Wednesday, March 4, 2015

बीकानेर में राजनीतिक सून की बानगी

केन्द्र और प्रदेश सरकार की नीतियों के विरुद्ध कांग्रेस के जयपुर प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज के विरोध में कल बीकानेर कांग्रेस ने धरना दिया और खासकर बिजली की बढ़ी दरों पर अपना विरोध जताया। कहने को तो कल के धरने में भरपूर एकजुटता दिखाई दी लेकिन इस धरने में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी नहीं दिखे। हो सकता है उनकी जयपुर या अन्यत्र व्यस्तताएं हों। लेकिन कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री पद की कभी दमदार दावेदारी करने वाले और 1980 से बीकानेर शहर से कांग्रेसी के रूप में नुमाइंदगी करने वाले डॉ. बी.डी. कल्ला भी दिखाई नहीं दिए। वैसे सभी को पता है कि डॉ. कल्ला ने 1980 बाद से ही अपना घर-परिवार पूरी तरह जयपुर स्थानातरित कर लिया। शहर में वे या तो चुनाव लडऩे आते हैं, या किसी उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता या मुख्य आतिथ्य करने। हां, श्रावण मास में वे जरूर यहां होते हैं इस श्रावण प्रवास का उनका औचित्य आम-अवाम नहीं होता, वे अपनी आस्था के वशीभूत हो, यहां रहते हैं। यही नहीं, केवल उनके अग्रज जनार्दन कल्ला बल्कि उनके वे अधिकांश 'अपने' भी कल के कांग्रेसी धरने से नदारद थे, जो उनके यहां के प्रवास में उन्हें अपनी गिरफ्त में रखते रहे हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं जो कल्ला के लिए वोट बढ़वाना तो दूर, वोट तोड़ू की भूमिका ही ज्यादा निभाते हैं। कई लोग तो कल्ला को वोट देने का मन उनके साथ घूमने वालों को देखकर ही बदल लेते हैं।
खैर, यह कल्ला का व्यक्तिगत मामला है कि उन्हें अपने राजनीतिक हित किस तरह साधने हैं। तीसरी बार हारकर भी उन्हें कुछ समझ में नहीं रहा है तो अब आने का भी नहीं। हालांकि वे अब भी इस उम्मीद में हैं कि अगले विधानसभा चुनावों में पार्टी उन्हें यहां से फिर उम्मीदवार बनाएगी। जिस तरह वे पार्टी को मैनेज करते रहे हैं, उस हिसाब से उम्मीदवारी ले आना कल्ला के लिए बड़ी बात भी नहीं। पर जनता उनमें भरोसा अब भी जताएगी कह नहीं सकते। क्योंकि कल्ला ने 1980 से ही अपनी राजनीति बीकानेर प्रवास में सरकिट हाउस, डागा चौक के पुश्तैनी निवास और चौपहिया वाहनों पर ही की। वह  भी वर्ष में ढाई-तीन महीने, शेष तो उन्होंने इस शहर को छिटकाए ही रखा।
कल्ला बन्धुओं का भाजपा विधायक गोपाल जोशी से राजनीतिक विरोध चाहे कितना भी रहा हो लेकिन राजनीति वे जोशी के पदचिह्नों पर ही करते रहे हैं, नाजुक रिश्ता है सो अलग। पैंतीसेक साल पहले की बात का जिक्र 'विनायक' ने पहले भी किया था, आज फिर दोहराना प्रासंगिक लग रहा है। डॉ. कल्ला तब राजनेता होने के आकांक्षी भर हुआ करते थे। 1977 में गोपाल जोशी ने परिस्थितियां देखकर उम्मीदवारी से अपने पांव खींच लिए थे, हालांकि विधायक होने के नाते पहला हक उन्हीं का था। लेकिन, दीखती हार से सहमकर साहस जोशी नहीं जुटा पाए। तब शहर में कुछ बौद्धिकों ने कहना शुरू किया कि गोपाल जोशी ड्राइंग रूम की राजनीति ही करते हैं- मुकाबले में सड़क की राजनीति करने वाले मुरलीधर व्यास का उदाहरण भी दिया जाता। बात जोशी तक पहुंच गई। वे बौद्धिक एक दिन सामने हुए तो जोशी ने सफाई देनी शुरू की, यहां तक कि अपनी राजनीतिक 'थिसिस' ही परोस दी। गोपाल जोशी ने कहा- सड़क पर घूमने से क्या होता है? पार्टी के विरोध में हवा है तो मैं कितनी ही सड़क-गलियों की राजनीति कर लूं हार जाऊंगा। पार्टी के पक्ष में हवा है तो मैं पांच साल ड्राइंग रूम में ही बैठा रहूं और पार्टी उम्मीदवार बनाती है तो जीतने के चांस रहते ही हैं।
लगता है डॉ. कल्ला अपनी राजनीति इसी गुरु मंत्र के आधार पर करते हैं। इसीलिए बीकानेर के हक लगातार छीने जाते रहे हैं, यहां तक कि खुद डॉ. कल्ला सरकार के समय भी। लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पर डॉ. कल्ला ने चूं तक की हो तो बताएं। वहीं दूसरी ओर कोलायत विधायक भंवरसिंह भाटी आमजन से जुड़े मुद्दों को केवल उठाते रहे हैं बल्कि उन्हें उठाने का कोई अवसर भी वे नहीं छोड़ते। कल भी धरने पर उन्होंने केवल केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय का मुद्दा उठाया बल्कि तकनीकी विश्वविद्यालय का भी उठाया और इसके लिए धरने पर बैठे छात्रों से मिलने भी पहुंचे। उम्मीद यही करते हैं कि भंवरसिंह अपने राजनीतिक गुरु रामेश्वर डूडी के राजनीतिक तौर तरीकों से दूर ही रहेंगे, और यह भी कि जोशी कल्ला की इस ड्राइंग रूम राजनीति को भी अपने आस-पास फटकने नहीं देंगे।

5 मार्च, 2015

1 comment:

Www.nadeemahmed.blogspot.com said...

aapki baate tarko pe aadharit h jo sahi h