Wednesday, July 16, 2014

वेदप्रताप वैदिक के बहाने

अखबारों में तो कुछ खास नहीं लेकिन खबरिया चैनलों और सोशल साइट्स पर इन दिनों हिन्दी प्रेमी विद्वान और पत्रकार वेदप्रताप वैदिक सुर्खियों में हैं। हाल ही की उनकी पाकिस्तान यात्रा की दो कारणों से आलोचना हो रही है, एक तो पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' को दिए साक्षात्कार में कश्मीर पर दिया उनका बयान और दूसरा 2006 के मुम्बई रेल धमाकों और 9/11 के मुंबई हमलों सहित भारत में कई आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराए गए हाफिज़ मुहम्मद सईद से उन्हीं के घर उनकी लम्बी मुलाकात।
चार-पांच दिन पहले ही सोशल साइट्स पर एक फोटो नजर आया जिसमें वैदिक और हाफिज़ सईद साथ बैठे बातचीत कर रहे हैं। कहा जाता है कि इस फोटो को वायरल स्वयं वैदिक ने ही किया, मकसद क्या था, नहीं बताया। हाका फूटा तो उन्होंने स्वीकार किया कि इस दो जुलाई को वह हाफिज के घर जाकर मिले और एक घंटे से ज्यादा समय तक बातचीत की। यह 'गोपनीय' मुलाकात यदि एक पत्रकार के नाते थी और मकसद बातचीत के माध्यम से कुछ खोजना और बरामद करना था तो पत्रकारीय धर्म निभाते हुए उन्हें इसे प्रकाशित-प्रसारित करवा देना था। इसमें इतनी छूट तो मिल सकती है कि जिन मुद्दों को जाहिर करने का वादा वे हाफिज से कर आए हैं, उन्हें लिखते-बताते।
लेकिन जो बातें छन कर रही हैं वह यह कि यह मुलाकात पत्रकार की हैसियत से नहीं होकर कोई और मकसद से थी। विभिन्न विषयों के अध्येता डॉ. वैदिक का प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं। और जिस रुझान से वे लिखते रहे हैं उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से प्रभावित उनमें अनुकूलता पाते हैं। पिछले एक अरसे से वैदिक की फजीती तब शुरू हुई जब से वे आयुर्वेद और योग का धंधा करने वाले रामदेव की पैरवी करने लगे थे और ऐसा करते हुए उन्हें अकसर दयनीय स्थिति में देखा जाता था। हालांकि जिस प्रतिष्ठा को वे हासिल कर चुके हैं उसमें उन्हें रामदेव जैसे धंधेबाजों की पैरवी कर उपयोग होने की जरूरत नहीं थी। इतना ही नहीं एक पत्रकारीय छवि के बावजूद लोकसभा चुनावों के अभियान में भाजपा के मंच से नरेन्द्र मोदी की विरुदावली गाते भी इन्हें सुना गया।
कहा यह जा रहा है कि अब जब पूर्ण बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी देश की बागडोर सम्भाल रहे हैं, मौका लपक कर वैदिक ने पिछले एक साल में बोई फसल को काटने में अपने ही हाथ घायल कर लिए हैं। वे इस फिराक में थे कि वे ऐसा कुछ कर दिखा पाएं कि उम्र के इस मुकाम पर राजदूत बनने की अपनी आकांक्षा पूरी कर सकें। इसके लिए वे हाफिज़ से हुई बातचीत की प्रतिपुष्टि (फीडबैक) देने प्रधानमंत्री से मिलना चाह रहे थे। यह सब कुछ यदि लगभग सच है तो थोड़ी चूक होने पर हश्र यही होता है जो इस समय वैदिक का हो रहा है। चूक यही कि उन्हें अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए थोड़ा धैर्य रखना चाहिए था। हाफिज़ से मुलाकात का फोटो वायरल नहीं होने देना था, यदि उसे वायरल उन्होंने ही करवाया है तो। वैसे आज के इस कुछ भी छिपा रहने के युग में इससे भी कितनेÓ दिन बचते, इधर से नहीं तो 'उधर' से कुछ वायरल हो जाता।
दूसरे, कश्मीर पर जिस बयान को लेकर वैदिक की आलोचना हो रही है, उस पर अब बेधड़क बात होनी चाहिए। वैदिक ने एकीकृत कश्मीर को अंत:स्थ राज्य (बफरस्टेट) बनाने का व्यावहारिक समाधान ही तो सुझाया है।  कश्मीर ही क्यों भारत-चीन सीमा पर भी अब तक संघ से प्रभावित लोग जो समाधान बताते और छीछालेदार करते रहे हैं, उसे क्रियान्वित करें, क्योंकि कुछ व्यावहारिक होने की जरूरत अब महसूस होने लगी है। संघ का राजनीतिक संगठन भाजपा केन्द्र में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ शासन संभाल रहा है और कांग्रेस पक्षाघात से नहीं उबरे तो हो सकता है मजबूरन ही सही जनता इन्हें एक कार्यकाल और दे दे। जनता पिछले लम्बे समय से कांग्रेस को भी विकल्प के अभाव में ही चुनती आई है। कश्मीर के मुद्दे पर वैदिक की राय को विवादास्पद कहना कम से कम देशवासियों को अब तो छोड़ देना चाहिए। भारत-चीन सीमा विवाद और कश्मीर समस्या की कीमत अब तक देश ने कितनी चुका दी है और कितनी और चुकानी है, तलपट यह भी जरा देख लेना चाहिए।

16 जुलाई, 2014

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