Tuesday, June 10, 2014

सपने देखने की क्षमता प्रत्येक की बने

अच्छे दिन लाने के वादे के साथ पूर्ण बहुमत से आई सरकार की ओर से राष्ट्रपति ने कल संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करते हुए कार्यक्रमों की औपचारिक घोषणा कर दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ महीने के अपने चुनाव अभियान और लोकसभा चुनावों के पार्टी घोषणापत्र में जो वादे किये उनमें से कुछ विवादास्पद को छोड़ दें तो अधिकांश को पूरा करने की इच्छा सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के माध्यम से जताई है। मोदी का काम करने का जो तरीका है उसके अनुसार तमाम किन्तु-परन्तुओं को ताक पर रखकर अपने द्वारा सोचे और कहे को करने की हर कोशिश करते हैं।
भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने का एक कारण मोदी की यह कार्यशैली भी रही है। यह बात अलग है कि मोदी अपनी इस कार्यशैली में आदर्श लोकतान्त्रिक तौर-तरीकों का निर्वहन करते हैं कि नहीं और उनके द्वारा तय लक्ष्यों की कसौटी असल में लोककल्याण है कि नहीं। वर्तमान व्यवस्था से धाए-धापे और भ्रमित आम-आवाम में से भी अधिकांश को यह कहते सुना जा सकता है कि देश को इसी तरह से काम करने वाला नेता चाहिए।
राष्ट्रपति के कल के अभिभाषण में सरकार ने जो कुछ नहीं कहलवाया उन्हें विपक्ष के मुद्दों के लिए छोड़ दें और जो-जो कहलवाया वह सब क्रियान्वित हो जायेगा, इसकी उम्मीद करनी चाहिए। हालांकि इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें पूरा करना बहुत मुश्किल नहीं है और सरकार उन्हें जनता तक पहुंचा कर वाहवाही लूट सकती है, जैसे-संसद में महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण, पांच साल में सार्वजनिक स्थलों पर वाइ-फाई, गांवों में ब्राडबैंड, मदरसों का आधुनिकीकरण, सभी प्रदेशों में एम्स जैसे अस्पताल, आइआइएम और आइआइटी जैसे संस्थान।
विदेशों में जमा कालेधन की पड़ताल के लिए उच्चतम न्यायालय ने 29 मई को हुड़ा देकर एसआइटी का गठन करवा दिया, सरकार बनते ही पहली वाहवाही तो इसकी ऐसे ही मिल गई।
बाकी राष्ट्रपति से जो कुछ भी कहलवाया है उन्हें इस घोर भ्रष्ट, गैर जिम्मेदार और लापरवाह व्यवस्था से समयबद्ध और दक्षता से करवाना कितना संभव होगा देखने वाली बात होगी। सरकार ने वादा तो किया है कि भ्रष्टाचार को प्राथमिकता से रोकेंगे लेकिन क्या यह उम्मीद करनी चाहिए कि भ्रष्ट तौर-तरीकों से चुनाव जीत कर आए लगभग सभी सांसद इन तौर-तरीकों को तिलाञ्जलि देने का संकल्प लेकर भ्रष्टाचार को रोकने में प्रेरक बनेंगे। क्या यह संभव है कि इन नेताओं को तो भ्रष्ट, नैतिक-अनैतिक और अच्छे-बुरे सभी तौर-तरीकों की छूट हो और नीचे के अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी आदि सभी अपनी ड्यूटी और लेन-देन में ईमानदार हो जाएं? यदि ऐसा मानते हैं तो कोरी खाम-खयाली होगी और इस अभिभाषण से जो सब्जबाग के दृश्य पेंट किए गए हैं, जमीनी हकीकत बनने से पहले ही उनके उजडऩे में देर नहीं लगेगी।
देश की व्यवस्था में दीमक की तरह कम और ज्यादा घर कर चुके भ्रष्टाचार और हरामखोरी के चलते दुर्घटनाएं रुकेंगी, दलितों और महिलाओं पर अत्याचार रुकेंगे, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली पुख्ता हो पायेगी। निजी क्षेत्र को कुछ भी सौंपोगे तो उनकी आदतें दस-बीस प्रतिशत मुनाफा कमाने की नहीं, उन्हें कई-कई सौ प्रतिशत मुनाफे की आदत है जिनमें से एक छोटा टुकड़ा नेताओं, अधिकारियों और कर्मचारियों को वे नाखते हैं और एक छोटा हिस्सा लोक-दिखावे के लिए छिट-पुट लोककल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए दे देते हैं।
रेलवे को लेकर राष्ट्रपति ने नए वित्तीय प्रबन्ध करने की बात कही है, संभवत: इसे जानबूझ कर गोलमाल रखा गया, जैसे अंदेशे जताए जा रहे हैं, रेलवे में निजी भागीदारी की मंशा यदि सरकार की है तो ऐसा करना कमजोर, पिछड़ों और दलितों के लिए रेलगाड़ी से यात्रा भी सपना हो जायेगी, मोदी जी सपने उतने ही देखने चाहिए जितने से देश के प्रत्येक नागरिक की सपने देखने की क्षमता बनी रहे।
कुछ करना ही है तो भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने का बीड़ा उठा लो-शेष तो अधिकांश अपने आप हो जायेगा।

10 जून, 2014

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