भाजपाई दिग्गज अरुण जेटली ने कल प्रियंकाई पीड़ा का जवाब यह कहते हुए दिया कि नरेन्द्र मोदी पर भी व्यक्तिगत हमले बन्द हों। भाजपा के लिए नरेन्द्र मोदी पर और कांग्रेस के लिए रॉबर्ट वाड्रा पर हो रहे व्यक्तिगत हमलों का जवाब देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है। वाड्रा का राजनीति में नहीं होना जहां कांग्रेस के लिए थोड़ा बचाव है वहीं भाजपा का दावं ही मोदी पर लगा है। इस पूरे चुनाव अभियान की रूपरेखा और आर्थिक संसाधन मोदी के ही हैं। मोटा मोट देखा जाए तो इस चुनावी रेले में भाजपा मोदी की पालकी के कहार की और संघ जुगाडिय़े से ज्यादा की भूमिका में नहीं है। दूसरी ओर रॉबर्ट वाड्रा जो सोनिया गांधी के दामाद हैं, उनके व्यापारिक कार्यकलाप हमेशा से चर्चा में रहे हैं, और पिछले एक वर्ष से जमीनों से जुड़े उनके सौदों पर अंगुली भी उठती रही है। पक्षकार यह कुतर्क दे सकते हैं और देते भी हैं कि बड़े आदमी का रिश्तेदार होना कोई जुल्म है क्या, और यह भी कि वह कमाकर भी न खाए? ऐसे जवाब, जवाब देने से छुटकारा भर दिलाते हैं, जवाब नहीं हो सकते। क्योंकि ऐसे सभी सौदों के पीछे शासन की पीठ होती है।
कांग्रेस जब भाजपा पर किसी तरह का आरोप लगाती है तो उसका जवाब न देकर भाजपा का यह कहना कि आप सब भी ऐसा करते रहे हैं, इसलिए आपका ऐसे आरोप लगाने का हक नहीं बनता। यह जवाब में नहीं अनर्गलता में आता है और यह सन्देश देने में भी कि कांग्रेस से ऊबे मतदाता भाजपा की उबकाइयों को विकल्प के रूप में चुने। दोनों पार्टियों की यह आपसी लपा-लपी तो यही सन्देश दे रही है।
ऊपर उल्लेखित अरुण जेटली के कल के 'व्यथाई' उत्तर की पड़ताल कर लेते हैं। इस पर इस तरह भी विचार करना चाहिए कि क्या सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले व्यक्ति और ऐसे निकटस्थ जो उनके रोजमर्रा के कार्यकलापों से जुड़े हैं, उनकी निजता कितनी हो। विभिन्न चुनावों में देखा गया है कि उम्मीदवार के निजी शोक, हादसों और उनकी पत्नी-बहू, बेटे-बेटियों और माता-पिता की अपीलों से मतदाता भावनात्मक रूप से शोषित होते हैं। इसीलिए यह मानना उचित ही है कि जिसका व्यक्तित्व जितना सार्वजनीन होगा उसका निजी और व्यक्तिगत जीवन उतना ही सिकुड़ता जायेगा। नरेन्द्र मोदी की पत्नी जसोदाबेन इसका ताजा उदाहरण है। जसोदाबेन पिछले पैंतालीस सालों से अपना जीवनयापन धार लिए गये सुकून के साथ कर रहीं थी। तब भी जब पिछले कुछ समय से उनकी पहचान उजागर कर दी गई। लेकिन जैसे ही नरेन्द्र मोदी ने उन्हें अधिकृत तौर पर पत्नी माना उनका जैसा-तैसा सुकून भी छिन गया। दो दिनों से उनके गायब होने और किसी आश्रम में छुपाए जाने का समाचार आने लगा, हो सकता है जसोदाबेन को गुपचुप तरीके से ही वापस उनकी ठौर पर तत्काल पहुंचाया जा सकता है ताकि खुल गये इस भेद को खारिज किया जा सके।
नरेन्द्र मोदी जो अपने को देश के लिए एकमात्र आशा की किरण के रूप में स्थापित करने में लगे हैं, खुद वे जसोदाबेन, युवती की जासूसी और 2002 के गुजरात नरसंहार जैसे 'निजी' और अन्य कई प्रश्नों से रू-बरू ही नहीं होते जिनके जवाब देने की सर्वाधिक जिम्मेदारी खुद उनकी बनती है। उनके प्रवक्ता जो प्रकारान्तर से भाजपा के प्रवक्ता और आकळ-बाकळ होते रहते हैं। इन सब से परेशान अरुण जेटली अपरोक्ष रूप से भद्दा प्रस्ताव करने से भी नहीं चूकते कि कुछ मुद्दे तय कर दो जिन पर हम एक-दूसरे को नंगा न करें, जनता इस बार लूट का अवसर हमें दे रही है्। इसलिए आप चुप रहें आगे कभी आपको दे रही होगी तो हम भी चुप्पी साध लेंगे।
देश का मतदाता और जनता मासूम तो है इसीलिए ऐसे नेताओं को अवसर देती है, पर अब तो ये नेता जनता को बेवकूफ भी समझने लगे हैं। जनता और मतदाता जब तक एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में शिक्षित नहीं होंगे तब तक इन पार्टियों का 'उतर भीखा म्हारी बारीÓ का यह खेल चलता रहेगा और आम-आवाम की जिन्दगी बद से बदतर होती जायेगी।
24 अप्रेल, 2014
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