Monday, February 10, 2014

गुजरात विकास की असलियत

भारतीय जनता पार्टी के घोषित पीएम-इन-वेटिंग नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री भी हैं। पिछले तीन-चार महीनों से भी ज्यादा समय में मोदी गांधीनगर में कितने दिन रहे और उन दिनों में से भी प्रदेश के राजकाज को कितना समय दिया, इसकी पड़ताल जरूरी बनती है। चूंकि प्रदेश की जनता ने उनमें तीसरी बार अपना भरोसा जतलाया है, इस भरोसे पर खरे उतरने को मोदी अपनी जिम्मेदारी समझते हैं कि नहीं! यदि नहीं समझते हैं तो इसकी क्या गारंटी है कि वे देश के यदि प्रधानमंत्री बन भी गये तो अपनी उस जिम्मेदारी का निर्वहन कितना करेंगे। गुजरात के विकास की पोल जब-तब खुलती रही है। हाल ही में गरीब के गुजारे के प्रतिदिन की रकम ग्यारह से सत्तरह रुपये बताकर गुजरात सरकार ने खुद ही अपने को उघाड़ लिया। गरीब के इसी गुजारे के लिए सत्ताईस, बत्तीस और सैंतीस का आंकड़ा बताने पर केन्द्र सरकार की खिल्ली उड़ानेवाले मोदी और उनकी पार्टी भाजपा को इन आंकड़ों पर सांप क्यों सूंघ गया? वैसे विनायक यह पहले ही बता चुका है कि योजनाएं और बजट बनाने में लगे सरकारी महकमों को इस तरह के आंकड़े पुष्ट करने वाली एजेन्सियां ऐसा अभ्यास करती रहती हैं। इन आंकड़ों का जमीनी हकीकत से वास्ता बहुत ज्यादा नहीं होता है।
मीडिया से सतत वास्ता रखने वाले गुजरात के विकास की असलियत जानते-समझते हैं। वहां गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग की स्थिति में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है बल्कि गुजरात के कुछ इलाकों में पिछले दस वर्षों में सरकारी बेरुखी के चलते इन वर्गों का जीवन-यापन बदतर ही हुआ है। मोदी के विकास की चमक शहर, व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्रों में ही देखी जा सकती है। इन इलाकों के विकास का श्रेय मोदी को इतना ही है कि उन्होंने व्यापारियों और उद्योगपतियों कोखुल्ला खेलनेकी छूटें बढ़ाई है अन्यथा इन क्षेत्रों में व्यापारिक विकास और औद्योगिकीकरण पहले ही हो चुका था। बड़ौदा, सूरत अहमदाबाद जैसे कुछ शहर तो आजादी पूर्व से विकसित हैं। आजादी के बाद भी सरकारों ने गुजरात के विकास पर समुचित ध्यान दिया है, गुजरात बीमारू राज्य कभी नहीं रहा है। बल्कि मोदी की नीतियों में खुल्ली छूट से गुजरात में विषमताएं बढ़ी ही हैं। आंकड़ों को नजरंदाज करें तो मानव संसाधन के विकास के मामले में गुजरात देश में ग्यारहवें नंबर का प्रदेश है और सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पांचवें नंबर पर। इस असलियत के बावजूद मोदी मर्दवादी मुखरता से अपने छियालीस के सीने को छप्पन का दिखाने की कोशिश में अपनी मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी छोड़कर पूरे देश की जनता को भरमाते घूम रहे हैं। उनके भाषणों का विश्लेषण करें तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि मोदी यह सब अज्ञानतावश कह रहे हैं या झूठ बोल कर धोखा दे रहे हैं। अपने पर उन्हें इतना ही भरोसा है तो क्यों नहीं गुजरात की सही सार-सम्हाल के लिए मुख्यमंत्री का पद किसी अन्य जिम्मेदार को सौंप देते।
लग यही रहा है कि ऐसे भ्रमों के आधार पर वे गुजरात में बहुमत हासिल करते रहे हैं और फिर ऐसी ही उम्मीद वे देश के तमाम मतदाताओं से भी कर रहे हैं। इसीलिएविनायकयह कहता रहा है कि मतदाता का लोकतान्त्रिक देश के नागरिक के रूप में शिक्षित होना बहुत जरूरी है.... अन्यथा पिछले पैंसठ वर्षों की तरह आगे और भी कितने वर्षों तक वे ठगे जाएंगे कह नहीं सकते।

10 फरवरी, 2014

1 comment:

maitreyee said...

बहुत सही!!