Tuesday, April 9, 2013

भाजपा में पीएम इन वेटिंग


भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह पिछले दिनों कई टीवी चैनलों पर रू--रू हुए। उनसे पूछे गये अधिकांश प्रश् मोदी, नीतीश और राजग से सम्बन्धित थे। भाजपा मेंपीएम इन वेटिंगसे सम्बन्धित प्रश् किये गये और आडवाणी की हैसियत को लेकर भी। राजनाथ इन सभी साक्षात्कारों में किसी किसी तरह बच निकलने की मुद्रा में जवाब देते रहे। लेकिन एक संकेत जो उन्होंने दिया किपीएम इन वेटिंगका नाम हमारा ऐसा होगा जिससे केवल जदयू सहित वर्तमान राजग घटक दल सहमत होंगे बल्कि अन्य कई नये दल भी राजग का हिस्सा बनेंगे या बनना चाहेंगे। उनकी बात से यह तो जाहिर नहीं होता है कि उनका संकेत किसकी और है लेकिन यह जरूर जाहिर होता है कि पीएम इन वेटिंग के तौर पर नरेन्द्र मोदी के नाम पर अभी निर्णय नहीं हुआ है। हो सकता है भाजपा नरेन्द्र मोदी का नाम इसलिए भी उछलने देना चाह रही है कि पार्टी टटोलना चाहती हो कि मोदी के नाम पर देश के आम-आवाम और राजग के वर्तमान और संभावित घटक दलों की प्रतिक्रियाएं क्या होती हैं। मोदी के नाम पर राजग के अन्य घटक दलों में अभी तो केवल जदयू और जदयू के वरिष्ठों में भी नीतीशकुमार और सांसद शिवानन्द तिवारी के ही तेवर मोदी विरोध में मुखर हैं।
इस सबका मतलब यही समझा जा सकता है कि भाजपा फिलहाल तेल की धार देखने में लगी है और मोदी के नाम पर सत्ता मिलती दिखी तो मोदी को आगे कर देगी और लगा कि मोदी देश के अधिकांश हिस्सों में अपनी वोट-बटोरू छवि घड़ और पेश कर पाए तो मोदी को गुजरात का ही मुख्यमंत्री रहने दिया जायेगा। ऐसी स्थितियों में भाजपा के पास निर्विवाद नाम एक लालकृष्ण आडवाणी का ही रहता है। खुद आडवाणी ने भी अभी तक केवल इस जिम्मेदारी के प्रति अपनी अनिच्छा जाहिर की है बल्कि संकेतों के माध्यम से गाहे-बगाहे जाहिर भी होने देते हैं किपीएम इन वेटिंगअभी भी वही रहना चाहते हैं। किसी कारण से आडवाणी क्रीज पर नहीं आते हैं तो आडवाणी के विकल्प के तौर पर भाजपा में दो ही नामों की संभावना बनती है, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली का। इनमें मास अपील के हिसाब से जेटली, सुषमा से पिछड़ जाते हैं। लेकिन इन दो की दौड़ मेंफाचक’ (अवरोध) की संभावना ज्यादा दीखती है। राजनाथ की बातों से जो बात निकलती है वह यही कि मोदी का सिक्का चलता नहीं दिखा तो पचासी पार के आडवाणी को क्रीज पर ले आया जायेगा। आखिर 1977 में मोरारजी देसाई इक्यासी पार के थे ही!
लेकिन भाजपा से भी आगे जाकर मोदी जिस तरह से खुद को हीपीएम इन वेटिंगके रूप में प्रस्तुत करने और केवल अपनी भाव-भंगिमाओं से बल्कि घुमा-फिरा बोल कर भी अपने को दूल्हा घोषित करने लगे हैं। भाजपा को दूरगामी हितों के हिसाब से पीएम की रेस से मोदी को बाहर करना पड़ गया तो हो सकता है मोदी की प्रतिक्रिया ऐसी हो जिससे भाजपा की स्थिति में गुजरात को छोड़ कर कोई बड़ा अन्तर आए, लेकिन मोदी खुद जरूर बेनकाब हो सकते हैं। उस स्थिति में यह बताना तो संभव नहीं है कि मोदी क्या प्रतिक्रिया देंगे लेकिन जैसे कि उनके तेवर हैं, वह जैसी भी देंगे बदमजगीपूर्ण हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो मोदी की वह प्रतिक्रिया देश के लोकतंत्र को ताकत देने वाली ही होगी।
9 अप्रैल, 2013

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