Tuesday, June 30, 2015

मर्यादाएं तोड़ती : भाजपा और कांग्रेस

'टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा/ उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है/ ...दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा/ दोनों ही पक्षों में जीता अंधापन।' धर्मवीर भारती के नाटक 'अंधायुग' का यह संवाद आज लेखक मित्र डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने फेसबुक पर साझा किया। कांग्रेस और भाजपा, दोनों की करतूतों के चलते ऐसी ही कुछ विचारणा मन में सुबह से थी। पोस्ट को पढ़ते ही कौंध की अनुभूति हुई।
मनमोहनसिंह के नेतृत्व में संप्रग-दो की सरकार के समय मनमोहनसिंह अनमने हो लिए थे, या यह कहें जो हो रहा था उसे होने दिया। कोयला-खदानों और स्पैक्ट्रम की नीलामियों के घपले, कॉमनवेल्थ घोटाले को भुलाने लगे। घोर वैश्विक मंदी के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को संभाले रखना, सूचना का अधिकार कानून, शिक्षा का अधिकार और मजदूर को मजदूरी के लिए आत्मसम्मान के साथ मौल-भाव करने की ताकत देने वाले मनरेगा जैसे काम घोटालों के कुहासे में दृश्यहीन हो गये। इसी बीच गुमराह की राजनीति में विश्वास करने वाले सर्वसत्तावादी नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आए और छा गए। भ्रष्टाचार से पंगु हो चुके प्रशासन से त्रस्त और भ्रमित होने की आदी जनता ने मोदी में उम्मीदें पाल लीं।
राजस्थान में मोदी की अगवानी में वसुंधरा ने सत्ता कुछ पहले संभाल ली लेकिन बिना ऊर्जा के। प्रथम छह माह तो लगा कि वह लोकसभा चुनावों की व्यस्तता के चलते कुछ कर नहीं पा रही है लेकिन बाद में भी राजे की ऊर्जा कुन्द रही तो समझ में आने लगा कि हाइकमान के साथ अहम् टकरा रहे हैं। इन डेढ़ वर्षों में कुछ ना करने और अब कबाड़ची ललित मोदी के उघडऩे से वे सब भी उघडऩे लगे, जिन-जिनका भी रिश्ता उनसे रहा। ललित मोदी के जिनके साथ खास रिश्ते रहे हैं उनमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे की भद्द सबसे ज्यादा हो रही है।
केन्द्र में एक साल की सरकार जैसे-तैसे लोह-आवरण में चलाने वाले नरेन्द्र मोदी को झटका ललित मोदी के उघाड़-बार ने दिया। लोकसभा में मात्र चौवालीस सीटों पर सिमटी और कई प्रदेशों में सत्ता खो चुकी कांग्रेस के लिए ललित मोदी के उघडऩे ने आत्मविश्वास लौटाने का काम किया है। बचाव की मुद्रा से कांग्रेस आक्रामक मुद्रा में तो आई लेकिन पता नहीं क्यों उसने इसके लिए नौसिखिया प्रवक्ताओं को आगे कर दिया। कांग्रेस शायद यह भूल कर रही है कि उसे संप्रग-दो की नाकामियों का ही सामना नहीं करना, आजादी बाद के अड़सठ वर्षों की कमियों का भी जवाब देना है। ललित मोदी मुद्दे से ऊर्जा अर्जित कर लौटी कांग्रेस को मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के शैक्षिक योग्यता के झूठे हलफनामे, मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार का व्यापम घोटाला, महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की मंत्री पंकजा मुंडे 206 करोड़ की और शिक्षामंत्री विनोद तावड़े का 191 करोड़ रुपए के ठेकों में अनियमितता बरतने का और ललित मोदी के अलावा वसुंधरा-दुष्यंत मां-बेटों का धौलपुर महल आदि जैसे मामलों के बावजूद कांग्रेस प्रवक्ताओं की आक्रामकता तब असरहीन हो जाती है जब भाजपाई जवाब में वैसी ही करतूतें कांग्रेसियों की गिनवाने लगते हैं। लोक में कहते भी हैं ना कि पुराने पाप पीछा नहीं छोड़ते। कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करना है तो अपने पापों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारना होगा और भविष्य में वैसी करतूतों से बचने का संकल्प करना होगा, अन्यथा मोदी एण्ड शाह एसोसिएट के शातिरों से वह मुकाबला नहीं कर पायेगी।
ये तो हुई कांग्रेस की बात, वह अब भी नहीं समझेगी और संभलेगी तो भारत कांग्रेस से पूरी तरह मुक्त हो जाना है।
लेकिन कांग्रेस की करतूतों पर सवार होकर शासन में आयी भाजपा की बेशरमी हद दर्जे की है। वह यह भूल रही है कि घपलों और नाकामियों के चलते कांग्रेस की विकल्प बनकर वह सत्ता में आयी है। उसके ये मानी कतई नहीं है कि जितने कबाड़े कांग्रेसियों ने किए उतनों की छूट उन्हें भी मिल गई। भाजपा के प्रवक्ताओं के कहे से तो ऐसा ही लग रहा है। वे अपने हर कबाड़े को कांग्रेस के कबाड़ों की आड़ देने लगे हैं। वे भूल रहे हैं कि इस तरह वे भारतीय अवाम के साथ कांग्रेस से भी बड़ा धोखा कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें कांग्रेस के कुशासन के उलट सुशासन देने के लिए ही सत्ता सौंपी गई है।
इस तरह बार-बार ठगे जाने को विवश देश की जनता को अब इस तरह भी विचारना शुरू करना चाहिए कि ऐसे मर्यादा तोडऩे वाले और एक-दूसरे दल की लगभग फोटोकॉपी बन चुके इन दलों से वह छुटकारा कैसे पाए। अन्यथा फिर-फिर पांच-पांच साल के लिए भुगतने को तैयार रहें
                                                                                                                                              30 जून, 2015

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