Saturday, November 23, 2013

चुनावी अटकलें-दो

जिले की श्रीडूंगरगढ़ सीट पर मुकाबला इस बार भी स्पष्ट है। पिछली बार भाजपा यह सीट समझौते में इनलोद को नहीं देती तो हो सकता था परिणाम दूसरा होता। भाजपा के पूर्व विधायक और वर्तमान में प्रत्याशी किसनाराम नाई 2008 के चुनावों में बागी होकर निर्दलीय लड़े और कांग्रेस के मंगलाराम से 10,618 वोट कम लेकर दूसरे स्थान पर रहे। 2008 के चुनाव में की यह भूल भाजपा ने तत्काल सुधार ली और किसनाराम को पार्टी में लेकर नगरपालिका की अध्यक्षी जितवा दी। भाजपा इस बार भी भूल करने की मानसिकता में थी। इस सीट से वह किसी जाट समुदाय के उम्मीदवार को उतारना चाहती थी। यदि ऐसा होता तो हो सकता था परिणामों में पिछले चुनावों से कोई ज्यादा अन्तर नहीं आता। भाजपा ने समझदारी दिखाई और किसनाराम की उम्रदराजी को नजरअंदाज कर मैदान में उन्हें उतार दिया। हालांकि जाट प्रभावी इस जिले की सात में से जाट समुदाय को सिर्फ एक सीट लूणकरनसर देकर सोशल इंजीनियरिंग में भाजपा चूकी हैं क्योंकि भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने सात में से तीन सीटों पर जाट समुदाय को उतार कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह जाटों का खयाल रखती है। यह संदेश जाट समुदाय किस तरह ग्रहण करता है, देखने वाली बात होगी।
श्रीडूंगरगढ़ से कांग्रेस के प्रत्याशी मंगलाराम जाट समुदाय से हैं और लगातार तीन बार विधायक रह कर चौथी बार विधानसभा में पहुंचने के लिए लगे हैं। अब तक हुए 12 चुनावों में दो बार (1993 1998) के अलावा दस बार यहां से विधायक जाट समुदाय से ही रहे हैं। दो बार मूल पिछड़ा वर्ग से आने वाले किसनाराम भाजपा की उम्मीदवारी पर विजयी रहे और क्षेत्र में उनकी अपनी पैठ भी है। इसी के चलते पार्टी ने अस्सी के लगभग के किसनाराम को ही फिर मैदान में उतारा है। किसनाराम पहले भी दोनों बार जाटों के अलावा वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ लेकर जीते हैं यह अटकल वे इस बार फिर आजमाएंगे।
मंगलाराम ने पहला चुनाव अपनी छवि और मिलनसारिता के चलते आसानी से जीत लिया। बाद में 2003 के चुनाव में उन्हें विधायकी हासिल करने में काफी ताण आयी। माना जा रहा है कि तीसरी विधायकी उन्हें भाजपा की भूल के चलते ही हासिल हो पाई। क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि मंगलाराम की पिछली जीत में कुछ योगदान जिला प्रमुख रामेश्वर डूडी का भी रहा। परिसीमन के बाद डूडी प्रभावी नोखा की साढ़े आठ पंचायतें श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में गई थी और खुद डूडी ने नोखा से चुनाव लड़ते हुए भी यथासंभव सहयोग मंगलाराम को दिया था। डूडी की वह सौजन्यता इस बार नहीं दीख रही है। अलावा इसके लगातार तीन बारी विधायकी और पांच साल कांग्रेस की सरकार के चलते एंटी इंकम्बेंसी भी मंगलाराम के लिए प्रतिकूल है। मंगलाराम के लिए इसके अलावा जो नकारात्मक पक्ष है वह यह कि क्षेत्र के जाटों के कुछ प्रभावी समूह उनसे नाराज हैं और वे कुछ अलग ठाने हुए हैं। मतदान की तारीख तक मंगलाराम उन्हें शायद ही मना पाएं। जिले में जो तीन पुराने घाघ राजनीतिज्ञ अपने अन्तिम चुनाव की दुहाई देकर वोट मांग रहे हैं उनमें किसनाराम भी एक हैं। इस तरह की भावुकता वोटर पर कुछ तो काम करती ही है। कुल मिलाकर लग यही रहा है कि मंगलाराम के लिए इस बार विधानसभा की राह आसान नहीं है।

23 नवम्बर, 2013

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