Saturday, March 21, 2015

कांग्रेस कल उठाए मुद्दों से क्या खुद बरी है?

बीकानेर शहर की समस्याओं के समाधान के लिए कांग्रेस आक्रामक हुई है। हो सकता है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल की अपनी यात्रा के दौरान पार्टी में जान फूंकने जैसा कुछ किया हो। विधानसभा चुनावों में बुरी तरह पिटी कांग्रेस विपक्ष में है, सवा साल बाद ही सही इस बार के सत-विहीन वसुन्धरा कार्यकाल ने कांग्रेसियों को कुछ हौसला दिया है। कल हुए आयोजन से लगता है यह हौसला कल्ला समूह में चुक गया है।
खुद डॉ. बीडी कल्ला पैंतीस साल से प्रवासी राजनीति कर रहे हैं। यहां का अखाड़ा हालांकि इनके अग्रज जनार्दन कल्ला सम्भालते रहे हैं लेकिन लगता है उन्होंने अपनी पारी समाप्त मान ली है। शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत एवजी अध्यक्ष होने की छवि से दो साल के बाद भी निकल नहीं पाए हैं। इसलिए भीड़ इक_ करने का ददिया कहें या क्षमता दिखाने का जिम्मा-भाजपा से आए गोपाल गहलोत ने ही मोटामोट ओढ़ लिया है। हो सकता है गोपाल गहलोत 2018 में अपनी दावेदारी बीकानेर (पश्चिम) से करें जो हर तरह से उनके लिए बीकानेर (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र से ज्यादा अनुकूल है। लेकिन बावजूद लगातार दूसरी बार सहित तीन बार हार चुके डा. कल्ला सोरे-सांस अपनी दावेदारी नहीं छोडऩे वाले। शहर के लिए डॉ. कल्ला ने भले कभी कुछ नहीं किया पर पार्टी में उन्होंने अपनी इतनी हैसियत तो बना ही ली कि उनकी इस कदर उपेक्षा नहीं हो सकती कि उन्हें उम्मीदवारी ही नहीं मिले।
खैर, इस स्थिति को आने में अभी तीन साल बाकी हैं। तब तक इलाके के धोरे कितनी बार जगह बदलेंगे कह नहीं सकते। बात कल के धरने-प्रदर्शन के हवाले से कांग्रेस द्वारा उठाए मुद्दों का जायजा लेने की है। सरसरी तौर पर बात करें तो इनमें से एक भी मुद्दा ऐसा नहीं कि जिससे खुद कांग्रेस को बरी किया जा सके। नियमित हवाई सेवा सुविधा को छोड़ कांग्रेस द्वारा कल उठाए गए सभी मुद्दे कांग्रेस राज में भी ज्यों के त्यों थे। हवाई अड्डे के सिविल टर्मिनल का उद्घाटन जरूर वसुंधरा राज में हुआ है लेकिन बीकानेर के लिए हवाई सेवा को आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं माना जाता जो एक हद तक सही भी है। कोई निजी एयर लाइन दीखते घाटे की सेवा को शुरू करने को तैयार नहीं हैं तो सरकारी हवाई सेवाएं पहले ही भारी घाटे के बोझ तले दबी हैं। ऐसे में फिलहाल यह सोचना चांद की हसरत पालने से कम नहीं लग रहा।
तकनीकी विश्वविद्यालय को भले कांग्रेस ने अध्यादेश के जरिए शुरू करवाया हो, लेकिन समय पर विधेयक लाकर वेंटीलेटर पर इस विश्वविद्यालय को कांग्रेस ने ही भेजा था। कल के प्रदर्शन का श्रेय लेने की होड़ में आगे आए कल्ला भले ही पिछली सरकार और विधानसभा में नहीं थे, लेकिन ऐसे किसी प्रयास की जानकारी आम-अवाम को नहीं है कि उन्होंने बीकानेर के तकनीकी विश्वविद्यालय के विधेयक के लिए कोई प्रयास किए हों। इस विश्वविद्यालय के अध्यादेश के साथ के अन्य अध्यादेशों के विधेयक कांग्रेस राज में पारित हो गये थे। और यह भी कि वसुंधरा खुद के रहते अपने क्षेत्र के कोटा तकनीकी विश्वविद्यालय को कमजोर क्यों होने देती।
