Friday, February 14, 2014

आंध्र के बहाने ही सही मतदाता अपनी ताकत पहचाने

भारतीय संसद की लोकसभा में कल अजब नजारा पेश आया, पर इसे आश्चर्यजनक नहीं कह सकते। आन्ध्रप्रदेश के बंटवारे के खिलाफ रायलसीमा और तटीय आन्ध्र के लोगों के विरोध को अभिव्यक्त करने के लिए उनके चुने प्रतिनिधियों ने कल माइक के एक हिस्से को चाकू की तरह लहराया और दूसरे ने सभी हदें पार करते हुए सदन में काली मिर्च स्प्रै का दुरुपयोग किया। दरअसल आजादी बाद हुए प्रदेशों के गठन के समय रायलसीमा, तटीय आंध्र और तेलंगाना इलाकों को जोड़ कर भाषाई तर्क पर आंध्रप्रदेश का गठन किया गया था। तेलंगाना के लोग तब भी इसके खिलाफ थे, आजादी बाद के उत्सवी माहौल में तो वे पुरजोर विरोध कर पाये और उनकी सुनी गयी। लेकिन तेलंगानाई अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए पिछले साठ से ज्यादा वर्षों से लड़ते रहे और यह विरोध तीव्र से तीव्रतर होता गया। पिछली सदी के अंत में जब छोटे प्रदेशों की धारणा पर विचार होने लगा और उत्तरप्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश के टुकड़े किए गये तो तेलंगाना की मांग करने वालों को नजरंदाज करना नागवार लगा और ये लोग तब सेकरो या मरोकी-सी लड़ाई पर उतर आए हैं।
तेलंगाना गठन के विरोध का मामला अजब इसलिए भी है कि दूसरे दोनों हिस्से इसका पुरजोर विरोध करते आए हैं कि हम तेलंगाना को अलग नहीं होने देंगे। उनका तर्क है कि हैदराबाद जैसा विकसित शहर तटीय आंध्र और रायलसीमा दोनों ही इलाकों में नहीं है और हैदराबाद चण्डीगढ़ की तरह प्रदेशीय सीमाई शहर भी नहीं है, वह तेलंगाना क्षेत्र के लगभग मध्य में पड़ता है। तेलंगानाई अपनी पहचान अलग से इसलिए भी चाहते हैं कि उनके इलाके को मिलने वाले हक हकूक का बंटवारा न्यायसंगत नहीं है और अन्य दोनों हिस्सों के लोग उनके हकों में सेंध लगाते रहे हैं।
यह तो हुई समस्या की पृष्ठभूमि। अब कल की घटना पर जाते हैं। तमाम विरोधी नेता और मीडिया वाले इसे शर्मनाक और काला दिन बताने पर तुले हैं। इस तरह की ग्लानि और पश्चाताप के प्रदर्शन को घड़ियाली आंसू बहाना कहना इसलिए अनुचित नहीं है कि ये अधिकांश सांसद जिन और जिस तरह के हथकंडे अपना कर चुन कर आते हैं, मीडिया और तथाकथित बड़े नेता इसे अच्छी तरह जानते-समझते हैं। उन तौर तरीकों की पड़ताल करेंगे तो आपको भी समझ जायेगा।
चुनाव लड़ने के लिए पैसा बांटना, शराब बांटना, बाहुबलियों का उपयोग करना, फर्जी मतदान करवाना, मतदान केन्द्रों पर कब्जा करना और लगता हो कि कोई बड़ी बाधा बन सकता है तो उसे मरवाने में भी संकोच वे इसलिए नहीं करते हैं कि सोने का अण्डा देने वाली सत्तारूपी मुर्गी कहीं उनके हाथ से नहीं निकल जाये। जब टिकट लेने और चुनाव जीतने के लिए सांसद उक्त हथकंडे अपनाते संकोच नहीं करते तो कल के जैसी हरकत करके आगामी चुनावों में भी जीत सुनिश्चित होती हो तो उसे वे अंजाम भला क्यों नहीं देंगे? आम-आवाम की सेवा ही करनी हो तो उक्त हथकंडों को अपनाने की जरूरत ही क्या है? कल लोकसभा में जिन्होंने यह हरकत की वे सभी सैकड़ों करोड़ रुपयों के मालिक हैं, कब से हैं, रिकार्ड खंगालेंगे तो यह भी पता चल जायेगा। उनका इस स्तर का विरोध भी अपने इलाके की जनता का भावात्मक शोषण भर करने के लिए और अपने आर्थिक हितों की रक्षा भर के लिए है। बेचारी जनता अपने ऐसे प्रतिनिधियों को तीन महीने बाद केवल इसलिए जिता देगी कि इन्होंने उनके हितों के लिए क्या-क्या नहीं किया। इसके अलावा उनके इस चरम विरोध का कोई अन्य कारण है तो बताएं।
रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस के संसद में नेता मनमोहन सिंहमिट्टी के माधोंकी भूमिका में हैं और उनके नेता सोनिया और राहुल ऐसी घटनाओं पर डाफाचूक। उन्हें इन मुद्दों की कोई खास समझ है भी नहीं। भाजपा को किसी भी तरह से अगले चुनावों के बाद सत्ता हासिल करनी है सो उसने इस बार शर्म ही नाख दी है। जिम्मेदारी जनता की है कि वह अपने वोट की ताकत और कीमत समझे... आजादी के इन छियासठ वर्षों बाद तो समझना शुरू करें, अन्यथा यूं ही छली और ठगी जाती रहेगी।

14 फरवरी, 2014

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