Friday, April 18, 2014

मोदीनिष्ठ, संघी, भाजपाई और अरविन्द केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल आज अल सवेरे जब वाराणसी के चौक इलाके में पहुंचे तो मोदी समर्थकों ने आज फिर घेर कर हुड़दंग मचाया और उनके जनसम्पर्क अभियान में बाधाएं डाली। केजरीवाल कल भी जब लंका इलाके में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पास जनसम्पर्क के लिए पहुंचे तब भी मोदी समर्थकों ने ऐसा ही किया। केजरीवाल की जवाबी कार्यवाही में उन पर फूल बरसाए गए। वाराणसी भाजपा के 'पीएम इन वेटिंग' नरेन्द्र मोदी का दूसरा चुनावी क्षेत्र है, मोदी ने गुजरात की बड़ोदा लोकसभा सीट से भी नामांकन भरा है। मोदी समर्थकों को अपने इस अनुकूल समय की सबसे बड़ी परेशानी यह लग रही है कि कांग्रेस से धायी-धापी जनता जब विकल्प के रूप में भाजपा को ही चुनने पर मजबूर है तब यह 'आम आदमी पार्टी' कहां से टपक पड़ी। अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही चरित्रों के विकल्प के रूप में केवल स्थापित हुए बल्कि केजरीवाल ने लगभग अजेय मान ली गई शीला दीक्षित को लम्बे अन्तर से हरा भी दिया। मोदी समर्थकों को यही भय सता रहा है कि कहीं वाराणसी में भी इसका जादू चल गया तो अपने को देश का अगला प्रधानमंत्री मान चुके हमारे नेता की मिट्टी पलीद हो जाएगी।
इन चुनावों में कई 'नवाचार' हुए हैं, हर बार होते हैं। पर इस बार गिरावटी नवाचारों को मोदी समर्थक जिस तरह अपना रहे हैं उससे माहौल अच्छा नहीं खराब ही होना है। इस चुनाव अभियान में अरविन्द केजरीवाल को तिरस्कृत और अपमानित करने की कई घटनाएं हुई हैं। इस तरह की बदमजगियों को महिमामंडित करने की भूल आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ने भी की है-पी. चिदम्बरम पर जूता फेंकने वाले व्यक्ति को लोकसभा का उम्मीदवार बना कर, केजरीवाल के पास इसका कोई जवाब नहीं है।
भाजपा में या कहें संघ परिवार में सत्ता के अब तक दो केन्द्र रहे हैं और थोड़ी-बहुत नूरा-कुश्ती के बाद दबदबा संघ का ही रहता आया है। अपवादस्वरूप अटलबिहारी वाजपेयी रहे, जो संघ की परवाह एक हद तक ही करते थे। लेकिन अब संघ परिवार में मोदीनिष्ठों की एक इकाई ऐसी विकसित हो रही है जिसे संघ से लगाव है और ही भाजपा की परवाह। इन लोगों का पावरहाउस सीधे मोदी हैं, ये मोदीनिष्ठ जितने जल्दी भाजपा और संघ के लिए खुल्लम-खुल्ला चुनौती बनेंगे उतना ही संघ और भाजपा दोनों के लिए उचित रहेगा। ये विस्तार खा गये तो संघ और भाजपा दोनों की हैसियत पिद्दी से ज्यादा की नहीं स्वीकारेंगे। गुजरात की पार्टी इकाई और संघ संगठन की दशा का अध्ययन करके इसे समझा जा सकता है।
केजरीवाल के साथ वाराणसी में जो कुछ हो रहा है, वह सब इन्हीं मोदीनिष्ठों की रणनीति का ही एक हिस्सा है कि इसकी इतनी अवमानना कर दो कि आम-आवाम उसे गम्भीरता से ले ही नहीं। केजरीवाल का अपना कोई धर्म समूह है और ही प्रभावी जातीय समूह। वे उसी वैश्य समुदाय से आते हैं जिसका झुकाव सामान्यत: हमेशा भाजपा की तरफ रहता रहा है। सामान्य कैबत भी है कि वैश्य समाज विवाद और तनाव में इसलिए नहीं पड़ता कि उससे उनके व्यापार-उद्योग में व्यवधान पड़ेगा। बनी बनाई इसी धारणा के चलते केजरीवाल सॉफ्ट टारगेट बने हुए हैं। अन्यथा वाराणसी में इकट्ठी हुई मोदीनिष्ठों की भीड़ कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों की ओर आंख उठाकर देखने की भी हिमाकत नहीं करती। हो सकता है अरविन्द केजरीवाल वोट लेने में इन तीनों पार्टियों के उम्मीदवारों से वहां उन्नीस पड़ें। मोदीनिष्ठों की रणनीति का एक मकसद यह भी हो सकता है कि केजरीवाल के कार्यकर्ता उनसे भिड़ जायं। इसके उन्हें दो लाभ हो सकते हैं, एक तो जनता में सन्देश यह जायेगा कि ये आम आदमी पार्टी वाले भी उन जैसे ही हैं- दूसरा 'पार्टी विद डिफरेंस' का जो टैग भाजपा ने अब तक अपने सीने पर लगा रखा था और जो पिछले कुछ वर्षों से खुद के लखणों से ही उतर गया है, 'आम आदमी पार्टी' वालों के सीने पर उस टैग के लगने की संभावना समाप्त हो जायेगी।
आम आदमी पार्टी, अरविन्द केजरीवाल और इसके पितृ पुरुष अन्ना हजारे की सीमाओं का जिक्र 'विनायक' ने पहले एक से अधिक बार इसी कालम में किया है। इसलिए संघी, भाजपाई और मोदीनिष्ठ इस बात से अपना पेट दुखाएं कि 'आप' पार्टी को कोई सर्टिफिकेट दिया जा रहा है। इस आलेख का मकसद आईना संघ और भाजपा को दिखाना है, रही बात कांग्रेस की, सो वह तो फिलहाल आईने में खुद की शक्ल ही ढूंढ़ रही है।

18 अप्रेल, 2014

No comments: