युवा-भाषा में कहें तो इन दिनों बीकानेर हॉट सिटी बना हुआ है। प्रदेश की मुख्यमंत्री
वसुन्धरा राजे की कार्यशैली अनुसार जून के आखिरी दस दिन सरकार संभाग में ही रहेगी, चूंकि बीकानेर संभाग मुख्यालय है सो शहर इन दिनों पूरी हरकत में है। न भी हो तो अखबार और खबरिया चैनल जैसे मीडिया के दोनों माध्यम उत्प्रेरक की भूमिका में हैं ही। और तो और इन्होंने सुन्नपात से ग्रसित कांग्रेस में भी जुम्बिश पैदा कर दी। जिस भी अवस्था में है कम से कम शहर कांग्रेस तो हिलने-डुलने लगी है, नहीं तो लग रहा था साल-छह महीने तो यह आपगोडे आएगी ही नहीं। कांग्रेस ने जितनी हरकत दिखाई उससे ज्यादा की उम्मीद करना फिलहाल उसके साथ ज्यादती हो सकती है।
उधर देहात भाजपा का तो पता नहीं शहर भाजपा में जरूर चुनाव पूर्व शुरू हुई कसमसाहटें न केवल अंगड़ाइयां लेने लगीं बल्कि उसमें बौखलाहट भी देखी जाने लगी है। विधानसभा चुनावों के दौरान शहर भाजपा की बनी अजीब स्थितियों को संभालने के लिए पूर्व में अध्यक्ष रहे नन्दकिशोर सोलंकी को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन अपनी कार्यशैली के चलते पार्टी के भीतर वे अपने विरोधियों की फेहरिस्त को बढ़ाते रहे। यही वजह है कि पार्टी उनके विकल्प पर विचार करने लगी है। सोलंकी यदि चतुराई से अपनी कार्यशैली में लचीलापन लाते तो यह नौबत नहीं आती। यदि ऐसा वे कर पाते तो वे आदर्श पार्टी अध्यक्ष होते। खैर, जिस कांग्रेसी संस्कृति पर भाजपा भी अब पूरी तरह या कहें दो चंटा बेसी चलने लगी है, उसमें सोलंकी की मौजूदा कार्यशैली का कोई स्थान बचा है, नहीं लगता!
सरकार आपके द्वार आयोजन की बात करें तो अब जब इसके शुरू होने में एक सप्ताह भी शेष नहीं बचा तब भी प्रशासन अभी तक तैयारियों का खाका भी नहीं खींच पाया है, आज दिन तक तो यही तय नहीं हो पाया कि बीकानेर जिले की जनसुनवाई कहां होगी? कहां-कहां और किस-किसका उद्घाटन-शिलान्यास करवाना है। लगता तो नहीं कि 2008 की तरह हाबड़-ताबड़ कुछ होने वाला है। शहरी क्षेत्र में कुछ साफ-सफाई और रंग-रोगन के अलावा डेढ़-महीने पहले से तैयार पर बेकार पटके रखे चौखूंटी पुलिया पर यातायात जरूर शुरू हो जायेगा, ऐसा होना ‘सरकार आपके द्वार’ आयोजन के खाते में तो हरगिज नहीं माना जायेगा। इसी तर्ज पर तकनीकी विश्वविद्यालय का मसला यदि हल होता हो या हवाई सेवा शुरू कर दी जाती है तो यह उपलब्धियां भी चौखूंटी पुलिया की भांति इस सरकार ने या तो पिछली सरकार से हड़पी हैं या फिर इसे विरासत में मिल गईं है।
कुल जमा लग यही रहा है कि वसुन्धरा के पास घोषित कर दिये गये आयोजन के लिए न तो इस बार अवकाश है और न ही ऐसी मन:स्थिति जो छाप छोड़ सके। भविष्य की कोई घोषणाएं करनी हैं तो वह क्या होंगी, उनसे यहां के आम बाशिन्दे कितने लाभान्वित होंगे, देखने वाली बात होगी। फिलहाल तो चौखूंटी पुलिया, तकनीकी विश्वविद्यालय और हवाई सेवा जैसे होये-हुओं को गोद में लेने की जुगत करना उचित रहेगा। पेट में पलने वाली की आस निराशाएं दे सकती है। बडेरे कह गये हैं कि पेट वाले की आस में गोद वाले को फेंकना समझदारी नहीं है। अन्यथा रवीन्द्र रंगमंच, जैन स्कूल के पास वाली लिंकरोड, भुट्टों के चौराहे से लालगढ़ रेलवे स्टेशन वाली लिंकरोड, बीकानेर रेलवे स्टेशन के दोनों ओर की वे सड़कें जो सूरज टॉकीज चौराहे से डाक बंगले तक और रेलवे प्रेक्षागृह
के पास से द्वितीय द्वार तक जाती है, इन दोनों का दुरुस्तीकरण
इस आयोजन में पूरा करवाया जा सकता था। रही बात कोटगेट और सांखला रेल फाटक की समस्या की तो अभी इसे और इसलिए भुगतना होगा, क्योंकि शहरियों को समाधान क्या चाहिए उस पर यहां के बाशिन्दे खुद निहित स्वार्थों के चलते तीस सालों से व्यावहारिक एकराय नहीं बना पाए हैं।
17 जून,
2014
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