Wednesday, July 2, 2014

रानी बाजार फाटक पर उद्वेलन और कोटगेट अण्डरब्रिज की आशंकाएं

शरीर के किसी अंग को डोरी से कसकर बांध दें तो उसके शेष हिस्से का हश्र क्या होगा, ऐसी ही कुछ कल्पना से इन दिनों सिहर उठते हैं रानी बाजार रेलवे फाटक के इर्द-गिर्द बसे लोग और यहां धंधा कर रहे व्यापारी। दरअसल पिछले माह उत्तर पश्चिम रेलवे ने इस फाटक के दोनों ओर सूचना लगा दी कि 30 जून, 2014 के बाद इसे हमेशा के लिए बन्द कर दिया जाएगा।
अठारह सौ इकानवे में जब जोधपुर से बीकानेर तक का रेल आवागमन शुरू हुआ तब यह क्षेत्र लगभग सूना रहा होगा। कब मार्ग बना और कब सड़क बन कर रेल क्रॉसिंग बना होगा कह नहीं सकते-मान लेते हैं 100 वर्ष पूर्व तो यह सब कुछ हो ही गया होगा। तब से लेकर 24-25 साल पहले तक जब रानी बाजार ओवरब्रिज बन कर आवागमन के लिए खोला गया तब तक इस फाटक से होकर ही रास्ता था। चूंकि यह ब्रिज रेलवे और राजस्थान सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग की साझेदारी पर बना था इसलिए रेलवे ने रानी बाजार रेलवे फाटक सम्बन्धी जिम्मेदारियों से अपने को मुक्त मान लिया। रेलवे ने ओवरब्रिज को साझेदारी पर बनाने की स्वीकृति राज्य सरकार की इसी वचनबद्धता पर दी थी कि पुल के सुचारु होने के बाद जिला प्रशासन की सहमति से इस रेलवे फाटक को बन्द कर दिया जायेगा ताकि रेलवे इस फाटक पर कार्यरत द्वारपालों से सम्बन्धित देनदारियों से मुक्त हो ले।
यह तो हुई दो सरकारी महकमों की गपड़चौथ, लेकिन क्या इन दोनों महकमों ने उक्त वचन लेते-देते समय इस फाटक से चौबीसों घण्टे प्रभावित रहने वाले यहां के बाशिन्दों और दुकानदारों से कोई सलाह-मशवरा भी किया क्या? हम राजशाही में नहीं रह रहे हैं, लोकतंत्र में प्रशासन जनता की सामूहिक आकांक्षाओं के आधार पर चलता है। वैसे भी वाशिंग लाइनों के फाटक पार चले जाने, दिन भर शंटिंग चलने और गाडिय़ों के आवागमन के चलते यह फाटक दिन के चौबीस घण्टों में लगभग आधे से अधिक समय बन्द ही रहता है। वचनबद्धता हो गई है तो रेलवे अपनी जगह सही है, प्रशासन को जनभावना के आधार पर इस फाटक को चालू रखवाना है तो रेलवे से तय मद के अनुसार राज्य सरकार समय पर उसका भुगतान क्यों नहीं कर रही है। सरकार में होने वाले खर्चों के बारे में लोक में प्रचलित ही है कि यहां 'आळा-गीळा सब बळे', राजीव गांधी भी रुपये में पन्द्रह पैसे खर्च की असलियत स्वीकार चुके हैं। हालांकि ऐसा नहीं होना चाहिए। यानी हाथी तो निकल जाते हैं, पूंछ इन सरकारी महकमों में अटक जाती है। रेलवे जिन निन्यानबे लाख के लिए बिफरी है, अलबत्ता ऐसी नौबत आई ही क्यों। सार्वजनिक निर्माण विभाग ने समय रहते यह भुगतान क्यों नहीं किया। अब जिला कलक्टर हस्तक्षेप करके दोनों को बिठाएंगी। पीडि़त पक्ष भी प्रशासन के पास ही जाता है।
ऐसे में पूछा जा सकता है कि हमारे नेताओं और जनप्रतिनिधियों पर से भरोसा क्यों उठता जा रहा है। जनता या तो खुद सक्रिय होती है या प्रशासन के पास जाती है-जनप्रतिनिधियों के पास नहीं। शहर सुकून के साथ जी सके, लोकतंत्र में इसकी जिम्मेदारी यहां से जीते पार्षदों और विधायकों की नहीं है? लग तो यही रहा है कि नहीं है। वे सक्रिय होते तो क्या यह नौबत आती। जनप्रतिनिधियों की ही जिम्मेदारी है कि ऐसे मसलों पर सम्बन्धित महकमों में सामन्जस्य बिठाने का काम करें। अब भी देर नहीं हुई है। रानी बाजार फाटक बीकानेर (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र में आता है। विधायक सिद्धीकुमारी सक्रिय होकर अपने इलाके के मतदाताओं को राहत दिलाने की जिम्मेदारी निभाए।
इसी तरह कोटगेट फाटक का समाधान यदि अण्डरब्रिज से किया जा रहा है तो बीच बाजार के लगभग सौ व्यवसायी स्थायी तौर पर सीधे प्रभावित होंगे और रोष व्याप्त होगा। अत: विधायक (पश्चिम) गोपाल जोशी की जिम्मेदारी बनती है कि इसके व्यावहारिक हल एलिवेटेड रोड पर केवल सहमति बनवाएं बल्कि योजना को शीघ्र पारित करवाकर काम शुरू करवाएं। कुछ दुकानदारों को यदि लगता है कि एलिवेटेड रोड के निर्माण के दौरान व्यवसाय थोड़ा-बहुत बाधित होगा तो उन्हें समझाया जा सकता है कि यह बाधा तो कुछ समय की है।
एलिवेटेड रोड का दोहरा लाभ होगा, एक तो जिन्हें महात्मा गांधी या स्टेशन रोड पर खरीदी करनी है वे ही नीचे से गुजरेंगे और दूसरा, उन्हें सड़क के मध्य पार्किंग की सुविधा मिलेगी जिससे ग्राहक दुकानों तक बिना बाधा के पहुंच सकेंगे। शेष जिन्हें शहर के अन्दर और रेलवे स्टेशन की ओर जाना है वे ही एलिवेटेड रोड का इस्तेमाल करेंगे। अण्डरब्रिज बना तो उसकी जद में आए दुकानदारों का व्यवसाय तो हमेशा के लिए उजड़ेगा, गंदा पानी भरे रहने की समस्या शाश्वत बनी रहेगी। क्योंकि गंदे पानी से निजात जब ये सूरसागर को साठ सालों में दिलवा सके तो अण्डरब्रिज को तो हरगिज नहीं। कोटगेट फाटक पर अण्डरब्रिज बन भी गया तो सांखला फाटक की समस्या ज्यों-की त्यों रहेगी ही। ऐसे में जिन्हें स्टेशन की ओर जाने की जल्दी होगी वे अण्डरब्रिज से होकर कोटगेट सट्टा बाजार में फंसेंगे। प्रशासन यह भी भूल रहा है कि पूरे शहर की मुख्य सीवर लाइन इसी फाटक के नीचे से गुजर रही है। उसकी वैकल्पिक व्यवस्था करना भी कम पेचीदा नहीं है।
शहर के दोनों विधायक गोपाल जोशी और सिद्धीकुमारी जनप्रतिनिधि होने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाएं और इन तीनों रेल फाटकों की समस्याओं को हल करने में रुचि दिखाएं। विधायकद्वय सक्रिय होते हैं तो इनका समाधान निकलने में देर नहीं लगेगी।

2 जुलाई, 2014

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