Tuesday, February 17, 2015

'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ' पद की जरूरत

रक्षा राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह के हवाले से एक खबर लगी है कि थल, जल और वायु सेना के तीनों अंगों पर एकीकृत कमांड, नियंत्रण और प्रशासन के लिए शीघ्र ही 'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ' पद सृजित किया जायेगा। उनका कहना था सरकार ने मन बना लिया है और शीघ्र ही अन्य राजनीतिक दलों से सलाह-मशवरा किया जायेगा।
रक्षा सेवाओं के सर्वोच्च मुखिया को लेकर जब तब आशंकाएं व्यक्त की जाती रही हैं। सप्रंग-दो सरकार के कार्यकाल के अन्तिम दौर की एक पुष्ट खबर थी-थल सेना की कई टुकडिय़ां बरास्ता हरियाणा दिल्ली कूच कर रही हैं। अपुष्ट कारण बताया गया तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह की संप्रग सरकार से नाराजगी होना और मकसद बताया गया-केन्द्र की सत्ता पर सेना के कब्जे का भय दिखाना-बनाना। सेना का कूच हुआ था, रक्षा मंत्रालय को इसकी जानकारी थी ही कोई निर्देश। ऐसे में इतना बड़ा कूच भय और आशंका तो पैदा कर ही गया। ऊपर से जनरल वी.के. सिंह की जन्म तिथि का विवाद और उसके चलते केन्द्र की सरकार से उनकी तनातनी। पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले साठ वर्षों में दसियों सैनिक शासन। ये सब नजीरें ऐसी हैं जिनके चलते लगता है सेना के किसी बड़े अधिकारी को अब और ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए और ही जनरल वी.के. सिंह जैसी किसी सनक को अवसर!
मान सकते हैं कांग्रेस राज में सेना की जरूरतों का उस तरह ध्यान नहीं रखा गया हो जिस तरह रखा जाना चाहिए। लेकिन, भाजपा के नेतृत्व में राजग की सरकारें भी सेनाओं में जो नई-नई उम्मीद जगाती हैं उन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की पिछली सरकार के समय सीमाओं पर मारे जाने वाले सैनिकों को जिस तरह महिमा मण्डित किया जाने लगा वह उचित नहीं। ऐसी नौबत आए और कभी किसी भीषण युद्ध में बड़ी संख्या में सैनिक मारे जाने लगें, क्या तब भी उनके शवों को उनके गांवों तक लाकर उसी तरह दाह संस्कार किया जायेगा जैसे अब किया जाने लगा है। जिस देशभक्ति भाव को जगाने और मरने वाले के अतिरिक्त सम्मान के लिए जो सिलसिला शुरू हुआ है-भीषण युद्ध के समय यही नागरिकों में भय और असुरक्षा पैदा करने का एक बड़ा कारण बन सकता है। युद्ध के शहीदों और मुठभेड़ों में मारे जाने वाले जवानों के परिजनों के लिए पर्याप्त प्रावधान पहले से ही हैं। कुछ कमी है तो उन्हें पूरा किया जा सकता है। लेकिन राजग की पिछली सरकार ने जो यह शुरू किया उसे उचित नहीं कहा जा सकता। हो सकता है यह बात पाठकों को अच्छी नहीं लगे। लेकिन हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया तय है। और यदि वह उचित नहीं है तो दुष्परिणाम दूसरे देशों के लोग भुगतेंगे और ही किसी अन्य ग्रह के वासी। वह इसी देश के नागरिकों को भुगतने होंगे।
भारतीय जनता पार्टी जिस बनावटी और दिखावटी देशभक्ति में विश्वास करती रही और उसके लिए जिस तरह के दिखावटी उपायों में विश्वास करती है वे देश के दूरगामी हितों के लिए उचित नहीं- माने जा सकते! बड़े निर्णयों में सही उन्हें ही कहा जा सकता है जो सार्वकालिक हों और प्रत्येक परिस्थिति में जिन्हें निभाया जा सके।
इसलिए एक लोकतांत्रिक देश की सेना में ऐसी कोई एक समानांतर चुनौती की गुंजाइश नहीं बनाई जानी चाहिए जो कभी लोकतांत्रिक मूल्यों को ही ताक पर रख दे! आजादी बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े हैं जिनमें 1962 के भारत-चीन युद्ध को छोड़ दें तो शेष को जीता ही है। इन आपातकालीन परिस्थितियों में सेना के तीनों अंग और रक्षा मंत्रालय अपूर्ण साधनों के बावजूद जैसा समन्वय दिखाते रहे हैं उसे आदर्श माना गया और सकारात्मक परिणाम भी हासिल किए हैं। 1999 में राजग के समय ही विपरीत परिस्थितियों और सरकार की लापरवाही के चलते लगभग हारे माने जाने वाले करगिल युद्ध को भी जीता ही है। वायु सेना और थल सेना में जिस तरह का समन्वय उस समय देखा गया वह उल्लेखनीय था। अन्यथा करगिल युद्ध हार जाते तो राजग शासन पर काले धब्बे के रूप में इतिहास में दर्ज हो जाता। इसलिए सरकार को चाहिए कि सेना की वे सब जरूरतें अवश्य पूरी करे जिनकी उन्हें जरूरत है-लेकिन, ऐसा कुछ भी करे जिन्हें एक लोकतान्त्रिक देश के रूप में भारत भविष्य में बर्दाश्त कर सके।

17 फरवरी, 2015

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