Monday, August 4, 2014

विकास का शहरी मॉडल और हादसों के अंदेशे

जिले के नोखा कस्बे के वार्ड संख्या अठारह में तीन मकान ढह गये जिससे दो बच्चों की मौत हो गई। बजरी की खानों पर बसी यह रिहायश पिछले एक अरसे से लगातार हादसों की शिकार हो रही है। जमीन के नीचे से निकाली गई बजरी से बनी थोथ के कारण यह हादसे हो रहे हैं। इस क्षेत्र के बाशिन्दों की रक्षा के आदेश उच्च न्यायालय से जिला प्रशासन को मिले होने के बावजूद वह आंखें मीचे है। इस तरह के मामलों में कई पेचीदगियां होती हैं, समर्थ तो तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था कर लेता है, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के पास विकल्प होता ही नहीं है। जैसे-तैसे जोड़-तोड़ कर कोई व्यवस्था की जाती है। ऐसे में उसके विकल्प की सोचना तक उनके लिए असंभव होता है। स्थानीय निकायों की भी अपनी सीमाएं होती हैं। प्रशासन जमीन चिह्नित करके उपलब्ध करवा दे तो फिर भी कोई रास्ता निकल सकता है। जमीन की व्यवस्था हो जाने पर भी रहने योग्य न्यूनतम निर्माण भी चुनौती से कम नहीं होता। चाहे उसे पीडि़त पक्ष करवाए या प्रशासन अथवा स्थानीय निकाय।
ऐसे हादसे बीकानेर में भी जब-तब होते रहे हैं। शहर के जिस तरफ भी बजरी की खानें थी वहां-वहां अब भी बीहड़ के से दृश्य हैं। इन्हें पाटने के लिए स्थानीय निकाय शहर के कचरे को इनमें डालता है, लेकिन शहर के बीच चुकी इन खानों को इस तरह पाटना भी क्या सही समाधान है? इस तरह की जमीन पर निर्माण हो सकने योग्य कचरा स्वत: जमने में जितने वर्षों की जरूरत होगी, उतना खटाव किसी के पास होगा क्या? शहर में ऐसी जगहों पर बने मकानों के तड़कने और धंसकने के समाचार जब-तब सुनने पढऩे को मिल जाते हैं।
विकास के शहरी मॉडल पर ऐसे प्रश्नचिह्न जब-तब लगते रहे हैं। शहर में बजरी खनन पर लगी रोक को प्रभावी करने में स्थानीय प्रशासन को बहुत जोर आया था। आस-पास के गांवों, खासकर कोलायत तहसील में बजरी के अवैध खनन के समाचार अकसर पढऩे को मिल जाते हैं। कोलायत इस शहरी विकास से पीडि़त सबसे बड़ा क्षेत्र है- शहरी संस्कृति की जिप्सम, क्ले और बजरी की जरूरतें इस क्षेत्र के सुदर्शन प्राकृतिक क्षेत्र मगरे को लगातार बदरूप और बदरंग बनाए जा रही है। 'माल' निकालने के लिए हटाई गई वेस्टेज से जगह-जगह भद्दे टीले खड़े हो गए हैं तो वहीं गहरे खड्डों की बहुतायत भविष्य में कई तरह की आशंकाओं को न्योतती लगती है। कुछ महीने पहले ऐसे ही खड्डे में अवैध शराब का कारखाना इसी इलाके में बरामद हुआ था और जोधपुर के ऐसे ही इलाके में 'कहते है' भंवरीदेवी के नामो निशान जलाकर मिटा दिए गए थे।
शहरी विकास के अन्तर्गत मगरा भू-भाग होने के चलते कॉलोनाइजर और बिल्डरों को भी कोलायत का यही क्षेत्र आकर्षित कर रहा है। कल्पना करें कि ये खड्डे और टीले भविष्य में यदि बसावट के बीच गए तो कैसे-कैसे हादसों को न्योतेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी शहरी विकास को आदर्श मानते हैं, लेकिन प्रकृति और मानवीयता दोनों ही इस विकास से आहत होते हैं। इन परिस्थितियों में मोदी की यहां सौ महानगर बसाने की योजना पर चिन्तन करें तो सिहरे बिना नहीं रह सकते। अब भी मौका है कि इस विकास के मॉडल को पलट कर ग्राम आधारित करना ही मानवीय और प्राकृतिक होगा। लगता तो नहीं है नियंता इस तरह से विचारने का साहस दिखाएंगे।

4 अगस्त, 2014

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