Tuesday, April 14, 2015

ओम थानवी को बिहारी सम्मान

यूं तो ओम थानवी इस दुविधा में लगातार पाए जाते रहे हैं कि वे अपने को फलोदी का कहें या बीकानेर का। हम बीकानेर वालों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। ओम थानवी की किशोरावस्था और तरुणाई दोनों यहां गुजरे हैं, जाहिर है शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई। नाटक भी यहीं खेले तो पत्रकारिता का औपचारिक-अनौपचारिक प्रशिक्षण भी उन्होंने यहीं हासिल किया। आज वे देश के शीर्ष सम्पादकों में गिने जाते हैं। हिन्दी में सर्वाधिक प्रतिष्ठ 'जनसत्ता' के वे कार्यकारी सम्पादक हैं। विश्व के लगभग तमाम हिस्सों में घूम चुके हैं लेकिन सहोदर देश पाकिस्तान सम्भवत: उन्हें सर्वाधिक आकर्षित करता है। प्रमाण में हम कह सकते हैं कि इस भारतीय भू-भाग की प्राचीनतम सिन्धु घाटी सभ्यता जिसके अवशेष अब पाकिस्तान में रह गये हैं--की अपनी यात्रा के संस्मरण उन्होंने पहले 'जनसत्ता' में धारावाहिक प्रकाशित करवाए और बाद में वे 'मुअनजोदड़ो' नाम से पुस्तकाकार में आए। जब 'जनसत्ता' में छपे तब भी इसलिए सराहे गये कि उन्होंने यात्रा वृत्तांत की केवल अलग शैली अपनाई बल्कि  इतिहास-अन्वेषक दृष्टि का भी परिचय दिया। इसी पुस्तक को वर्ष 2014 के बिहारी सम्मान के लिए चुना गया है। यह सम्मान केके बिड़ला फाउण्डेशन प्रतिवर्ष राजस्थानी मूल के ऐसे लेखक को देता है, जिनकी कोई उल्लेखनीय पुस्तक हिन्दी या राजस्थानी में छपी हो। पुरस्कार की राशि एक लाख रुपये है। इस घोषणा पर पूरे बीकानेर और पड़ोस के फलोदी कस्बे की ओर से भी गद्गद भाव जाहिर करने से 'विनायक अपने को नहीं रोक पा रहा है।

14 अप्रेल, 2015

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