Wednesday, March 5, 2014

आज की कही गोपाल जोशी, सिद्धीकुमारी से-दो

बीकानेर शहर के दोनों विधायक गोपाल जोशी और सिद्धीकुमारी की निष्क्रियता की इन तीन महीनों में पड़ताल करें तो गोपाल जोशी को अस्वस्थता की थोड़ी आड़ मिल सकती है लेकिन चुनाव जीतने के बाद सिद्धीकुमारी का अलोपन वैसा ही है जैसा उनकी पिछली विधायकी में पांच साल रहा। अन्यथा इन विधायकों को शहर के कुछ ऐसे काम करवाने में रुचि दिखानी चाहिए जिनके माध्यम से शहर इन्हें लम्बे समय तक याद रख सके। इस मामले में लोक में प्रचलित उस लफ्फे से शहर का मिजाज समझ सकते हैं जिसमें कोलकाता के हावड़ा ब्रिज को देख कोई बीकानेरी कह पड़ा- 'वाह रे गंगासिंह! कांई पुल बणायो है।'
शहर की सबसे बड़ी समस्या रेलवे फाटकों की है। कोटगेट और सांखला फाटक को छोड़ शेष का समाधान हो गया है और होने को है। उक्त दोनों फाटकों का व्यावहारिक हल मात्र एलिवेटेड रोड ही है। पहले तो इसे मान लेना चाहिए अन्यथा समाधानों पर आन्दोलन, बहस, योजनाएं और विचार विमर्श में ही हमने कई दशक जाया कर दिए हैं। एलिवेटेड रोड में अड़चन बने कुछ हौबे किस्म के चौधर करने वालों को किनारे करके योजना को तुरत-फुरत अमलीजामा पहनाने की जरूरत है। दोनों विधायक इसके लिए इच्छाशक्ति जुटा लें तो अगले दो वर्षों में शहर की सांस सामान्य हो सकती है।
इस बड़ी समस्या का समाधान करने की ठानने के बाद ऐसी कोई समस्या नहीं है जिस पर इन विधायकों को जोर करना है। सूरसागर को लेकर भी शहर को अपना मन उलटना होगा। कृत्रिम साधनों से इस झील को भरे रखना इतना महंगा है कि इस रेगिस्तानी शहर में इसे विलासिता ही कहा जायेगा। बीते :-सात वर्षों में कृत्रिम साधनों से इसे भरने और भरे रखने की कई असफल कोशिश हो चुकी हैं, घुटनों तक का पानी भी परोट नहीं सके हैं। सूरसागर को पहले प्रकृति और फिर गन्दे पानी के स्रोत लबालब रखते थे। आगोर के पूरी तरह विलुप्त होने के बाद इसे प्राकृतिक रूप से भरे रखना संभव नहीं है और गंदे पानी से ही भरे रखना था तो जो इन वर्षों में किया गया उसकी जरूरत ही क्या थी।
सूरसागर बिना दूब के ऐसे ड्राइपार्क के रूप में विकसित किया जाना चाहिए जिसमें रेगिस्तानी पेड़-पौधे और बीच-बीच में तालाब की शक्ल लिए दो-एक छोटे लिलिपोण्ड हों। इस तरह से विकसित यह स्थान सैर के लिए केवल शहरियों का आकर्षण केन्द्र बनेगा बल्कि रेगिस्तानी पेड़-पौधों से समृद्ध यह बगीचा देश-विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए भी कम रुचिकर नहीं होगा।
जहां तक 'कोढग़्रसित' पीबीएम अस्पताल की बात है, उसे सुधारना इसलिए ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह भ्रष्टता और कर्तव्यहीनता की उसी सामाजिक बुराई का शिकार है जिसने पूरे समाज की तासीर बदलने की ठान रखी है। अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और कर्तव्यहीनता की छूट हमने ले और दे रखी है तो उससे अस्पताल कैसे अछूता रह सकता है भला? वहां भी लोग हमारे इसी समाज का हिस्सा हैं। बावजूद इसके चामत्कारिक तो नहीं पर कुछ सुधार हो सकते हैं। इसके लिए सबसे जरूरी है जरूरत का सभी तरह का स्टाफ अस्पताल को मुहैया करवाया जाए और फिर सरकार यदि चिकित्सालयों के लिए अलग से प्रशासनिक सेवा का गठन करे एवं प्रदेश की अस्पतालों का प्रशासन उसी सेवा के प्रशासक चिकित्सकों को सौंपे। इस विचार पर 'विनायक' पहले एक से अधिक बार विस्तार से लिख चुका है। गंगाशहर चिकित्सालय को सैटेलाइट का दर्ज मिलना जरूरी है, विधायक चाहें तो आगामी बजट में इसकी घोषणा करवा सकते हैं।
शेष रहे कुछ छिटपुट वह काम जिन्हें पिछली सरकार से सम्बन्धित नेताओं ने भी और इन विधायकों ने भी पूरा करवाने में रुचि दिखाई और तत्परता। जैसे चौखूंटी ओवरब्रिज के निर्माण कार्य को कभी का सम्पूर्ण करवाया जा सकता था। इसी तरह गंगाशहर रोड पर जैन स्कूल के पास की मोहतासराय तक की लिंकरोड के निर्माण कार्य को भी ढील में छोडऩे का कारण समझ से परे है। भाजपा की सरकार बन जाने के बाद शहर के दोनों विधायक सक्रिय होकर रुचि लेते तो ये दोनों काम इन तीन महीनों में पूरे हो सकते थे।
जिले के विधायकों की इन तीन महीनों में निष्क्रियता का असल कारण अगले चुनाव में यदि अपने सांसद की कारसेवा का प्रकल्प है तो मामला खुनस का है। अन्यथा आम-आवाम ने आपको फिर मौका दिया है, आपका उत्तरदायित्व बनता है कि कुछ तो कर गुजरें।  समाप्त

5 मार्च, 2014

1 comment:

maitreyee said...

सबसे अच्छा लेख!!