Friday, April 24, 2015

चादर चढ़ाई, केदार यात्रा और लोकतांत्रिक मूल्य

अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मजार पर आठ सौ तीन वां उर्स इन दिनों चल रहा है। ख्वाजा की इस दरगाह पर दुनिया भर से श्रद्धालु अपनी अकीदत का इजहार करने आते हैं। यूं कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह दरगाह सेलिब्रिटिज की श्रद्धा का केन्द्र होती जा रही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जब चुनाव जीतकर इस बार पद संभाला तो वे संभवत: मन्नत के अनुसार सजदा करने आए। फिल्मी अभिनेता-अभिनेत्रियों से लेकर धनाढ्य-नव धनाढ्य सभी यहां होकर जाते ही हैं। अभी उर्स के मौके पर जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से चादर चढ़ाई गई तो बड़ी खबर बनी। किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से संभवत: पहली बार ऐसा किया गया है। इसके दूसरे दिन ही खबर आ गई कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर से भी चादर चढ़ाई जायेगी, दो दिन पहले चढ़ा भी दी गई।
पाठकों को याद हो तो यह वही मोदी हैं जिन्होंने 17 सितम्बर 2011 को उपवास तो शान्ति, एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए किया लेकिन दूसरे ही दिन उपवास स्थल पर पहुंचे मौलवी ने जब उन्हें इस्लामी टोपी पहनानी चाही तो मोदी ने न केवल इनकार कर दिया बल्कि उस दिन उनके चेहरे पर कसैलापन भी टीवी दर्शकों ने देखा। तब ‘विनायक’ ने अपने 20 सितम्बर, 2011 के सम्पादकीय में मोदी के लिए लिखा कि ‘वे यह सब जिस सद्भावना की आड़ में कर रहे थे उसके रंग में भंग डालने को एक इमाम पहुंच ही गये। उन्होंने सोचा होगा कि मोदी के इस्लामी टोपी पहने हुए फोटो-वीडियो का श्रेय उन्हें मिल जायेगाˆमिल भी सकता था। लेकिन समय उन्होंने गलत चुन लियाˆउनको समझना चाहिए था कि मोदी खुद इस समय अपनी पार्टी के सभी वरिष्ठों को टोपियां पहनाने में लगे हैं, तब वे उन इमाम साहब से टोपी पहनने का समय भला कैसे निकाल सकते थे।’
यद्यपि इसके बाद मोदी ने अपने सिर के शृंगार का जो सिलसिला शुरू किया वह अभी तक नहीं थमा है। फेसबुक पर कोई पैंतीस-चालीस प्रकार की पगड़ियां-टोपियों में उनके फोटुओं का कोलाज देखने को मिल जाता है लेकिन इस्लामी टोपी पहनाने की हिमाकत अभी तक किसी ने की नहीं। ‘विनायक’  के सितम्बर, 2011 के उक्त संपादकीय में व्यंग्य में कही वह बात सितम्बर, 2013 में तब साबित होते दीखी जब भाजपा ने गोवा की अपनी बैठक में मोदी को चुनाव अभियान समिति का मुखिया बना ही दिया। यानी उन दो वर्षों में मोदी ने पार्टी के लगभग सभी वरिष्ठों को टोपियां पहना ही दी। सभी जानते हैं कि इसके बाद वे पूरे देश को टोपी पहनाने में सफल हो गये।
खैर, बात चादर चढ़ाने की चली है तो ये बता दें कि कल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से भी चादर चढ़ा दी गई तो दूसरी ओर विपश्यना से लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कल से केदारनाथ धाम की पदयात्रा पर हैं। जैसाकि ‘विनायक’ कहता आया है कि श्रद्धा-आस्था निहायत व्यक्तिगत मसले हैं इन्हें व्यक्तिगत ही बरतना चाहिए। खासतौर पर उन्हें जो शासन में है। लेकिन देखा गया है इन्दिरा गांधी के बाद से इस पर सावचेती बरता जाना लगभग बन्द हो गया है जो संवैधानिक तौर पर घोषित सेकुलर राष्ट्र के लिए जरूरी है। इस सेकुलर शब्द की व्याख्या पर मतभेद हो सकता है। इसके लिए हिन्दी में प्रचलित शब्द धर्मनिरपेक्ष पर कई एतराज जताते हैं तो कइयों का मानना है कि इसे पंथ निरपेक्ष मानना ज्यादा सही होगा। जाने-माने कोशकार अरविन्द कुमार ने अपने अंग्रेजी-हिन्दी के नये कोश में सेकुलर का केवल एक अर्थ राष्ट्रवादी ही दिया है। जबकि फादर कामिल बुल्के लौकिक, ऐहिक, सांसारिक-दुनियावी, धर्मनिरपेक्ष शब्द को धर्म विरुद्ध कहते हैं। अरविन्द कुमार बुल्के के इन अर्थों के लिए सेकुलरिज्म शब्द का प्रयोग करते हैं।
शब्द-विमर्श के इस उलझाड़ को एक बार छोड़कर इस पर विचारें कि एक सच्चे मानववादी लोकतंत्र में, जहां आस्था-श्रद्धा प्रकट करने के हजारों तौर-तरीके हैं, वहां के शासकों और राजनेताओं को इस तरह खुलेआम अपनी आस्था का प्रदर्शन करने से बचना चाहिए। बराक ओबामा से लेकर नवाज शरीफ, नरेन्द्र मोदी, सोनिया और राहुल गांधी में से चाहे कोई होंˆसरकारी आयोजनों में धार्मिक प्रतीकों से दूरी बनाये रखना लोकतांत्रिक मूल्यों का तकाजा बनना चाहिए। देखा गया है कि आज इसे पूरी तरह नजर अंदाज किया जाने लगा है।
और अंत में यूं ही : नवाज की पिछली अजमेर यात्रा के दौरान संप्रग-2 की सरकार ने जब जयपुर में दिए खाने में उन्हें बिरयानी परोसी तो भाजपा ने एतराज जताते खूब प्रचारित किया था। यहां यह जानने की उत्सुकता जरूर है कि प्रधानमंत्री मोदी के न्योते पर उनके शपथ-ग्रहण में जब नवाज आये तो हैदराबाद हाउस में उन्हें दिए गये भोज का मैन्यू क्या था।
24 अप्रेल, 20

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