Saturday, February 22, 2014

डूडी के बहाने कांग्रेस की बात

प्रदेश कांग्रेस संगठन की गत के बारे में कल बात की थी, आज विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी के बहाने प्रदेश और बीकानेर कांग्रेस की बात कर लेते हैं। अपनी चतुराई के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट यह आभास नहीं होने दे रहे हैं या कहें कि उन्हें दी गई जिम्मेदारी को लोक में प्रचलित उस कैबत की कसौटी से बचाए हुए हैं जिसमें कहा जाता है कि सेर की हांडी में सवा सेर उरीज गया है। इससे उलट हमारे जिले के जाट नेता रामेश्वर डूडी विधानसभा के एक सत्र और मनोनयन के थोड़े समय में ही अपना आपा देने लगे हैं। कुल इक्कीस विधायकों के कुनबे को वह सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं और ही सरकार को यह एहसास दिलाने में सफल हुए हैं कि संख्याबल में वे भले ही कम हों पर सदन में मजबूत विपक्ष का एहसास कराने से नहीं चूकेंगे। डूडी को अब समझ लेना चाहिए कि नेतृत्व क्षमता में सफलता हेकड़ी से नहीं सामंजस्य से हासिल होती है अन्यथा प्रदेश में प्रदेश अध्यक्षों और नेता विपक्ष की फेहरिस्त में दर्ज भर होकर रह जाएंगे।
डूडी के नेतृत्व की कई कसौटियां तत्पर हैं। दो माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव परिणाम के मद्देनजर बात करें तो खोने को उनके पास कुछ नहीं हैं, हासिल वे जितना भी करेंगे उनके और सचिन के खाते को रोशन करेगा। खासतौर से जाट प्रभावी लोकसभा क्षेत्रों में डूडी के करतब की पड़ताल होगी। उनमें भी बीकानेर लोकसभा सीट को खुद डूडी नाक का बाल माने या माने, मीडिया, पार्टी और पार्टी में उन्हें कसौटी पर देखने वाले वैसा माहौल बना ही देंगे।
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र सुरक्षित सीट होते हुए भी कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए विशेष क्षेत्र लगभग घोषित हो गया है। डूडी के विपक्ष के नेता बनने से पहले ही भाजपा ने प्रदेश की पचीस में से बीकानेर को उन दो सीटों में मान लिया जहां पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं मानी जा रही। जबकि यहां के सांसद अर्जुन मेघवाल अपने मीडिया मैनेजमेंट भर से खुद को प्रदेश के दिग्गजों में शुमार करवाने लगे हुए हैं। कांग्रेस के लिए यह क्षेत्र इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो गया कि विपक्ष के नेता का केवल यह क्षेत्र रहा बल्कि सामान्य सीट के रहते हुए वे यहां से प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। जाट प्रभावी इस क्षेत्र को कांग्रेस ने देश के उन पन्द्रह लोकसभा क्षेत्रों में माना है जहां का उम्मीदवार पार्टी कार्यकर्ताओं के बहुमत से तय होगा। हालांकि जिस तरह की प्रक्रिया चल रही है उसमें अमृत की उम्मीद तो इसलिए बेमानी होगी क्योंकि जो नाम सामने आए है उनके अनुसार फिस्स हुओं में से ही पार्टी को चुनना है, कोई टिमटिमाता उम्मीदवार क्षेत्र को मिलेगा उम्मीद कम ही है। ऊपर से यदि कोई उम्मीदवार डूडी की मंशा के खिलाफ का गया तो डूडी उन नेताओं में से हैं जो भोजाई का नखरा भांगने के लिए भाई के मरने की आकांक्षा करते देर नहीं लगाते। अब डूडी को ही तय करना है कि उन्हें इतिहास बनाना है या इतिहास में दर्ज भर होना है। करतूतें तो वह दर्ज होने की करते रहे हैं अन्यथा कम से कम बीकानेर के मामले में तो उन्हें अपने काळजे को विस्तार देना चाहिए।

22 फरवरी, 2014

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