Friday, October 3, 2014

अभियान और प्रतीक भ्रमित ही करते हैं।

माता और भैरूं को लेकर लोक में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं पुत्र आकांक्षी भैरूं से यदि मनौती करते हैं तो वे कामना पूरी कर देते हैं। एवज में आकांक्षी जो भी बोलवां बोलता है उसे पूरा करना होता है। वणिक समुदाय के एक युवक ने भैरूं से पुत्र की मनौती की। मनौती का हुड़ा इतना था कि एवज में बिना यह आगा-पीछा सोचे कि वह ऐसा कर भी पायेगा पाडे (भैंस का बछिया) की बलि भी बोल दी। समय गुजरा बेटा हो गया। पत्नी को मनौती का ध्यान था, उसने याद दिलाया। बलि के नाम पर पसीने छूटने लगे, बोलवां पूरी तो करनी थी सो पाडा खरीदा और पहुंच गया भैरूं के पास। सुबह की शाम होने लगी, बलि करने की हिम्मत नहीं हुई। आखिर पाडे की सांकल भैरूं के गले में डाली और कह दिया कि माफ करना मुझसे तो इतना ही हो पायेगा। पाडा भी थोड़ी देर बैठा, थोड़ी देर खड़ा रहा, पास में पानी नीरा, कितनी देर भूखा-प्यासा रहता! पाडे में करार था सो दो-तीन बार ताकत से भैंटी हिलाईभैरूं बाहर। जगह पक्की थी सो ज्यों-ज्यों पाडा इधर-उधर होता भैरूं बजने लगे। पाडा चमक कर बस्ती की ओर भागने लगा। आगे-आगे पाडा और पीछे रगड़ीजते भैरूं! रास्ते में माता की मढ़ी थी, भैरूं को बेहाल देख माता खिलखिलाई तो भैरूं ने जवाब दिया- 'माता तुमने मठ में बैठकर ही मटके किए है, किसी भीरु को बेटा देकर देख।'
इस कथा का स्मरण तब नहीं हुआ जब बीती 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदले तेवरों में राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए राज को सुचारु चलाने और वायदे पूरे करने के लिए जनता को स्वभाव बदलने की अपील की। साथ ही उन्होंने पहली बार यह भी स्वीकारा कि पिछली सभी सरकारों और प्रधानमंत्रियों ने देश के लिए बहुत किया, उनके किए को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुनते ही लगा कि मोदी कितने भले राजनेता हैं, लेकिन यह धारणा काफूर होते तब देर नहीं लगी जब तत्काल ही पिछले ग्यारह महीनों में मोदी द्वारा अपने पूर्ववर्तियों को पानी पी-पीकर कोसना याद गया। जनता ने भी मोदी को पूर्ण बहुमत यही मान कर दिया कि पिछले छासठ वर्षों में किसी ने कुछ नहीं किया, वह सब मोदी चुटकियों में कर देंगे। मोदी अपने चुनावी भाषणों में आश्वस्त भी ऐसे ही कर रहे थे। लेकिन राज का समय थोड़ा ही बीता कि मोदी के शायद समझ में गई कि चुनावी मटरके अलग बात थी। और यह भी कि देश का शासन चलाना प्रदेश का शासन चलाने जैसा नहीं है। चीन-पाकिस्तान की हरकतें वैसी ही हैं, महंगाई अपनी गति पर है। अन्य सब कुछ वैसा या कहें बदतर गति से चल रहा, जैसे पहले चलता था। विनायक ने पहले भी लिखा है कि मोदी ने कांग्रेस से सत्ता हथियाने को उन सब हथकंडों को बेधड़क और कुछ ज्यादा तीव्रता से अपनाया जिस तरह के तौर-तरीके कांग्रेस अपनाती रही थी। स्थानीय कही में कहें तो कांग्रेस के माथै बांधणै जोगा गया तो उसे  घर बैठणा ही था।
'स्वच्छ भारत मिशन' की शुरुआत करते मोदी ने कल जो भी उद्बोधित किया उसके तेवर वैसे ही थे जैसे लाल किले से बोलते समय थे। इस बीच जितने भी उपचुनाव हुए उनमें मोदी के करिश्मे ने काम किया और ही अमित शाह की करतूतों ने। सभी चुनाव परिणामों से यह जाहिर होता है कि जनता जिस तरह भ्रमित होकर वोट करती है, भ्रम टूटने पर वैसे ही पलटती भी है। वोट करने के ऐसे तरीकों में देश की समस्याओं का समाधान कतई नहीं दिखता। समाधान है विवेकसम्मत वोट करने में। तो तात्कालिक आश्वासनों, प्रलोभनों और भयादोहित होकर वोट करने से समस्याओं से छुटकारा मिलेगा ही हबीड़े में पासा पलटने से। अपनी सोच व्यापक मानवीय इस पूरे चर-अचर जगत के हित में विकसित करनी होगी और ऐसी सोच की पार्टी और उम्मीदवार जब तक नहीं है तब तक हाल में मिले लोकतांत्रिक अस्त्र 'नोटा' का प्रयोग किया जाना चाहिए।
रही बात मोदी की तो, मोदी बदले नहीं हैं। वह केवल अपनी जमावट में लगे हैं। बदलते तो वे अमित शाह को पार्टी का सारथि नहीं बनाते। ये उनकी द्वैध रणनीति है, द्वैध यानी 'राजनीति में दुरंगी नीति बरतने का गुण' मतलब मोदी मीठे बनेंगे और अमित शाह पीछे से असल ऐजेंडे अनुसार गोल करते रहेंगे। ऐसा यदि नहीं लग रहा है तो यह भी भोलापन ही है। व्यवस्था खुद में बदलाव तभी कर सकती है जब राजनीति और चुनावी तौर-तरीके बदलें, शासक ईमानदार हों। दूसरा रास्ता यही है कि जनता ऐसे सबों को खारिज करे। अन्यथा देश की सभी समस्याओं की जड़ भ्रष्टाचार को खुद ईमानदार हुए बिना मोदी खत्म कर पाएंगे और कोई और।  व्यक्तिगत ईमानदारी से ही कुछ होता तो मनमोहन सिंह दस साल रहे ही हैं ! कुछ नहीं कर पाए उलटे उनकी भलमनसात में कबाड़े ज्यादा हुए। जिन हथकंडों से कांग्रेस शासन पर काबिज होती रही, वैसे ही बल्कि उनसे बदतर हथकंडों से मोदी आए हैं। इसके लिए जिन-जिन ने भी धन दिया उसकी वसूली होगी, फिर पार्टी चलाने और अगले चुनावों के लिए भी सब कुछ जुटाना होगा।
यह जो भ्रष्ट सिस्टम या व्यवस्था है ये भैरूं को चढ़ाये गये पाडे की तरह है। जिसके भी बंधेगी उसे इसी तरह घिसटना होगा। इसलिए मोदी से कुछ उम्मीदें शेष भी हैं तो उनके चुकने में ज्यादा दिन नहीं लगने हैं। अभियान और प्रतीक तो भरमाने का काम करते हैं, जब तक जनता भ्रमित होती रहेगी, उसे आजमाया जाता रहेगा और देश और देशवासियों के नियन्ता और उनसे हुए समर्थ-सबल यूं ही उल्लू बनाते रहेंगे।

3 अक्टूबर, 2014

No comments: