Saturday, July 27, 2013

निजी स्कूल : खारा-खारा थू

कल के हवाले से आज के अखबारों में खबर है कि निजी स्कूलों के विद्यार्थियों को घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुंचाने वाली बसों के ऑपरेटरों ने हड़ताल कर दी। हड़ताल का जो कारण दिया जा रहा है वह बड़ा विचित्र है। ये बसें जिन स्कूलों के विद्यार्थियों को लाती ले जाती हैं, वे स्कूल इन बसों की साख भरने को तैयार नहीं है। मतलब वे यह लिखकर देने से इन्कार करती हैं कि फलां बस हमारे स्कूल के विद्यार्थियों को लाती ले जाती हैं। जबकि परिवहन विभाग ने ऐसा जरूरी इसलिए कर दिया कि कुछ अनियमितता या दुर्घटना होने पर सम्बन्धित स्कूल भी अपना उत्तरदायित्व समझें।
सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटीफुलनेस या कहें ज्यों-ज्यों कर्त्तव्यपरायणता घटती गई उसका बड़ा असर सरकारी स्कूलों की साख पर भी कम नहीं पड़ा है। आज से पचास साल पहले निजी स्कूल स्थापित करना और उसे चला पाना इतना आसान नहीं था। सरकारी स्कूलों की प्रतिष्ठा इतनी हुआ करती थी कि उनमें दाखिला लेने के लिए मेरिट में दर्ज होना पड़ता था। शहरों में तो ये निजी स्कूल इक्का-दुक्का फिर भी मिल जाती थी पर गांवों में तो हाल के बीस-पचीस सालों पहले तक ढूंढे नहीं मिलती थी।
जब से सरकारी स्कूलों के अध्यापकों ने नियत खराब की है तब से ना केवल शहरों में बल्कि गांवों में भी ये निजी स्कूलें कुकुरमुत्ते की तरह नजर आने लगी हैं। इन निजी स्कूलों के स्टाफ की स्क्रीनिंग की जाय तो अधिकांश अध्यापक अध्यापकी के तय मानकों से कम पाए जाएंगे। गैर बाल मनोवैज्ञानिक उपायों से परिणाम देकर प्रतिष्ठा हासिल कर चुकी इन स्कूलों की दादागीरी चिन्ताजनक है और सरकारी स्कूलों की बदत्तरी के चलते अभिभावकों के पास ऐसी तथाकथित प्रतिष्ठित स्कूलों का कोई विकल्प नहीं होेता। नहीं तो ये निजी स्कूल, जो मोटी फीस और अन्य कई तरीकों से वसूली करते हैं, क्यों नहीं इन बच्चों के आवागमन की जिम्मेदारी लेती हैं। अभिभावक अपने बच्चों के लिए अच्छे स्कूल के लालच में इन स्कूलों की हर मनमानी बर्दाश्त करते हैं और ये स्कूल शेष अन्य धंधों की तरह यह नियत बना चुके हैं कि मीठा-मीठा गप्प और खारा-खारा थू। समाज इस तरह की धंधाई आदतों को चुनौती देना शुरू नहीं करेगा तो स्थितियां बद से बदत्तर होती जाएंगी और समाज में भुगतभोगियों की संख्या भी। फिलहाल तो भुगतने वाले अकेले पड़ जाते हैं। स्कूल की और इंदिरागांधी नहर परियोजना कार्मिकों की लापरवाही का शिकार मृतक विद्यार्थी यशदवे के भुगतभोगी परिजन, हाल ही का ऐसा उदाहरण हैं।
27 जुलाई,  2013


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