Monday, November 18, 2013

बाकाडाकियों की पौ-बारह

सलीम भाटी और श्याम तंवर एण्ड कंपनी के भाजपा में शामिल होने के साथ ही शहर में बाड़े बदलावों की बाकाडाक और जुगालियां सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लेकर मोबाइल-लैंडलाइन फोन, पाटे-चौपाल और शादी-समारोहों में चलने और होने लगी हैं। बाड़े बदलाव की दूसरी खेप में कल विश्वजीतसिंह हरासर घर लौट आए। 2008 के चुनावों में भाजपा द्वारा बीकानेर (पूर्व) से सिद्धीकुमारी को दी गई टिकट की नाराजगी जाहिर करने के लिए देवीसिंह भाटी ने विश्वजीतसिंह को ही मोहरा बनाया और उन्हें सिद्धीकुमारी के सामने मैदान में उतार दिया। रियासत काल होता तो इसेअंतासे बगावत की संज्ञा दी जाती। लगता है भाटी-हरासर की उक्त नाराजगी इन पांच वर्षों में सामन्ती तेजाब में धुल गई और हो सकता है विश्वजीत आधे-अधूरे मन से ही सहीबाइसाके लिए लग जाएं। यह अन्वेषण का विषय हो सकता है कि विश्वजीत कांग्रेस में कितने दिन और किस तरह रहे।
बाड़े बदलाव में पिछले चार-पांच दिन से तीन नामों की बड़ी चर्चा है। राजनीति के हलर-फलरियों में कयास लगाए जाने लगे हैं कि गुलाम मुस्तफाबाबूभाई’, चतुर्भुज व्यास और जयशंकर जोशी जैसे भी कांग्रेसी बाड़े से भाजपाई बाड़े में पलायन करने वाले हैं। यह फुसफुसाहट अभी पटाखे में तबदील नहीं हो पायी है। दूसरी ओर बाकाडाकियों के पेट में कल शाम को एक बांयटा और चला कि सलीम भाटी अपनी भूल सुधारने की हिम्मत जुटा चुके हैं और उनको अहसास हो गया कि कांग्रेस में रहकर जिस पद-प्रतिष्ठा को वे आसानी से हासिल कर चुके थे उससे आधी भी भाजपा में ताजिन्दगी हासिल नहीं कर पाएंगे। लेकिन सलीम भाटी के इनकार के साथ ही बाकाडाकियों के ये बांयटे भी जल्दी ही फुस्स हो लिए। पर बाकाडाकिए कहां हताश होने वाले थे, उन्होंने तत्काल यह चलाना शुरू कर दिया कि ऐसे पटाखों की छोड़ो अब भाजपा एक बड़ा धमाका करने वाली है शहर के एक बड़े कांग्रेसी नेता बाड़ा बदलने वाले हैं। कुरेदने के बाद भी जब नाम सामने नहीं आया तो सुनने वाले ने कह मारा कि तो फिर क्या जनार्दन कल्ला भाजपा में जाने वाले हैं क्या... इस पर बाकाडाकिए खींसे-निपोरने लगे। बाका डाकिए ताका-झांकी कर ही रहे थे कि जनार्दन कल्ला के नामलेवे ने तत्काल उदाहरण ठोक दिया कि पिछले चुनाव मेंराजाखेड़ाविधान सभा क्षेत्र में ऐसा हो चुका है। राजाखेड़ा से बरसों से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेसी दिग्गज प्रद्युम्नसिंह के चुनाव प्रबन्धक छोटे भाई रवीन्द्रसिंह ना केवल अपने अग्रज के सामने भाजपाई उम्मीदवार हो लिए बल्कि जीत कर विधायक भी बन गये। इस पर बाकाडाकिये चुप नहीं रहे कि तत्काल दे मारा, ये 2008 में तो संभव हो सकता था, तब खुद जनार्दन में कुछ करार था अब तो खुद उनकी निर्भरता हर तरह से दूसरों पर हो गई है और, दूसरा यह कि रवीन्द्रसिंह प्रद्युम्नसिंह से छोटे हैं, छोटन को उत्पात क्षम्य है पर जनार्दन कल्लाभाईसाहोते ऐसा कैसे कर सकते हैं?
भीड़ जुटाने में पीएच-डी होने का दावा करने वाले गोपाल गहलोत अभी तक खास कर पाते दिखे नहीं हैं। हो सकता है कल की राहुल सभा में वे कुछ कर पाएं, धमाके की आवाज सुन कर ही बताया जा सकेगा कि गोपाल गहलोत ने पटाखा छोड़ा या सुतली-बम।
उधर नन्दू महाराज में निष्ठा रखने वाले अभी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें किस करवट बैठना है, चामत्कारिक व्यक्तित्व की छत्र-छाया में करने-धरने के यह आदतनी, बिखरते ज्यादा लग रहे हैं और इन्हें जो कोई बौंच लेगा उसी के हो लेंगे। पर कयास यही लगाए जा रहे हैं कि इनमें से अधिकांश को परोटने में कल्ला-बन्धु ज्यादा सफल होंगे। क्योंकि नन्दू महाराज के सभी समर्थक नन्दू महाराज के कारण ही भाजपाई थे ना कि भाजपाई होने के कारण नन्दू महाराज के साथ।

18 नवम्बर, 2013

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