विशेष ने मतदान की प्रक्रिया सम्पन्न कर ली थी। क्योंकि ईवीएम तक जाने से पूर्व मतदाता के हस्ताक्षर या अंगूठे की छाप तो ले ली जाती है और ईवीएम का बटन दबाने की पुष्टि भी मतदान अधिकारी के पास लगी ईवीएम के काउण्टर पार्ट के रूप में लगी मशीन पर हो जाती है। लेकिन यह पुष्टि नहीं होती थी कि मतदाता अंगूठा लगाकर या हस्ताक्षर कर बिना ईवीएम का बटन दबाए बाहर तो नहीं चला गया और किसी अन्य ने ईवीएम का बटन दबा दिया होगा। आजादी बाद से लगातार आए ऐसे बदलावों से जाहिर होता है कि चुनाव आयोग मतदान प्रणाली को पूर्णत संशयहीन बनाने में किस तरह सिरे से प्रयासरत है।

19 अप्रैल, 2013

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