Thursday, February 5, 2015

‘सरकार आपके द्वार’ हिट होगा या फ्लॉप

राज्य का शासन दुबारा संभालने के बाद मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे ने आम अवाम से रू-बरू होने के लिए सरकार आपके द्वारकार्यक्रम की शुरुआत की। संभागवार आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में बीकानेर का नम्बर जून 19 से 30 तक लगा। 19 को राजे शासन-प्रशासन के अपने पूरे लवाजमे के साथ संभाग में आ गई थी। इस दौरान उन्हें मिली हजारों व्यक्तिगत परिवेदनाओं के अलावा संभाग, जिला व शहर की सैकड़ों आकांक्षाओं में से अधिकांश आज भी बाट जोह रही हैं।
जो परिवेदनाएं लिखित में मुख्यमंत्री को मिली वह तो लेटलतीफी के साथ ही सही निस्तारे को हासिल हो रही हैं। इसके लिए न केवल मुख्यमंत्री कार्यालय का जन अभाव अभियोग निवारण प्रकोष्ठ सक्रिय है बल्कि जिला कलक्टर की लगातार मॉनीटरिंग के चलते बहुतों को राहत मिल रही है। लेकिन इन सड़सठ वर्षों में जो सुस्ती और ढिलाई प्रशासनिक ढांचे में आ गई है वह चुस्त-दुरुस्त तभी होगी जब कोई इसके लिए भगीरथ प्रयास करे! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जरूर इस वादे से केन्द्र में काबिज हुए हैं लेकिन उनकी मंशा वादों को पूरा करने की नहीं लगती। उन्हें लगता है केवल प्रशासन को हड़काते रहने से चुस्ती आ जायेगी। हड़काने से प्रशासन सचेत तो रहता है लेकिन मात्र सचेतन चुस्ती का कारक नहीं है। सुस्ती का बड़ा कारण है भ्रष्टाचार जो प्रशासन के प्रत्येक विभाग और इकाई में व्याप्त हो लिया है। प्रधानमंत्री खुद ईमानदार होकर कुछ करते तो संभव था अन्यथा खुद उनकी ही लालसाएं इतनी हैं कि उन्हें वे अपने एक-दो कार्यकाल में तो नहीं भोग सकते।
खैर बात वसुन्धरा राजे के सरकार आपके द्वारके हवाले से शुरू की और वहीं लौट आते हैं। पांच में से पूरा एक साल निकाल चुकी मुख्यमंत्री के बारे अब अधिकांश मानने लगे हैं कि इनमें उस करंट की अनुभूति नहीं हो रही जो पिछले कार्यकाल में देखी गयी। वह न केवल प्रशासन को बल्कि अपने शासन को भी सलीके से नहीं हांक पार रही या यूं कहें कि मोदी एण्ड शाह एसोसिएट से ट्यूनिंग न बनने के चलते कुछ करने की इनकी मंशा ही नहीं रही। सरकार आपके द्वारके लिए भरतपुर, बीकानेर और उदयपुर के बाद कोटा के लिए घोषित कार्यक्रम को किसी बहाने स्थगित कर दिया। अब तो कोई आसार नहीं लग रहे हैं कि इसे पुन: शुरू किया जायेगा। राजनीतिक नियुक्तियां ज्यों-की-त्यों धरी हैं। यहां तक, कुछ जरूरी संवैधानिक पदों पर तो गहलोत सरकार द्वारा नियुक्त ही कार्यभार संभाले हुए हैं। मुख्यमंत्री की सक्रियता अभी उतनी ही है जितनी बने रहने के लिए उन्हें जरूरी लगती है। ऐसे में प्रदेश का कितना नुकसान हो रहा है वह कूंत से परे है।
बीकानेर संभाग को लेकर अपने प्रवास के दौरान राजे ने जो वादे किए और आश्‍वासन दिये वह धरे के धरे पडे़ हैं। सांखला और कोटगेट फाटक की समस्या, सूरसागर का मरुउद्यान के रूप में विकास करने की योजना, शहर के अन्दरूनी हिस्से में सीवरेज की नई योजना, रवीन्द्र रंगमंच को पूर्ण करवाना, लालगढ़ रेलवे स्टेशन को भुट्टों के चौराहे से तथा गंगाशहर रोड को मोहता सराय से जोड़ने वाली सड़कों जैसी योजनाएं मुख्यमंत्री के आश्‍वासनों के बाद भी जस की तस हैं। लगता है मुख्यमंत्री जाते-जाते इन आश्‍वासनों को यहीं कहीं झड़का कर चली गईं है।
जैसा कि शुरू में कहा कि लिखित परिवेदनाओं पर कार्रवाई जरूर हो रही है चाहे गति धीमी हो, फिर वे चाहे खुद मुख्यमंत्री के कार्यालयी प्रकोष्ठ के जिम्मे हो या स्थानीय प्रशासन के। जिला कलक्टर आरती डोगरा ऐसे प्रकरणों का निबटारा करने के लिए लगातार फीडबैक लेती हैं और गैर जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों को न केवल हड़का भी रही हैं बल्कि जरूरी लगने पर सख्त भी होती हैं। कल ही उन्होंने नोटिस, चार्जशीट जैसी कार्रवाइयों के साथ श्रीडूंगरगढ़ नगरपालिका के अधिशाषी अधिकारी को निलम्बित किया है। देखना है इस तरह की सख्ती पर शेष अधिकारी, कर्मचारी कितना मुस्तैद हो पाते हैं। यदि नहीं होते हैं तो मुख्यमंत्री का सरकार आपके द्वारकार्यक्रम फ्लॉप ही साबित होगा।

05 फरवरी, 2015

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