Wednesday, March 25, 2015

राहुल के लिए कोई व्याकुल भी है क्या

उन्नीस सौ सतहत्तर के चुनावों में जनता पार्टी के धुरंधर  प्रचारक माने जाने वाले अटलबिहारी वाजपेयी ने अपने एक भाषण में बताया कि हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंशीलाल जब इंदिरा गांधी की हाजरी में तो देखा कि मां के सामने बेटा संजय कार फैक्ट्री के लिए जमीन की जिद कर रहा है। चौधरी ने अवसर को तुरंत लपका और संजय का हाथ पकड़  कहा कि इतनी सी बात के लिए मां को क्यों तंग करते हो मेरे साथ लो, दिल्ली से लगते गुडग़ांव में जितनी मरजी जमीन ले लो। वाजपेयी ने इस प्रसंग का अंत चटखारे और तंज के साथ किया---'अब बेटा कार बनाता है और मां बेकार बनाती है।' यहीं से भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद की शुरुआत मानी जा सकती है।
आज यह प्रसंग तब याद आया जब एनडीटीवी इंडिया के अखिलेश शर्मा की फेसबुक पर एक पोस्ट देखी जो कांग्रेस द्वारा घोषित प्रवक्ताओं की फौज पर थी- 'कांग्रेस के अब सत्तरह प्रवक्ता और इकतीस मीडिया पैनलिस्ट हैं। लेकिन इनमें से शायद ही कोई यह बता पाए कि राहुल कहां हैं और कब वापस आएंगे।' अखिलेश यह जानते होंगे कि देश विकल्पहीनता की मजबूरी में संजय, राजीव और मोदी जैसों को अपना नेता मान सकता है तो राहुल को क्यों नहीं मानेगा।
राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। नेहरू गांधी-परिवार की बैसाखियों के आदी कांग्रेसियों से इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जा सकती। लेकिन स्थाई नाबालिगता के बावजूद राहुल अपने चाचा की तरह बोछर्डे (शैतान) नहीं हैं अन्यथा इस सोशल साइट्स के युग में सुर्खियां उन्हीं पर होती। संजय गांधी के व्यक्तित्व को देखें तो नेहरू-गांधी संस्कारों का वहां सर्वथा अभाव था--सोच और व्यवहार, दोनों में। सोशल साइट्स सक्रियों की समस्या तो यह है, राहुल इतने नीरस हैं कि वे नकारात्मक-सकारात्मक कैसी भी चर्चा की गुंजाइश ही नहीं देते। ठीक उनके उलट प्रधानमंत्री मोदी हैं कि ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ते जिससे कि उन्हें सुर्खियां मिलें--मोदी कुछ पहनेंगे तो सुर्खियों में, जो बोलेंगे तो सुर्खियों में, कहीं जायेंगे तो सुर्खियों में और कुछ नहीं तो दस लाख का सूट पहनकर चर्चा करवा लेंगे। बोलेंगे तो भगतसिंह को काला पानी भेज देंगे  और तो और नालंदा-तक्षशिला की जगह और तक्षशिला नालंदा की जगह चली जायेगी। मकसद इतना ही है कि आम-अवाम अच्छे दिनों की जिद कर बैठे या चुनावी जुमले में दिए आश्वासन पर हर कोई पन्द्रह लाख की मांग पर अड़ जाए। मोदी के पास बहुत काम हैं, जिन धनाढ़्यों ने इस पद पर पहुंचने में उनकी मदद की उनको कम से कम हजार गुना  लाभ पहुंचाकर उस कर्ज से उन्हें मुक्त होना है--मोदी फिलहाल उसी में लगे हैं।
रही बात आम-अवाम के वोटों की तो उन्हें तो किसी को देना ही था, अब तक कांग्रेस को देकर उन्होंने कौन सा खजाना हासिल कर लिया। उन्हें तो उसी तरह भुगतना है जैसे अब तक भुगतते आए हैं।
बात राहुल से शुरू की उन्हीें पर लौट चलते हैं--राहुल संसद के बजट सत्र के पहले दिन से पार्टी से बाकायदा लिखित में छुट्टी लेकर गायब हैं। राहुल भूल गये कि उत्तरप्रदेश के अमेठी नाम के संसदीय क्षेत्र की जनता ने उन्हें अपने प्रतिनिधि के रूप में चुन कर भेजा है। उम्मीदें उन बेचारे वोटरों की और भी कुछ रही होगी अन्यथा वे टीवी अभिनेत्री स्मृति ईरानी और मंचीय कवि  कुमार विश्वास की जगह राहुल को चुनकर नहीं भेजते। शुरुआत में यह कहा जा रहा था कि वे आत्ममंथन के लिए मात्र दस दिन के लिए गये हैं फिर पन्द्रह दिन का कहा जाने लगा। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस स्टिंग युग में कोई स्टिंग के महारथी या खोजी पत्रकार की इस राहुल-प्रवा अभी तक कोई क्लिप वायरल नहीं हुई। इसके मानी ये भी हो सकते हैं कि राहुल बचकानी हरकतों पर समय जाया करना जरूरी नहीं समझते हों।
सोनिया गांधी भले ही फिर सक्रिय हुई हों, लेकिन वे अपनी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के चलते सक्रियता कितनी रख पाएंगीकह नहीं सकते। ऐसे में कांग्रेसियों को आम-अवाम की मोदी से ऊब और मोह-भंग का इंतजार करना होगा ताकि जनता मजबूरी में ही सही राहुल जैसों में ही भरोसा जता दे। जनता ने मोदी में भी भरोसा कांग्रेस से मोह-भंग के चलते ही तो जताया था!

25 अप्रैल, 2015

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