ऐसी ही बात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के बारे में कही जा सकती है। कांग्रेस सरकार द्वारा गठित प्रो. विजयशंकर व्यास कमेटी की सिफारिश के बावजूद सामान्य केन्द्रीय विश्वविद्यालय सचिन पायलट किशनगढ़ ले गये तब भी डॉ. कल्ला ने चूं तक नहीं की।
गंगाशहर की राजकीय डिस्पेंसरी को सैटेलाइट का दर्जा देने की मांग नई नहीं है। कांग्रेस राज के दौरान इसकी जरूरत जताई गई और मांग उठाई जाती रही। कांग्रेस सरकार ने तब पूरे पांच साल इस पर कान नहीं दिए तो अब वसुंधरा अनसुना कर रही हैं!
रवीन्द्र रंगमंच का निर्माण पूरा करने की बात की जरूर जाती रही है लेकिन इसके शिलान्यास के बाद से दोनों पार्टियों की सरकारें कई बार आई और कई बार गईं-सार्वजनिक धन का कूटला होने के सिवा कुछ नहीं हो रहा। जिस मुकाम पर यह योजना है उससे लगता है प्रदेश में अगली बार भाजपा विपक्ष में आयी तो इस रंगमंच मुद्दे का रिले बैटन उसके हाथ आना है।
डूंगर, सुदर्शना आदि कॉलेजों को गंगासिंह विश्वविद्यालय के संघटक कॉलेज पांच साल तक कांग्रेस सरकार ने क्यों नहीं बनाया। इस मुद्दे को उठाने से पहले कांग्रेस को जवाब देना चाहिए था। नगर निगम की भरती का एक चरण कांग्रेस बोर्ड ने जरूर जाते-जाते और जैसे तैसे पूरा कर लिया था। उम्मीद है भाजपा का बोर्ड भी बकाया नियुक्तियों का दूसरा चरण अपना कार्यकाल पूरा होते-होते कर लेगा। यह मुद्दा जरूर कांग्रेस को अवसर देता रह सकता है।
बात कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की मोटी समस्या की करने से पहले इस समस्या से जुड़ी खुद डॉ. बीडी कल्ला की बड़ी उन समस्याओं का पता करना होगा जिनके चलते वे इसके सर्वथा अव्यावहारिक हाल बाइपास से समाधान का राग छोड़ नहीं पा रहे हैं। कहने को कल्ला और कल्ला के बहाने कांग्रेस खुद इस समस्या के लिए बड़ी जिम्मेदार है। भाजपाई नेता तो कभी इसके वैकल्पिक समाधानों पर बात भी कर लेते हैं, अपने कल्ला तो बाइपास से टस से मस नहीं हो रहे। पता नहीं वे क्यों समझना नहीं चाह रहे कि बाइपास के समाधान में शहर को अन्य कई समस्याओं से जूझना होगा। कल्ला के इस पर अडिय़ल रुख से लगता है बाइपास में डॉ. कल्ला की कोई 'हेमांणी' बूरी हुई लगती है अन्यथा 'समझदार' माने जाने वाले कल्ला बाइपास के लिए इस कदर नहीं अड़े रहते।
हालांकि यह सारी बात कल के कांग्रेसी प्रदर्शन पर लक्षित है, लेकिन इसके मानी यह कतई नहीं है कि भाजपा इन मुद्दों से बरी है। इन्हीं मुद्दों पर 'विनायक' भाजपा को भी कठघरे में खड़ा करता रहा है और मौके-टोके करता भी रहेगा।

21 मार्च, 2015

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