Monday, July 20, 2015

पीबीएम अस्पताल के डॉक्टरों से.... 'तू इधर-उधर की न बात कर... '

पीबीएम अस्पताल लगातार सुर्खियों में है। सुबह 8.10 का ही एक वीडियो आज फेसबुक पर अपलोड किया गया है जिसमें पूछताछ केन्द्र पर पर्ची बनाने वाले कर्मचारी से खुले रुपये होने पर किसी को जद्दोजेहद करते दिखाया गया। हर बाह्य रोगी को उपचार पर्ची के पांच रुपये जमा करवाने होते हैं। पांच का नोट छपना बन्द होने के बाद से पांच के सिक्के की कमी भी बाजार में सामान्यत: देखी गई है। यद्यपि बैंक के माध्यम से पांच के सिक्के जब तब बाजार में आते रहते हैं। ऐसे में पीबीएम प्रशासन बैंक के माध्यम से पांच के सिक्कों की व्यवस्था क्यों नहीं करवाता। कहा जा रहा है कि ऐसी व्यवस्था होने से मरीज और उसके परिजनों को पांच रुपये हासिल कर पाने को बाध्य होना पड़ता है और ड्यूटी कर्मचारी इस तरह से ही सैकड़ों रुपये रोज ऊपर का कर लेते हैं।
कल ही पत्रकारों के एक आयोजन में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, सहप्राचार्य और पीबीएम अस्पताल के कार्यवाहक अधीक्षक ने पत्रकारों से अपरोक्ष आग्रह किया कि अस्पताल को लेकर नकारात्मक खबरें ना छापें, और साथ ही उन्होंने आश्वस्त किया कि अस्पताल की गड़बडिय़ों को शीघ्र ही ठीक करने की कोशिश करेंगे।
नागरिकों का एक समूह अस्पताल के बदतर हालात को सुधारने को सक्रिय हुआ और उनकी इच्छाशक्ति से लगता है कि वे कुछ जरूरी सुधार करने को अस्पताल प्रशासन को मजबूर कर देंगेदूसरी ओर अस्पताल प्रशासन इस सब को लेकर सकते में तो है ही और वे इस उम्मीद में भी है कि ये युवक जल्द थक जाएंगे, नहीं तो बिखर जाएंगे, उनकी इस सुखद आशंका में दम भी है, क्योंकि आजादी के समय का वह माद्दा अब देखने को कम ही मिलता है जिसमें हजारों लोगों ने अपने जीवन परिजन की परवाह नहीं की थी।
'विनायक' का मानना है कि पीबीएम अस्पताल का ढंग-ढाळा बिगाडऩे में सब से ज्यादा जिम्मेदार डॉक्टर ही हैंवे अगर लालच में नहीं आते तो यह अस्पताल ऐसी बदतर स्थितियों को हासिल नहीं होता। मानते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र की सभी सेवाओं को ऐसे हश्र तक पहुंचाने में नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं लेकिन जो डॉक्टर मेडिकल कॉलेज सेवा से आते हैं उनका ये नेता इतना ही बिगाड़ा कर सकते हैं कि उन्हें दूसरी जगह वहीं भेजेंगे जहां सरकारी मेडिकल कॉलेज होंगे।
मेडिकल शिक्षा सेवा के डॉक्टर ये भूल जाते हैं कि वे सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही पढ़े हैं और उनकी उस पढ़ाई में ही एक-एक डॉक्टर पर सार्वजनिक धन का लाखों रुपया खर्च हुआ है। अलावा इसके उन्हें जो तनख्वाह दी जा रही है वह भी उसी सार्वजनिक धन से ही दी जाती है जो जनता विभिन्न करों के माध्यम से सरकार को चुकाती है। अस्पताल के अन्य खर्च भी इसी सार्वजनिक धन से पूरे होते हैं। इसीलिए अभिनव नागरिकों की इस बात में दम है कि इनकी असली मालिक तो खुद जनता ही है और जनता में भी सुविधाओं को भोगने का मानवीय आधार पर पहला हक गरीब और कमजोर का बनता है, जिन्हें अकसर दुत्कार ही मिलती है।
ये डॉक्टर इन सब बातों को मन से निकाल चुके हैं और लूट खसोट की ऐसी प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुके हैं जिसमें जीतता वही है जो ज्यादा लूटने की कूवत को हासिल कर लेता है। बीस-बीस, तीस-तीस सालों से एक ही जगह जमे ये डॉक्टर बताएंगे कि इसके लिए वे क्या करते हैं। एक ही जगह जमे रहने के लिए धन, जमीर और यहां तक अपनी अस्मिता तक ताक पर रखने के डॉक्टरों के किस्से जब तब सुनने को मिल ही जाते हैं। ये कैसा कुचक्र है कि धन और ऐयाशी के लालची ये यहां जमे रहने के लिए नेताओं को यही सब उपलब्ध भी करवाते हैं।
डॉक्टर ईमानदारी और निष्ठा से अपनी ड्यूटी निभाना शुरू कर दें तो अधीनस्थ तो क्या ये नेता भी इनका ज्यादा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। पीबीएम अस्पताल के इन डॉक्टरों को फिराक गोरखपुरी साहब के शे' के मुखातिब कर आज की बात खत्म करना मौजूं होगा
'तू इधर-उधर की बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा
मुझे रहजनों से गरज नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है'

20 जुलाई, 2015

1 comment:

Unknown said...

सजग पत्रकारिता देश निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक है ! आपका निर्भीक बेबाक अंदाज राष्ट्र निर्माण में सहयोग तो करेगा ही साथ ही जनता को देश भक्ति के लिए प्रेरित भी करेगा ! आपको अभिवन नागरिकों की और से सलाम !