Monday, February 24, 2014

वसुन्धरा की कवायद का लक्ष्य

लोकसभा चुनावों को लेकर जैसी चेतनता भारतीय जनता पार्टी में नजर रही है, वैसी अन्य पार्टियों में नहीं, और कम से कम राजस्थान में तो नहीं। विधानसभा चुनावों की फंफेड़ से कांग्रेस अभी तक नहीं निकली है और निकलने के लिए कोई खास जुगत करती भी नहीं दीख रही। आत्मविश्वास की कमी के चलते सूबे की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के व्यवहार में पिछले विधानसभा चुनावों से पहले जो संभाल थी और कदम सधे हुए थे उनमें अब विशेष आत्मविश्वास देखा जाने लगा है। वसुन्धरा सब कुछ कर तो आपमते ही रही हैं लेकिन उन्हें यह एहसास है कि इस बार की सफलता 2003 की सफलता की तरह उनके अकेले दम नहीं है। वसुन्धरा की इस छप्पर-फाड़ सफलता का बड़ा कारक केन्द्र में संप्रग सरकार की साख का बट्टे खाते चले जाना है। वसुन्धरा ने समय रहते शरण- गये पार्टी में चिर विरोधियों को जहां बख्शीशों से नवाजा है वहीं हर वक्त ताल ठोंकने की मुद्रा वाले विरोधियों का बड़ी चतुराई से इलाज भी कर रही हैं। कैलाश मेघवाल और घनश्याम तिवाड़ी को दोनों ही तरह के उदाहरणों में देखा जा सकता है। अशोक परनामी को प्रदेश संगठन की कमान सम्हलाकर उन्होंने यही सन्देश दिया है कि ऐसी नियुक्तियों के मानक में संघ है, पार्टी की वफादारी और ही कोई जातीय आधार। केवल और केवल वसुन्धरानिष्ठ होना जरूरी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह अध्यक्षी के अपने पिछले कार्यकाल की असफलताओं से इतने आतंकित हैं कि इस कार्यकाल को ऐतिहासिक बनाने के लिए सभी कुछ ताक पर लगा बैठे हैं। सिंह के पिछले कार्यकाल में इन्हीं वसुन्धरा ने बार-बार पार्टी अध्यक्ष को ठेंगा दिखाया था। सिंह के हालिया व्यवहार से लगता है उन्होंने भी वसुन्धरा की उन सभी करतूतों को स्मृति पटल से साफ कर दिया है। वसुन्धरा भी अपने मन की करते यह सावधानी बरत रही हैं कि अक्खड़पना -जाए। लेकिन साथ ही साथ बड़ी चतुराई से यह सन्देश भी देने से नहीं चूकती कि करूंगी मैं अपने मन की ही। अशोक परनामी की नियुक्ति के समय भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से कह दिया था कि ऐसे चौंकाने वाले निर्णयों के लिए तैयार रहना चाहिए।
आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर चल रही संगठनी कवायदों में वसुन्धरा ऐसे सन्देश देने से नहीं चूक रहीं कि तथाकथित वरिष्ठों और पार्टीजनों की भावनाओं का ध्यान वह एक सीमा तक ही करेंगी। अफसरी बेड़े के बदलाव के सन्दर्भ में स्पष्ट सन्देश दिया कि पार्टी के कहने से हटा तो दूंगी लेकिन लगाना किसे है यह पार्टी नहीं वह खुद तय करेंगी। वसुन्धरा की ऐसी सक्रियता यदि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर है तो ठीक है और यदि उनकी कार्यशैली में यह स्थाई बदलाव गया हो तो खुद उनकी पार्टी और विरोधी पक्ष कांग्रेस, दोनों के लिए चिन्ता और विचारणीय होना जरूरी है। हो सकता है उनकी यह कवायद 2018 के विधानसभा चुनावों को लक्ष्य करके की जा रही हो।

24 फरवरी, 2014

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