Saturday, June 20, 2015

वायदों की चूसनी से छाले पड़े जीभ पर

आजादी बाद के इन अड़सठ सालों में कांग्रेस ने लगभग छप्पन साल राज किया है, शेष बारह साल गैर- कांग्रेसियों की सरकारें रही हैं। यह विचित्र ही है कि जिस कांग्रेस ने छप्पन साल देश पर राज किया उसके किसी प्रधानमंत्री का सीना छप्पन इंच का नहीं था। बावजूद इसके कांग्रेस ने लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार के बीच दुनिया में देश की हैसियत ठीक-ठाक बनाए रखी, केवल दुनिया में बल्कि बेरोजगारी के चलते गरीबी और भुखमरी के बीच उसने पांच युद्ध लड़े, चार जीते। देश का अच्छा खासा अंतरिक्ष कार्यक्रम है, मंगल की ओर हम यान रवाना कर चुके हैं। विकास के शहरी मॉडल को बढ़ावा देते हुए बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं के बीच से और जमीनी सुरंगों से मैट्रो टे्रनें दौड़ाने लगे हैं। खेतिहर मजदूरों की तमाम समस्याओं के बावजूद देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो लिया है। कुल आबादी में बीस करोड़ ऐसे भी हैं जिनके पास एक इंच भी अपनी जमीन नहीं है और इतने ही ऐसे भी हैं जिन्हें प्रतिदिन भरपेट भोजन नहीं मिलता। खेतिहरों की बची खुची उम्मीदें अब नये भू-अधिग्रहण कानून से छीनने की तैयारी है। इन सब में उल्लेखनीय ये भी है कि सेवा से अब धंधा बन चुकी राजनीति को पेशे के रूप में जो भी अपनाता है उनमें से लगभग सभी केवल कमा खा-लेते हैं बल्कि जो चतुर-सुजान हैं वे इसी पेशे से इतना अर्जित कर लेते हैं कि जीवन ऐयाशी से गुजारते हैं। ऐसे राजनेताओं का कार्य भले ही वैसा ना हो लेकिन होंठों पर सहानुभूति के बोल देश के बे-घर, भूखे और बेरोजगारों के प्रति रहे हैं। इसी बिना पर राजनीति के ये अलग-अलग गिरोह सत्ता हासिल करते हैं और अपने और अपनों के घर भरते रहते हैं।
देश में अच्छा-बुरा जो भी है जिम्मेदार भी अन्तत: वही माने जाएंगे जिन्होंने बिना छप्पन इंची सीने के छप्पन साल राज किया और कुछ अच्छा हुआ तो शाबासी भी उन्हीं को मिलेगी। ऐसी शाबासी अब आए छप्पन इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री ने भी लालकिले से पिछली सरकारों को दी है। यद्यपि वे भी चुनावी सभाओं में पिछले छप्पन साल के राज के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। 2013 में जब उन्होंने अपनी पार्टी का चुनाव अभियान शुरू किया तो पिछले पैंसठ सालों के लिए कांग्रेस को भुंडाते रहे। फिर किसी ने साहस करके बताया होगा कि इसमें से लगभग आठ साल से ज्यादा राज की भागीदार परोक्ष-अपरोक्ष उनकी पार्टी रही है तो अब वे इस आंकड़े को साठ पर ले आए। आंकड़ा पूरा समझ में आने पर संभव है वे छप्पन के अंक पर जाएं लेकिन इस आंकड़े पर उनका सीना आड़े सकता है।
26 मई, 2014 में राज संभालने से पहले प्रधानमंत्री ने देश की तमाम कमियों को पूरा करने का वादा किया था। वादा करने का तरीका ठीक उस मदारी की तरह था जिसमें वह डमरु बजा-बजा कर तमाशबीनों को इकट्ठा तो कर लेता है, पर बन्दर उसके पास होते ही नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने जो-जो वादे किए, हो उससे उलटा ही रहा हैस्त्रियों पर अत्याचार कम नहीं हो रहे, महंगाई लगातार बढ़ रही है, किसानों की आत्महत्याएं लगातार जारी हैं, पाकिस्तान-चीन अपनी हरकतों को नहीं छोड़ रहे वहीं म्यांमार जैसा देश भी छप्पन इंच के सीने पर आंखें गड़ाने लगा है। पिछले प्रधानमंत्री को कुछ बोलने के लिए कोसने वाले नये प्रधानमंत्री की जबान पर अपने देश में     ताले लग जाते हैं। पेट्रोल-डीजल के गिरते भावों का श्रेय बजाय अन्तरराष्ट्रीय बाजार को देने के, खुद के नसीब को दिया तो भाव फिर बढऩे लगे।
देश की बजाय अपने वित्तीय प्रबन्धकों के अच्छे दिन लाने में लगे प्रधानमंत्री अपनी इन करतूतों से ध्यान बंटाने के लिए हालांकि कभी 'स्वच्छ भारत अभियान' का तमाशा शुरू करते हैं तो कभी योग का। लेकिन वे भूल रहे हैं कि पेट की जरूरत रोटी-दाल, चावल से पूरी होती है। वे अब भी जनता को दिखाए सब्जबागों को हकीकत में बदलने के प्रयास करते नहीं दीखेंगे तो जनता को रोटी चाहे नसीब हो, उसे सेंकने की तरतीब में पलटने का भान उसे है। जनकवि हरीश भादानी की गीत-पंक्ति का शीर्षक दे शुरू किए इस आलेख को उसी की अगली पंक्ति से समाप्त करना समीचीन होगा
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है।

20 जून, 2015

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