Tuesday, November 12, 2013

चुनावी बिसात पर धुंधलका

बीकानेर जिले की सातों विधानसभाई सीटों की बिसात मोटा-मोट बिछ चुकी है। नामांकन का आज आखिरी दिन है, टिकट लपकने में सफल और बायड़ में आए सभी आज अपना नामांकन-पत्र भर केरिलेक्सहोने का एक पड़ाव पार कर लेंगे। शाम से नामांकन भर चुके उन लोगों की दाबा-चींथी का तनाव फिर शुरू होगा जिनसे कुछ नुकसान होने की आशंका हो सकती है। 16 नामांकन वापसी का दिन है तब तक दाबाचींथी, समझाइश और गिड़गिड़ाने आदि की सभी भूमिकाएं अदा कर ली जाएंगी। कुछ लोग तो इसी उम्मीद में पर्चा दाखिल करते हैं कि मोटी रकम का कोई प्रस्ताव कदास मिल जाए। शहर के एक बड़े डॉक्टर बसपा से खड़े हुए थे, चुनावों के ऐसे दिनों में उनकी हैसियत की चर्चा आज भी दस से बीस लाख टके की आंकी जाती है और जिनसे मिलने की बात है वे करोड़ों की हैसियत वाले तो होंगे ही! यह बात अलग है कि नामांकन के समय इस हैसियत को कम से कम बताने का जुगाड़ कर लिया जाता है। पिछले विधानसभा चुनावों के नामांकन के समय अपने नगर के एक वर्तमान विधायक ने सुर्खियां इसलिए भी बटोर ली थी कि तब वे राजस्थान के उम्मीदवारों में चल-अचल के मामले में सिरमौर की गिनती में गये थे।
बात बिसात की करते हैसियत पर गये, विचलन की यह पुरानी आदत जाती सी जायेगी। बिसात का धुंधलका 16 को ही छंटेगा क्योंकि क्या पता किस बड़ी पार्टी के घोषित उम्मीदवार में हेमाराम चौधरी जाग जाए, कोई नहीं कह सकता। छियासठ की उम्र के हेमाराम अभी गहलोत सरकार में मंत्री हैं, उनका कहना है कि उन्होंने तय कर रखा था कि 65 के बाद चुनावी राजनीति से दूर हो जायेंगे लेकिन राहुल को यह नागवार लगा या कोई और कारण हुआ कि कल उन्होंने हामी भर दी। वैसे इस तरह की खबरों को हमारे यहां के गोपाल जोशी, किसनाराम नाई और मानिक सुराणा जैसों को नहीं पढ़ना चाहिए। रोज नई-नई बीमारियों के चौड़े होने के इस युग में क्या पता हेमाराम की इस बीमारी के संचारी की भूमिका यह खबरें ही निभाने लगें। उम्मीद करनी चाहिए कि 16 तक हेमाराम वाला रोग यहां तक नहीं पहुंचेगा और बिसात मोटा-मोट यही रहेगी।
साफ-सुथरी राजनीति की बात करने वाली भाजपा और कांग्रेस की दिवाली-सी सफाई तैयारी में लगे राहुल के मानक, ऐसे में दोनों ही दलों की सूची को देखें तो आदर्श की बातें खूंटी टंगी दिखेंगी। रही बात डॉ. किरोड़ी की राजपा की तो उन्हें उम्मीदवार ढूंढ़ने में देर इसलिए नहीं लग रही है क्योंकि कांग्रेस और भाजपा के बायड़ आए बागी अपने खर्चे पर राजपा के मत प्रतिशत को बढ़ाकर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टी की पात्रता बनाए रखने में सहायक ही होंगे। वहीं सपा-बसपा वालों को उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं सो कल यहां से सपा से नामांकन भरने वाले कहते सुनाई दिये कि गये तो लेने बसपा का टिकट थे-पर बीच में ही सपा वालों ने अपना थमा दिया। कोई बात नहीं वैसे भी सभी पार्टियों की विचारधारा फिलहाल अपने नेताओं की येन-केन तरीके से चल-अचल संपत्ति बढ़ाने के अलावा है ही क्या? आपने पढ़ा ही होगा कि पिछले चुनाव में हारे और जीते सभी नेताओं की एक नम्बर की संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ ही रही है, नामांकन के आंकड़े तो यही बता रहे हैं। जबकि नामांकन में दो नम्बर की सम्पत्ति का उल्लेख करना अभी तक जरूरी नहीं किया गया है।

12 नवम्बर, 2013

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