Monday, February 16, 2015

रेलवे के जनसरोकारों पर खुलकर हुई बात

मीडिया सम्पादकों के नवगठित एडिटर्स क्लब द्वारा शुरू किए गये उन्मुखी कार्यक्रम की दूसरी कड़ी में कल बीकानेर रेल मण्डल प्रबन्धक मंजू गुप्ता के साथ हुई कार्यशाला को फलदायक कहा जा सकता है। गुप्ता की विशेष बात यह कि वेअपने किसी भी कर्मचारी या विभाग से सम्बन्धित बातों और प्रश्नोत्तरों पर 'फस्र्ट पर्सन' के तौर पर मुखातिब थीं। यह एहसास और अन्दाज बड़े अधिकारियों में कम ही देखने को मिलते हैं।
इस कार्यक्रम की उपलब्धि कहें तो पत्रकारों ने रेलवे से सम्बन्धित कई बातों को केवल जाना-समझा बल्कि कई भ्रम भी उनके साफ हुए। गुप्ता ने शुरुआत मीडिया से रेलवे की अपेक्षाओं पर की। उन्होंने चाहा कि रेलवे जिन तीन सार्वजनिक समस्याओं से जूझता है उनके लिए मीडिया सामान्यजन को जागरूक करने की भूमिका निभाए। उन्होंने कहा, नागरिक आन्दोलनों के दौरान रेलगाडिय़ों को रोकने का कोई औचित्य नहीं होता। इससे केवल आम यात्रियों के कार्यक्रम रद्द होते और बदल जाते हैं बल्कि रेलवे को भी बड़े आर्थिक नुकसान के साथ अन्य रेल सेवाओं का संचालन भी बाधित हो जाता है। क्योंकि सीमित रेलवे ट्रैक और 'नेक टू नेक' संचालन के चलते अन्तत: बड़ा खमियाजा सेवाओं में कमी का आम-अवाम ही भुगतती है। उन्होंने चाहा कि लोगों में ऐसी समझ पैदा की जानी चाहिए कि रेलवे परिसर को तो गन्दा करें और ही रेल सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जाए। उनका मानना था कि ऐसा ज्यादातर जागरूकता के अभाव में ही होता है। बिना टिकट यात्रियों पर अंकुश में शिथिलता को मजबूरी बताया क्योंकि सामान्य श्रेणी के डब्बों में नियमित टिकट चैकिंग स्टाफ रखना संभव नहीं है। खुद यात्री ही उचित टिकट लेकर यात्रा करने को अपना कर्तव्य समझें।
पत्रकारों की ओर से आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों का जवाब देते हुए मण्डल रेल प्रबन्धक ने बताया कि रेलवे में सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए दो तरह के पुलिसबल का होना पेचीदगियां बढ़ाता है। हालांकि राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के बीच पिछले कुछ समय से समन्वय बढ़ा है और कार्यक्षेत्रों में कुछ परिवर्तन आएं हैं-जिसके चलते पहले जैसी स्थितियां नहीं रही। फिर भी अभी बहुत कुछ होना बाकी है। इसलिए रेलवे ट्रैक पर कटने से मौतों पर कार्यवाही और यात्री के साथ लूट, चोरी जैसी घटनाओं पर प्रथम सूचना रिपोर्टों को लेकर कुछ असमंजस रहता है। उन्होंने बताया कि रेलवे और प्रादेशिक सरकारों के बीच में इस पर लगातार विचार विमर्श जारी है। उम्मीद है जल्द ही और सुधार देखा जायेगा।
टिकट के आरक्षण और तत्काल सुविधा में बिचौलियों और दलालों को लेकर दिए जवाब में गुप्ता ने कहा कि इसमें पहले से काफी सुधार हुआ है। टिकट बनाने आने वालों के रोजाना वही चेहरे और इनकी जीआरपी और टिकट खिड़की पर बैठने वालों से मिलीभगत की बात पर अब और ध्यान दिया जायेगा-वैसे टिकट खिड़की पर सीसीटीवी कैमरे और टिकट बनवाने आने वाले और जिनका टिकट बनवाया जा रहा है दोनों के ही पहचान के पत्र की फोटोकॉपी लेने का प्रावधान किया गया है।
