Tuesday, February 25, 2014

अर्जुन मेघवाल ने अभी उड़ती-उड़ती ही देखी है !

बीकानेर पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी ने मित्रों के बीच अनौपचारिक बातचीत में कोई तीसेक वर्ष पहले कहा था कि पार्टी के पक्ष में माहौल हो तो पार्टी उम्मीदवार के लिए चुनाव जीतना आसान होता है और माहौल पार्टी के पूरी तरह खिलाफ हो तो उम्मीदवार चाहे जितना तगड़ा हो और चाहे कितने ही पापड़ बेल ले, जीत की गारंटी नहीं होती। गोपाल जोशी तब कांग्रेस में ही थे और अपने सालों के दिए घावों को सहलाने कभी कोलायत तो कभी लूणकरणसर क्षेत्रों को आजमाते रहते थे।
जोशी की उक्त बात का स्मरण लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ से सांसद अर्जुनराम मेघवाल के हवाले से हो आया है। प्रदेश में माहौल अभी भी भाजपा के पक्ष में है, इस हिसाब से देखें तो अर्जुन मेघवाल की जीत में कोई बड़ा संशय नहीं होना चाहिए। ऐसा लग इसलिए नहीं रहा है कि भाजपा के अपने आंतरिक सर्वे के हिसाब से बीकानेर सर्वाधिक कमजोर लोकसभा क्षेत्र माना गया है। अलावा इसके पिछले सप्ताह के अन्त में पार्टी द्वारा लिए फीडबैक में भी उम्मीदवार के रूप में अर्जुन मेघवाल की प्रथम वरीयता बहुत कम कार्यकर्ताओं ने बतलाई। सूत्रों की मानें तो बीकानेर की सातों विधानसभा सीटों के जीते-हारे पार्टी उम्मीदवारों ने अर्जुन मेघवाल के प्रति भरोसा जताया और ही भरोसा दिया। कहते हैं बीकानेर के पार्टीजन आम राय से अर्जुन मेघवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ पाए गए हैं।
अभी जब माहौल पूरी तरह भाजपा के पक्ष में दिख रहा है। ऐसे समय में वर्तमान सांसद अर्जुन मेघवाल का पार्टी में अपनी साख बनाए रख पाना उनकी व्यवहारगत कमियों का ही परिणाम कहा जा सकता है। उन्हें लगता रहा कि अपने दिखाऊ तौर-तरीकों के आधार पर अपनी स्थितियां बनाए रख सकते हैं। वह गलतफहमी साबित हो सकता है। विधानसभा से लोकसभा क्षेत्र की परिस्थितियां एकदम भिन्न होती है और उन्हें साधना आसान नहीं होता। ऐसे में मौजूदा सांसदी के आधार पर पार्टी उन्हें उम्मीदवारी दे भी दे तो पार्टी के इस अनुकूल माहौल में भी केवल अपने बूते बिना पार्टीजनों और पार्टी दिग्गजों की अनुकूल मानसिकता के जीतना आसान नहीं होगा और तब यह और भी मुश्किल है जब नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी इसे अपनी नाक बचाने की सीट मान लें! जिसकी पूरी संभावना लगती है। इसके उलट यदि भाजपा पार्टीजनों-वरिष्ठों की राय को तवज्जो देकर अर्जुन मेघवाल को यहां से चलता कर दे तो रामेश्वर डूडी के लिए अपनी साख बचाना यहां भारी हो सकता है। क्योंकि तब उन सब भाजपाइयों की नाक पर बन आयेगी जो अर्जुन मेघवाल की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं, केन्द्र की कांग्रेस सरकार के विरोध का माहौल उनके लिए अनुकूलता का सबब बनेगा ही।
कुल मिलाकर अर्जुन मेघवाल ने अपना पांच साल का कार्यकाल पता नहीं किस वहम में निकाल लिया कि क्षेत्र में शुभचिन्तक कम और पार्टी में ही पुरजोर प्रतिकूल माहौल बना लिया। पिछले सप्ताह के फीडबैक के बाद शायद उन्हें अपनी शातिराना हेकड़ी के परिणामों की आशंकाएं घेरने जरूरी लगी होंगी जब उन्हें केन्द्र में राजग की बनती सरकार में मंत्री बनने की पात्रता बिना चुनाव लड़े और जीते हासिल करना दूर की कौड़ी लगे। व्यावहारिक राजनीति की पेचीदगियां लोक में प्रचलित उस जुमले जैसी ही हैं जिसमें कहा जाता है कि 'फंसती नहीं देखी'

25 फरवरी, 2014