पिछली सदी के सातवें दशक की बात है। बीकानेर की राजनीति में तब समाजवादी मुरलीधर व्यास का वर्चस्व था। पूरे देश में राज करने वाली कांग्रेस का यहां पांव नहीं टिक रहा था। विधानसभा में व्यास से परेशान तब के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने 1967 के विधानसभा चुनावों से पहले बीकानेर मूल के भीलवाड़ा के प्रभावी नेता और वहीं से विधायक रहे गोकुलप्रसाद पुरोहित को 'फ्री-स्टाइल'
छूट के साथ बीकानेर भेजा। पुरोहित के सामने एक ही लक्ष्य था— मुरलीधर व्यास को येन-केन हराना, वे सफल भी हुए। पुरोहित 'येन-केन' किसी आड़ में ही करते थे। उस चुनाव से पहले उन्होंने शहर के अधिकांश प्रभावी और रुतबेदारों को अपने पक्ष में कर लिया। दाऊजी रोड क्षेत्र के कैरम के पारंगत खिलाड़ी सफी शहर में 'सफिया गुण्डा' नाम से जाने जाते थे। गरीब और कमजोर वर्ग तब ऐसे लोगों से इतने भयभीत रहते थे कि उनके लिए नाम ही काफी होता था। शहर में पता लग गया कि सफी भी पुरोहित के समर्थन में आ गये हैं। सफी को लगा कि जब मेरे नाम का लाभ पुरोहित उठा रहे हैं तो क्यों न मैं भी प्रतिष्ठ हो लूं। गोस्वामी चौक में पुरोहित की आम सभा थी—यह इलाका सीधे-सीधे सफी की परगा यानी प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा था। चलती आम सभा में सफी मंच के किनारे आकर बैठ गए। नैतिकता ओढ़े गोकुलप्रसाद पुरोहित को उसका इस तरह खुलेआम आना नागवार लगा। लगभग गुस्से में उन्होंने किसी से कहा कि हटाओ इसको, सफी हट भी गए। मतलब उस समय राजनीति में शुचिता की अपनी जरूरत थी।
इन पचास वर्षों में राजनीतिज्ञों ने अब शुचिता को हाशिए पर भी नहीं रहने दिया। नरेन्द्र मोदी ने देश के जिन सर्वाधिक बुरे दिनों की मार्केटिंग द्वारा जिन से सत्ता हासिल की उस संप्रग की सरकार के मंत्री ए.राजा और कनीमोई तक को इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा था। उसी संप्रग के मुख्य घटक कांग्रेस के बड़े नेता सुरेश कलमाड़ी दिल्ली और केन्द्र में अपनी सरकारों के होते हुए और संप्रग प्रमुख के खास होने के बावजूद न जांच से बचे और न ही जेल जाने से। ये उद्धरण देने के मानी न आरोपियों का पक्ष लेना है और न ही संप्रग सरकार की साख की पैरवी करना, जिन्होंने भी गलत किया उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए।
मोदी की सरकार को एक साल हो गया। जो भी वादे करके वे सत्ता में आए उनमें से एक को भी पूरा करने की मंशा रखते भी नहीं दीख रहे। यहां तक कि तब जिन टारगेट नम्बर एक रॉबर्ट वाड्रा को 'बजूका'
के रूप पेश कर वोट हासिल किए वे अब भी न केवल छुट्टे घूम रहे हैं बल्कि हरियाणा, राजस्थान में जहां उन पर गड़बडिय़ों के आरोप थे, दोनों जगह और केन्द्र में भी पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की ही सरकारें हैं। यानी चुनाव में भाजपा ने जिन्हें भी आरोपी माना उन सब के खिलाफ उनसे कुछ नहीं हो पाया वरन् 2002 के बाद गुजरात में जिन पर भी अमानवीय कृत्यों के आरोप थे वे सभी मुक्त हो रहे हैं।
और अब आर्थिक अपराधों और क्रिकेट फिक्सिंग के सैकड़ों करोड़ के आरोपी ललित मोदी को छूट देने की सिफारिश ब्रिटेन सरकार को खुद देश की विदेश मंत्री कर रही हैं। यानी देश के वित्त और गृह मंत्रालयों के ऐसे बड़े आरोपी जो देश इसलिए नहीं लौट रहे कि आते ही गिरफ्तार हो जाएंगे, उसी व्यक्ति की सिफारिश देश की विदेश मंत्री इस आश्वासन के साथ करती हैं कि ललित मोदी को छूट दी जाती है तो भारत सरकार कोई एतराज नहीं जताएगी। ललित मोदी के मुकदमें लड़ रहे पैनल में वकीलों के रूप में सुषमा स्वराज के पति और बेटी दोनों हैं। गोकुलप्रसाद पुरोहित और सफी के उदाहरण से बात इसलिए शुरू की कि अब तो राजनीति में शुचिता की आड़ लेने तक को भी जरूरी नहीं समझा जाता है। भाजपा के तमाम दिग्गज बहुत भौंड़े व निर्लज्ज तरीके से इसे मानवीय आधार पर की गई सिफारिश बता रहे हैं।
अगर यही मानवीय आधार है तो देश की जेलों में और बाहर भी व देश के बाहर भाग चुके अपराधियों में से एक-चौथाई तो पक्के निकलेंगे जिन पर मानवीय आधार की यह छूट लागू हो सकती है। ऐसे में देश का गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और कानून मंत्रालय मिलकर क्या इस तथाकथित मानवीय आधार की कोई नई गाइडलाइन तैयार करवा रहे हैं। देश ने मोदी को पूर्ण बहुमत क्या ऐसे हास्यास्पद वाकिओं के लिए ही दिया या भाजपा के वरिष्ठ सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद द्वारा सार्वजनिक तौर पर कही उस बात में दम है, जिसमें उन्होंने कहा कि यह पूरा प्रकरण सुषमा स्वराज को ठिकाने लगाने के लिए रचा गया है। यदि ऐसा है तो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई समझो।
16 जून, 2015
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