Friday, April 3, 2015

कुम्हार मोहल्ले की महिलाओं के बहाने नशे-पत्ते की बात

बीकानेर के उपनगरीय क्षेत्र गंगाशहर में कुम्हार मोहल्ले की महिलाओं ने कल अनोखी पहल की। मोहल्ले की देशी शराब की दुकान के आगे धरने पर बैठ भजन-कीर्तन करने लगीं। सत्याग्रह के इस अनोखे तरीके ने सभी का ध्यान खींचा। लेकिन लगता है प्रशासन और मादक पदार्थों की बिक्री का संयोजन करने वाला आबकारी विभाग सिवाय आश्वासन देने के कुछ नहीं कर पा रहा है।
पिछले वित्तीय वर्ष में भी शराब का यह ठेका यहीं था। पूरे वर्ष मोहल्लेवासी अपना विरोध जताते रहे। 31 मार्च को अनुबन्ध खत्म होने पर छुटकारे की उम्मीद थी। एक अप्रेल को वही ठेकेदार उसी दुकान पर शराब की बिक्री फिर करने लगा तो पुरुषों से ज्यादा महिलाएं अपने को ठगा महसूस करने लगी। महिलाओं ने गर हिम्मत नहीं हारी तो प्रशासन और आबकारी विभाग कुछ करे करे, सम्बन्धित ठेकेदार को स्थान जरूर बदलना-बदलवाना पड़ सकता है।
भ्रष्टाचार और लोक लुभावन योजनाओं के चलते सरकारें आर्थिक तौर भारी दबाव में रहती हैं। अर्थव्यवस्था का बाजारू मॉडल ऐसे क्रियाकलापों को अनुकूलता भी देता है। तीन दशकों से लागू नई आर्थिक नीतियों ने सरकारों को मजबूर कर दिया है कि वे बात भले ही नैतिकता की करें पर खयाल बाजार का ही करें। ऐसे में सरकार का ध्यान केवल और केवल राजस्व पर टिका है क्योंकि शराब की बिक्री से सरकार के खजाने में मोटी रकम जो आती है। इसी लोभ में दुकानों के लिए तय मानकों को जहां आबकारी विभाग नजरअन्दाज करता है वहीं अन्यथा मुस्तैद रहने वाला महकमा यथा स्थानीय प्रशासन और पुलिस गूंगे की भूमिका में लेते हैं। ऐसे में ऊपर की कमाई का लालच रखने वाले दो नम्बरियों को फायदा अलग हो जाता है। उन्हें इन ठेकेदारों से उगाही का बहाना मिल जाता है।
सामान्यत:, समाज में नशे की सभी वस्तुओं को हिकारत से देखा जाता है। केवल अभिभावक बल्कि समाज के बड़े बुजुर्ग और यहां तक कि प्रभावी धार्मिक-सामाजिक समूह भी जब तब नशे-पत्ते के खिलाफ कहते-सुनते और अभियान चलाते रहते हैं। बावजूद इसके देखा गया है कि पिछले दो-तीन दशकों से विकसित हुई नई जीवन शैली में इनका उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। मोहल्ले के संगी-साथियों की संगत में जर्दा-खैनी और गुटकों के रूप में चोरी-छिपे सीखी ऐसी आदतें कुछ नया करने की सनक में सिगरेट, गांजा, अफीम, डोडा पोस्त, भांग से होती शराब पर ही नहीं रुकती। बहुत से लोग सर्वथा प्रतिबन्धित हेरोइन, ब्राउन शुगर की लत में पड़ जाते हैं। अलावा इसके कुछ अंग्रेजी दवाइयां भी ऐसी हैं जिनका आदमी आदतन शिकार हो जाता है। देखा गया है कि एक स्थिति के बाद नशे की लत के शिकार कई अपनी अनुकूलताओं और आर्थिक गुंजाइश के हिसाब से नशा बदल कर ऐसे किसी नशे पर स्थिर हो लेते हैं जिसे सुविधामय समझते या जैसे-तैसे हासिल करने की सामथ्र्य रखते हैं। लेकिन जब वह नशे की वस्तु बदल सकते हैं तो उसे छोडऩे का संकल्प क्यों नहीं कर पाते, ऐसा नहीं है कि यह असंभव है। कई लोगों को देखा है कि वे मन में धार कर तीस-चालीस वर्ष पुरानी नशे की लत एक झटके में छोड़ देते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनको अपने पर पूरा भरोसा नहीं होता पर वे धीरे-धीरे कर छोड़ देते हैं।
आर्थिक तौर पर मध्यम और कमजोर परिवार को किसी एक की ऐसी लत बहुत कुछ सामान्य सुविधाओं या जरूरी पौष्टिक खाद्य से वंचित कर देती है तो कइयों को स्थाई कर्जे का शिकार बना देती है। इस तरह कई चोरी चकारी और धोखाधड़ी जैसे कुकृत्यों में भी पड़ जाते हैं। बावजूद इसके यह सब नशे-पत्ते केवल धड़ल्ले से चल रहे हैं, बल्कि नयी जीवन-शैली और नया आर्थिक ताना-बाना इन सबके लिए अनुकूलता बढ़ा रहा है।
वर्तमान में सब से बुरा यह हो रहा है कि ऐसी आदतों को अब हिकारत से नहीं देखा जाता बल्कि कुछेक इसे प्रतिष्ठा के रूप में प्रतिष्ठ करने लगे हैं। ऐसे में छुटकारा खुद की उकत से होगा ही फिर वह चाहे खुद के लिए हो या फिर जैसे गंगाशहर कुम्हार मोहल्ला हो बाशिन्दों ने महिलाओं को आगे कर मोहल्ले के लिए कुछ करने की ठानी। आज के इस जमाने में नियम-कायदे, कानून व्यवस्था भी आपको तभी सहारा देते हैं जब सतत रूप से खुद लगे रहेंगे। नहीं तो कानून-व्यवस्था में लगे लोगों के इशारों में हिदायत यही होगी कि जैसा चलता है-चलने दो।

3 अप्रेल, 2015

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