Wednesday, July 10, 2013

शहर को मुस्तैद पुलिस महकमे की जरूरत

बीकानेर शहर में महिलाओं के गले से चेन झपटने की कल ही तीन घटनाएं हुईं। पुलिस की ओर से ऑफ रिकार्ड यह तर्क दिया जा सकता है कि लूट, चोरी, चेन झपटना और जेबतराशी की इस प्रकार की घटनाएं ना केवल बीकानेर में बल्कि देश के विभिन्न शहरों, कस्बों में आए दिन घटित होती रहती हैं। अगर यहां भी ऐसा हो रहा है तो हाय तौबा क्यों। प्रथम दृष्टया बात में दम लगता है। तार्किक रूप से यदि इस बात को सही भी मान लें तो फिर उन्हें यह मानने से भी इनकार नहीं करना चाहिए कि पुलिस महकमे के रहते ही यह सब हो रहा है तो इस महकमे की जरूरत क्या है? कुछ स्याणें यह कह सकते हैं कि पुलिस है तो कुछ कन्ट्रोल तो है अन्यथा यह घटनाएं बढ़ती जाएंगी। बात तो सही यह भी लगती है। रोडवेज बसों में लिखी वह हिदायत जिसमें चेताया होता है कियात्री अपने सामान की खुद रक्षा करेंकी तर्ज पर एक समाधान तो यह सुझाया जा सकता है कि सभी लोग अपनी-अपनी सावचेती खुद बरतें। जंगलों में रहने वाले आदिवासी और आधुनिक सुविधाओं और व्यवस्थाओं से दूर रहने वाले लोग आज भी इसी तरह रहते हैं कि नहीं! फिर यह शहरी और कस्बाई लोग खुद अपने जिम्मे क्यों नहीं रह सकते?
उक्त जुगाली की जरूरत इसलिए पड़ी कि बीकानेर का पुलिस महकमा पिछले एक अरसे से अपनी धाक और धमक बनाए रखने में असफल रहा है। इस मुद्दे पर विनायक ने अपने सम्पादकीय के माध्यम से एक से अधिक बार आगाह भी किया है। हो सकता है पुलिस महकमा अपनी जानकारी में मुस्तैद हो। लेकिन राज चाहे सामन्ती हो या लोकतान्त्रिक, लोक में उसका आभास जरूरी होता है। इसी हवाले से बात करें तो बीकानेर शहर में पिछले एक अरसे में लगातार और बेधड़क हो रही घटनाएं इस आभास को लगातार खत्म करती जा रही हैं। शहर में हो रही ऐसी वारदातें पुलिस महकमे के उस आप्तवाक्य को उलटती दीख रही हैं जिसमें कहा गया है किआमजन में विश्वास, अपराधियों में डर।क्योंकि अब लगने यह लगा है किआमजन में भय, अपराधियों में विश्वास
शहर के पुलिस महकमे की स्थिति बड़ी विचित्र है। सीओ सिटी के पास एक साथ कई महकमे हैं तो शहर के कई थानों में सक्षम अधिकारी ही नहीं हैं। ट्रैफिक पुलिस का महकमा लगता है शहर में केवलनिजीऔर महकमे की उगाही के टारगेट को पूरा करने के लिए ही है। ऑफ रिकार्ड वे कहते भी हैं कि स्टाफ ही इतना कम है कि या तो उगाही करवालो या ट्रैफिक व्यवस्था सुधरवा लो। यह महकमा कुछ करना भी चाहे तो यहां के नेता कुछ करने नहीं देते। निजी बसों ने जगह-जगह स्टैंड बना लिए, और तो और वे बीच चौराहों और सड़कों पर बेतरतीब खड़े होने से भी बाज नहीं आते। मोटरसाइकिल सवार हेलमेट तो लगाएं ना लगाएंढाटेजरूर बांधेंगे अब इनढाटोंमें चोर और साहूकार का पता भी नहीं चलता। पता तो हेलमेट में भी नहीं चलेगा। वैसे कहने वाले कह सकते हैं किचोर-साहूकारकी तख्ती कौन-सी ललाट पर लगी होती है जो बिना हेलमेट और बिनाढाटेवालों में आप फर्क कर लेंगे! बात तो यह भी सही-सी लगती है।
इस तरह जब सभी बातें सही लगें तब ही तो ऊपर कहा है कि राज की धाक का होना जरूरी है, और यह धाक आधा काम यूं ही कर देती है। बीकानेर के पुलिस महकमे की यह धाक कैसे कायम हो, यह एसपी को भी सोचना चाहिए और इसी शहर में बैठने वाले आईजी को भी विचारना चाहिए। यह बात अलग है कि इस महकमे ने यदि यह ठान रखी हो कि इस चुनावी साल में अराजकता का माहौल बना रहेगा तो जनता इस राज से छुटकारे की ठान लेगी।
लगता यह भी है कि एसपी की तरह यहां के आईजी भी अपना टाइमपास कर रहे हैं अन्यथा जिस रेंज के ये आईजी हैं उसी रेंज में यह बीकानेर शहर भी आता है, और इस शहर में फिलहाल ना तो कोई ट्रैफिक व्यवस्था है और ना ही कानून व्यवस्था!

10 जुलाई,  2013

1 comment:

maitreyee said...

लाजवाब!!