Friday, November 29, 2013

चुनावी अटकलें-छह

उन्नीस सौ बहत्तर के चुनाव में कांग्रेस ने तब के युवा गोपाल जोशी को बीकानेर से टिकट देने के लिए उन गोकुलप्रसाद पुरोहित को दरकिनार कर दिया गया जो ना केवल उस समय विधायक थे बल्कि पार्टी ने यह सीट कब्जाने के लिए पुरोहित को उनके कार्यक्षेत्र भीलवाड़ा से विस्थापित भी करवाया। पुरोहित इसके बाद ताउम्र वहां नहीं लौट सके जहां उन्होंने अपनी पूरी जवानी मजदूर यूनियनों की राजनीति में झोंक दी थीं। पार्टी के निर्देश पर गोकुल प्रसाद जब 1967 का चुनाव लड़ने बीकानेर आए तब वे भीलवाड़ा के मांडल से विधायक भी थे।
पुरोहित की विरुदावली यह बताने के लिए जरूरी लगी कि बीकानेर (पश्चिम) के वर्तमान विधायक और इसी सीट से भाजपा के उम्मीदवार गोपाल जोशी किस क्षमता और हैसियत के व्यक्ति रहे हैं। 1972 के उक्त चुनाव में बीकानेर से गोकुलप्रसाद पुरोहित बागी होकर निर्दलीय मैदान में थे तो इसी क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके मुरलीधर व्यास की समाजवादी विरासत के साथ सत्यनारायण पारीक भी थे। जनसंघ ने भी तब अपना उम्मीदवार बदला और वणिक समुदाय के भंवरलाल कोठारी को मैदान में उतारा। गोपाल जोशी के सामने इन तीनों ही उम्मीदवारों को इतने वोट भी नहीं मिले कि वे अपनी प्रतिष्ठा भी बचा पाएं। इन सबसे भारी तो निर्दलीय खड़े मोहम्मद हुसैन कोहरी रहे जो गोपाल जोशी को मिले 18,005 वोटों के मुकाबले 9,877 वोट लेकर दूसरे नम्बर पर रहे। गोकुल प्रसाद पुरोहित भी इसी चुनाव में बागी होकर डटे और अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। इस चुनाव में यह माना गया कांग्रेस को उसके परम्परागत अल्पसंख्यक समुदाय के वोट ना के बराबर मिले। बावजूद इसके उन्होंने बहुकोणीय दीख रहे मुकाबले में सम्मानजनक जीत हासिल की थी। वह तो गोपाल जोशी से सन् 1977 में चूक हो गई अन्यथा डॉ. कल्ला प्राध्यापकी की अपनी सेवा पूरी कर इन दिनों सेवानिवृत्ति भोग रहे होते! उक्त सब बताने का कुल जमा भाव यही है कि गोपाल जोशी को यह चुनाव जीतने के लिए 1972 वाले जीवट की जुगत करनी होगी।
अब आते हैं इस चुनावी माहौल की ओर। डॉ. कल्ला इस चुनाव में अपनी कांग्रेसी उम्मीदवारी को लेकर लगभग आश्वस्त थे और पिछले दो सालों से डेमैज कण्ट्रोल में लगे थे। क्योंकि 18,861 से उनकी पिछली हार कम नहीं थी। वहीं गोपाल जोशी अपनी वर्तमान विधायकी की शुरुआत में अपने इस कार्यकाल से सन्तोष कर चुके थे। वह तो पूर्व विधायक नन्दलाल व्यास के अस्वस्थ होने और फिर उनके लगभग दावा छोड़ देने के बाद गोपाल जोशी ने अपनी ऊर्जा का फिर आह्वान किया और टिकट हासिल करने में सफल भी रहे। चूंकि गोपाल जोशी का टिकट अंतिम दौर में तय हुआ और उन्हें यहां से दूर रह कर टिकट के लिए पूरी मशक्कत भी करनी पड़ी वहीं बीडी कल्ला का टिकट पहले ही तय हो चुका था। सो, इन्हीं सब के चलते जोशी का टिकट तय होने तक कल्ला अपनी स्थिति को लगभग बराबरी पर ले आए थे। नरेन्द्र मोदी की 25 नवम्बर की सभा से दो-तीन दिन पहले जो क्षेत्र में हवा बनी तब लगा कि कल्ला  फिर पिछड़ रहे हैं लेकिन एक तो कल्ला की मेहनत और दूसरा मोदी हवा का उसी तीव्रता से ना ठहरने से लगता है कल्ला अपनी स्थिति फिर बराबरी पर ले आए हैं। फिर भी ऐसा नहीं है िक केन्द्र सरकार को लेकर बनी एण्टी इन्कैम्बैंसी और मोदी द्वारा उसे भुनाने की पुरजोर कोशिश का असर मतदान तक नदारद हो जायेगा। इस चुनाव में गोपाल जोशी का मुख्य आधार फिलहाल मोदी ही हैं या खुद उनका पुष्करणा समाज जिसके अधिकांश मतदाताओं पर कल्ला के मुकाबले आज भी जोशी की पकड़ अच्छी है। गोपाल जोशी के साथ भाजपा का संगठन जहां पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रहा है वहीं संघ के लोग भी पुरजोश से साथ नहीं हैं। जोशी को पिछली बार मिले अन्य पिछड़ों के वोटों में भी कल्ला ने गोपाल गहलोत के बहाने और अपनी मेहनत से ठीक ठाक घुसपैठ बना ली है। हालांकि पिछड़ों में भी जो लोग अपने पर भाजपा की छाप जाहिर कर चुके हैं वे अभी भी गोपाल जोशी के साथ हैं। उच्चवर्ग जो सामान्यत: बीडी कल्ला के साथ रहता आया है, इस चुनाव में लगता नहीं है कि वे कल्ला का कुछ सहारा बनेंगे। अल्पसंख्यकों का बड़ा भाग और अनुसूचित जाति जाटों-बिश्नोइयों का अच्छा-खासा हिस्सा जरूर कल्ला के साथ लग रहा है। लगभग बराबरी की हो चुकी लड़ाई  में मोटा मोट यही देखा जा रहा है कि जहां परकोटे के भीतरी हिस्से में गोपाल जोशी बढ़त बनाए लगते हैं वहीं बाहरी क्षेत्र में कल्ला।
इस तरह जीत-हार इस पर तय रहेगी कि गोपाल जोशी परकोटे के अपने वोटों को बचाते हुए बाहर बढ़त बना लेते हैं तो मीर मार सकते हैं और ठीक इसी तरह परकोटे के बाहर के अपने वोटों को सुरक्षित रखते हुए परकोटे के भीतर कुछ बढ़त ले आते हैं तो कल्ला अपने राजनीतिक कॅरिअर को बचाने में सफल हो जाएंगे। कल्ला यदि यह चुनाव भी नहीं जीतते हैं तो वह राजनीति की मुख्यधारा से लगभग बाहर हो जाएंगे। गोपाल जोशी इसे अपना अन्तिम चुनाव कह कर वोट मांग ही रहे हैं!
29 नवम्बर, 2013


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