Friday, July 26, 2013

कल्याण भूमि प्रन्यास

डॉ बोथरा जैसे ही एक शख्स और हैं बीकानेर में, किशोर गांधी। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की लेखा सेवा से सेवा निवृत्त हैं। पुत्र को उसकी युवावस्था में खो देने के बाद से ही वह एक ऐसी सेवा में लग गये, जिससे सामान्यतः लोगबाग बचना चाहते हैं।
इस परम्परागत शहर में श्मशान भूमियां जातीय आधार पर रही हैं, जिन समाजों और एकलों के लिए ऐसा स्थान नहीं था उनके लिए दाह संस्कार का एक ही स्थान था-परदेशियों की बगेची। हालांकि अब तो चौखूंटी स्थित आचार्यों की बगीची के साथ-साथ और भी कई श्मशान भूमियां अन्यों के लिए खोल दी गई है। चौतरफा फैलते इस शहर में रानी बाजार स्थित यह परदेशियों की बगेची तब ना केवल एक तरफ पड़ने लगी बल्कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए विभिन्नों समाजों के कारण वहां दाह संस्कार के लिए स्थानाभाव भी रहने लगा। ऐसे में किशोर गांधी ने अपने पुत्र का दाह संस्कार लीक से हटकर कैनाल कॉलोनी और लालगढ़ स्टेशन के बीच खाली पड़ी भूमि पर किया और उस भूमि को नगर विकास न्यास से आवंटित करवा कर शहर के सबसे बड़ी और विभिन्न सुविधाओं से युक्त श्मशान भूमि के रूप में विकसित किया-करवाया। इसी श्मशान भूमि में अब लावारिस शवों का दाह संस्कार भी होता है। किशोर गांधी इस कल्याण भूमि को जिस व्यवस्थित रूप से चलाते हैं वह प्रेरणा लेने योग्य है। किशोर गांधी का घर जयनारायण व्यास कॉलोनी में है, इसकी कोई गिनती नहीं है कि वह दिन में अपने घर से लूना मोपेड पर कल्याण भूमि कितनी बार आते-जाते हैं। कैसे लकड़ियों की व्यवस्था करते हैं और कैसे घी की? जैसे कोई व्यक्तिगत काम हो उनका। पिछले एक अरसे से वे वहां विद्युत शवदाह उपकरण लगाने को प्रयासरत हैं ताकि लकड़ियों की उपलब्धता का झंझट कम हो। नगर विकास न्यास ने इसकी घोषणा भी कर रखी है, लेकिन इसके बावजूद पता नहीं क्यों यह काम सिरे नहीं चढ़ रहा। अरे मकसूदजी ऐसे कामों को सरकारी कामों की चाल में ना चलाओ। डॉ विजय बोथरा और किशोर गांधी जैसे लोगों की फोटो कॉपियां नहीं हो सकती। ऐसे लोग स्थानीय भाषा में फड़दी कहलाते हैं।

26 जुलाई,  2013

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