बीकानेर की श्रीकोलायत
तहसील के ग्रांधी ग्राम में हुई फायरिंग में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। पीबीएम अस्पताल के शवगृह में पोस्टमार्टम करवा कर शव को दिया जाना था। मृतक के परिजन, समाज और हितचिन्तक
तब तक शव को न लेने के लिए अड़ गए जब तक सम्बन्धित थानाधिकारी को निलम्बित न किया जाए। दिन भर चले गतिरोध में पहले थानाधिकारी व उसके अधीनस्थ को लाइन हाजिर किया गया-लोग नहीं माने तो शाम
होते-होते उन्हें निलम्बित भी कर दिया।
यह सूचना
सभी तक पहुंच चुकी है, प्रशासन इस तरह
की रंजिशों के कारणों से वाकिफ है। जिप्सम और सफेद मिट्टी का अवैध कारोबार इलाके के नेताओं की सरपरस्ती में विस्तार खाकर विकराल होने लगा है। अवैध खनन में लगे व्यवसायी अब माफिया की भूमिका में आ गए हैं। इस कहे को खनन विभाग और पुलिस महकमे का पक्ष लेना न समझा जाय पर इन दोनों ही महकमों के कारकूनों की स्थिति अच्छी नहीं है। पहले तो इन इलाकों में कोई भला और ईमानदार अधिकारी लगता ही नहीं है। अन्य वे सरकारी मुलाजिम जो अतिरिक्त के लोभी हैं वह इन इलाकों में लग तो जाते हैं, पर सरकारी
नियम कायदों, खनन माफियाओं के विभिन्न
गुटों और राजनेताओं से मानसिक रूप से रगड़ीजते रहते हैं, ऊपर से ऊपर
तक उपरि वसूली का हिस्सा भेजने का तनाव अलग से।
देश में खनन सम्बन्धी कानून बने हुए हैं जिसके अन्तर्गत कहीं भी किसी
भी स्थिति में उपलब्ध होने वाली इस सम्पदा का मालिकाना हक सरकार का है। सरकार का मतलब प्रत्येक देशवासी समान रूप से उसका मालिक है। चूंकि, मालिक है तो
उससे अर्जित आय में जहां उसकी बराबर की हिस्सेदारी होती है वैसे ही इसकी देखरेख और खयानत से बचाने की जिम्मेदारी भी हम सभी की समान होगी। देखा गया है कि ऐसी समझ और जागरूकता का आम नागरिक में सर्वथा अभाव है और इसी अभाव के चलते देश में भ्रष्टाचार दिन-दूना और रात
चौगुना बढ़ता जा रहा है। कुछ दबंगी समर्थ राजनेताओं और व्यवस्था के साथ अपनी मिलीभगत से प्राकृतिक सम्पदाओं का लालच की हद तक दोहन करते हैं- अब तो
स्थितियां यह हो गई हैं कि उनकी इस हवस को पूरा करने में जो भी बाधा बने उसे मारने की हद तक जाकर रास्ते से हटाया जाने लगा है। अकसर देखा गया है कि इस अवैध धन्धे में लगे गिरोह खुद ही अपने लालच में एक दूसरे की बाधा बनते हैं। आशंका यह कि अगर यह प्रवृत्ति यूं ही बढ़ती गई तो इस क्षेत्र के गेंगवार की चपेट में आते देर नहीं लगेगी।
खनन विभाग हो या
प्रशासन और पुलिस महकमा या फिर वन विभाग-कोई भी इस
लूट में हिस्सेदार होने से संकोच नहीं करते। इसी का परिणाम है कि क्षेत्र में न केवल अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है बल्कि इस खनन से चांदी कूटने में लगे पीओपी फैक्ट्री वाले सस्ते और सुलभ जलावन के लालच में क्षेत्र की वन सम्पदा को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं इन फैक्ट्रियों के आसपास के वन क्षेत्र तो साफ होने की कगार पर हैं। बिना उगाये ही सदियों से क्षेत्र की कई जरूरतों को पूरा करने वाले इन खेजड़ी पेड़ों के बोटे लगे ठूंठ अब बहुतायत से देखे जा सकते हैं। इस सम्बन्ध में इन फैक्ट्री मालिकों में पर्यावरण के प्रति कोई दया-हया नहीं देखी जाती, चाहे
वे किसी भी तरह के धार्मिक होने की विलासिता का दिखावा करते रहे हों। 'विनायक' इस
सम्बन्ध में पहले भी आगाह कर चुका है पर बचे-खुचे पेड़ों का कटना
अब भी जारी है।
25 अप्रेल,
2014
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