नगर विकास न्यास के बेडे़ ने शनिवार को बीकानेर की
जयनारायण व्यास कॉलोनी के कुछ सेक्टरों से अतिक्रमण हटाए हैं। स्थानीय अखबारों ने
इस सकारात्मक कार्रवाई को कोई खास तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा। शायद तभी न्यास के
तहसीलदार अशोककुमार खत्री ने इसकी सचित्र जानकारी अपनी फेसबुक वॉल पर साझा की। इसी
अनुसरण में फिर प्रेस फोटोग्राफर दिनेश गुप्ता ने कुछ चित्र लगाए हैं।
सुगम पोर्टल पर की शिकायतों के आधार पर पिछले माह 17
जून को नगर निगम ने शहर के भीतरी क्षेत्र में ऐसी ही कार्यवाही की लेकिन पुलिस
महकमे से पर्याप्त इमदाद न मिलने और निगम अधिकारियों में ही सामंजस्य न होने के
चलते अभियान न केवल तत्काल ही फिस्स हो गया बल्कि हुआ यह कि दो दिन बाद ही शुरू
होने वाले अतिक्रमण हटाओ सप्ताह की भी टें बोल गई। सरकार की ओर से सुगम पोर्टल के
माध्यम से प्राप्त शिकायतों पर प्रशासन को समयबद्ध परिणाम देने की जो बाध्यताएं
हैं, उसी का परिणाम है कि
प्रशासन राजनेताओं और प्रभावशालियों के दबाव के बावजूद इस तरह की कार्यवाहियां
करने को मजबूर है। इंटरनेट फ्रेंडली होते समाज में इस सुविधा के सहारे यह साहस भी पनपने
लगा है। पड़ोसियों के अतिक्रमण से परेशान और पत्र लिखने व उसे संबंधित विभाग तक
पहुंचाने का आलस करने वाले अब सुगम पोर्टल पर तत्काल शिकायत दर्ज करवाने लगे हैं।
कागज-पत्र और विभाग तक पहुंचाने के झंझट में सुगम पोर्टल सुविधा से पहले वह दूसरा
विचार जिसे कि ‘सेकिंड थॉट’ भी कहते हैं, आ ही जाता था कि ‘बळण दो’। दरअसल इस सेकिंड थॉट ने ही सारा कबाड़ा किया है। हर
गलत होते काम पर ‘बळण दो’ की सोच ने प्रशासन और समाज दोनों में गड़बड़ियां, लापरवाही, हरामखोरी और
भ्रष्टाचार को बढ़ने देने की अनुकूलताएं बनाई। जो भी जागरूक नागरिक इंटरनेट पर
सक्रिय है उनसे उम्मीद की जाती है कि हर गलत होते काम की शिकायत सुगम पोर्टल पर
करें। जब तक सरकार ने प्रशासन पर शिकायतों पर कार्यवाही की समयबद्ध बाध्यता बना
रखी है, तब
तक लगे रहें। इस तरह की कार्यवाहियां यदि होती रहेंगी तो समाज में अतिक्रमण तो
क्या अन्य गड़बड़ियां करने का दुस्साहस भी कम होता जायेगा।
अतिक्रमण की समस्या पर 23 जून के ‘विनायक’ के इसी कॉलम के आलेख
का अंश इस उम्मीद में साझा कर रहे हैं कि न्यास और निगम इस मुद्दे पर चेतन रहें
बीकानेर में पुराने शहर की बसावट यूं भी बेतरतीब और
संकरी है। ऊपर से हर कोई सड़क की ओर छह इंच से लेकर छह-आठ फीट तक बढ़ने को होता है।
खास कर नया मकान बनाने वाला छह-बारह इंच सड़क की ओर न बढ़े तो उसे लगता है कमजोर समझ
लिया जायेगा। ऐसे प्रत्येक की पीठ पर किसी-न-किसी छोटे-बड़े नेता का हाथ होता है।
पुराने शहर की ही क्यों, आधुनिक आयोजना से बसे रानी बाजार क्षेत्र का चौपड़ा
कटला, शर्मा कॉलोनी और ब्रह्मचर्य आश्रम वाली सड़क के
बाशिन्दों को देखें तो मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम और अच्छे खासे धनाढ्य तक इतने बेशर्म हो
लिए हैं कि यूं लगेगा जैसे किसी कब्जा कॉलोनी में आ लिए हों। यही क्यों, नई बसी न्यास-आवासन
मण्डल की कॉलोनियों में बाहर आए गैराज ‘गूमड़ों’ की तरह तो मन भाए जैसे बनाए गए रैम्प मरे राक्षस की
जीभ की तरह सड़क पर पसरे मिलेंगे। फुलवारी के नाम पर कई-कई फीट की तारबंदी भी अब आम
हो गई है।
कई लोग पड़ोसियों की ऐसी हरकतों को नाजायज मानते हैं या
परेशान भी होते हैं। लेकिन लिहाज करके या सुनवाई की उम्मीद न होने की आशंका में मन
मसोस कर रह जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद वैसा ही करके संतोष धारते हैं।
ऐसे में वे ये नहीं सोचते कि आखिर इसकी हद कहां जाकर होगी।
13 जुलाई, 2015
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