शहर की यातायात समस्याओं, जिनका सीधा सम्बन्ध रेलवे से है, पर भी गुप्ता ने बहुत संजीदगी से जवाब दिए। रानी बाजार रेलवे क्रॉसिंग और लालगढ़ रेलवे हॉस्पिटल के सामने अण्डरब्रिज बनाने की बात पर उन्होंने कहा कि चूंकि दोनों जगह ऊपरी पुलिया के निर्माण में सहयोग कर रेलवे ने अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी कर दी है। अब दोनों अण्डरब्रिज का खर्चा नागरिक प्रशासन को वहन करना होगा।
बीकानेर रेलवे स्टेशन से कोटगेट और सांखला फाटक की ओर होने वाली शंटिंग पर उन्होंने बताया कि जो तकनीकी रूप से संभव है वही किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि रेलवे जानबूझ कर इस तरफ शंटिंग करती है। गाडिय़ां गुजर जाने के बाद भी कई देर बाद फाटक खुलने की बात पर उन्होंने बताया कि अब तो यह स्वचालित प्रणाली से संचालित है जिसके अपने न्यूनतम समय तय है। इसमें ऐसा नहीं है कि यह देरी मानवीय आलस्य से होती है। रेलवे प्रेक्षाग्रह की तरफ से बीकानेर रेलवे स्टेशन के द्वितीय द्वार की ओर जाने वाली सड़क को दुरुस्त करवाने का उन्होंने सकारात्मक आश्वासन दिया।
शहर की सबसे बड़ी समस्या कोटगेट और सांखला फाटकों के व्यावहारिक समाधान पर उनका मानना है कि राज्य सरकार चाहे तो बाइपास का निर्माण अपने स्तर पर करवा सकती है लेकिन इससे इस समस्या का कोई हल नहीं होना-स्टेशन यदि वर्तमान स्थान पर ही रहना है तो सवारी गाडिय़ों को कोटगेट और सांखला फाटकों से ही गुजारना होगा। स्टेशन यहां से हटाया गया तो तकनीकी तौर पर इसे नाल गांव ही ले जाना होगा। शहर के लोगों को यदि तेरह किलोमीटर दूर जाने में एतराज नहीं है और राज्य सरकार धनराशि लगाने को तैयार हो तो रेलवे इस पर विचार कर सकता है। रही बात मालगाडिय़ों की-कोलायत फलौदी रेल मार्ग शुरू होने के बाद इन्हें शहर में बहुत कम लाया जाता है। कोलायत-फलौदी रेल मार्ग का विकल्प नहीं मिलता तो रेलवे फिर भी अपने तौर पर बाइपास पर विचार करती लेकिन तब भी बाइपास से गुजारी मालगाडिय़ां ही जातीं।
उनसे आग्रह किया गया कि बीकानेर के बाशिन्दे जब तक बाइपास के साथ स्टेशन नाल ले जाने पर, अण्डरब्रिज और एलिवेटेड रोड में से किसी एक विकल्प पर एक राय हों तब तक तत्कालिक तौर पर सांखला फाटक पर कोयला गली की ओर एक और बेरियर देकर राहत प्रदान करें ताकि फाटक खुलने पर यातायात सुगमता से निकल सके। इस पर मण्डल रेल प्रबन्धक मंजू गुप्ता ने आश्वासन दिया कि इस पर वह उदारता से विचार करेंगी! संभव है वे अपने कार्यकाल में इसे पूरा करवाने की कोशिश करें।
एडिटर्स क्लब के इन आयोजनों से पत्रकार बन्धु केवल सचमुच कुछ अतिरिक्त जानने-समझने लगे हैं बल्कि उम्मीद है शहर को इससे लाभ ही होगा। यद्यपि बहुत से पत्रकार अभी भी इन आयोजनों के लिए समय और अनुकूलता नहीं निकाल पा रहे हैं। उम्मीद है शेष वे भी इसकी महत्ता को समझेंगे।

16 फरवरी, 2015

No comments: