Monday, April 21, 2014

चकर-घिन्नी पर चौखूंटी की पुलिया

चुनावी अधिसूचना के जारी होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है, स्थानीय हिन्दू संस्कारविधि में जिस प्रकार चतुर्मास या मल मास लगने पर शुभकार्यों पर वर्जनाएं प्रभावी होती हैं वैसे ही आचार संहिता के दौरान कुछ प्रशासनिक निर्णयों पर वर्जनाएं प्रभावी हो जाती हैं। बीकानेर शहर की बड़ी समस्या शहर के बीच से गुजरती रेल पटरियों के फाटक हैं जिन्हें रेलगाडिय़ों के आवागमन के समय बन्द किया जाता है। रेल की पटरियों और सड़कों के फिलहाल ऐसे संगम पांच माने गये हैं जो शहर के सड़क यातायात में बड़े बाधक हैं। ज्यों-ज्यों शहर बढ़ेगा इनकी संख्याए बढ़ेगी ही। पांच में से रानीबाजार और गजनेर रोड के ऐसे संगमों पर ऊपरी पुलिया बन गये हैं, चौखूंटी का ऊपरी पुलिया बन कर तैयार है, जिसे खोलने का मुहूर्त आचार संहिता के प्रशासनिक 'मल मास' उतर जाने के बाद ही संभवत: निकाला जा सकेगा।
आचार संहिता का कोई विरोध नहीं है, अच्छे मकसद से इसे प्रभावी बनाए रखना जरूरी भी है। इसी सत्तरह को बीकानेर क्षेत्र में मतदान हुआ, 16 मई तक परिणाम आने हैं, उसके बाद ही इसे हटाया जाएगा। लेकिन यातायात की घोर अव्यवस्थाओं के अभ्यस्त हो चुके इस शहर को किसी भी बहाने कुछ राहत मिलती हो तो इसके लिए कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए। बल पड़ते जाली-झरोखों का लिखित प्रावधान जब सामन्ती राज में ही था तो अब किस बिना पर शहर के इन रास्तों का उपयोग करने वालों को वंचित रखना उचित है। यह भी तब जब यह माना जा रहा है कि इस पुलिया पर यातायात शुरू होता है तो शहर के सबसे ज्यादा समस्याग्रस्त कोटगेट और सांखला फाटक की भीड़ तीस प्रतिशत कम हो जायेगी। कहने को स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रदेश के निर्वाचन विभाग को इस चौखूंटी पुलिया पर यातायात शुरू करने के इजाजती प्रस्ताव भेजे एक पखवाड़े से ज्यादा का समय हो गया, लेकिन लगता नहीं है कि कहीं से कोई सकारात्मक जवाब आया है। हो यह भी सकता है कि यदि स्वीकृति आनी भी हो तो नई सत्ताधारी पार्टी की रुचि इसमें ज्यादा हो कि इस पुलिया पर उद्घाटन का भाटा वे अपने नेता के नाम का लगवायें। शायद इसलिए प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के शहरी लोगों ने इस चौखूंटी पुलिया को शुरू करवाने की बात पर अपने को सांप सुंघवा दिया है-लेकिन ऐसा तो फिर भी हो सकता है, गजनेर रोड पुलिया के समय ऐसा ही हुआ था, यातायात पहले शुरू हो गया था, जब तब के मुख्यमंत्री को आना था, तब झाड़-फूंक कर टीका-टमका कर उनके हाथों भाटा लगवा ही लिया था न।
खैर, इन राजनेताओं के चाल और चलन संदिग्ध ही होते हैं चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। शहर से विधायकद्वय गोपाल जोशी और सिद्धीकुमारी पहले भी विधायक थे, अब भी हैं। इन्होंने शहर की इन समस्याओं पर कभी सकारात्मक पहल की हो, याद नहीं पड़ता। कांग्रेस के बीडी कल्ला के पेन में जनता ने 2008 के चुनावों में स्याही भरी नहीं, सो कुछ कर पाने का इन्हें बहाना मिल गया। वैसे भी 1980 से पांच बार नुमाइंदगी करके कौनसा धन-धन कर दिया। हालांकि कांग्रेस की सरकार ने नगर विकास न्यास के अध्यक्ष पद पर मकसूद अहमद को लगा कर कल्ला के पेन को हरा करने की कोशिश की थी पर कल्ला ने पता नहीं उस पेन को कहां-कैसे काम लिया कि पिछले विधानसभा चुनावों में खुद के ही काम नहीं आया।
चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने शहर अध्यक्ष पद पर नन्दकिशोर सोलंकी को लगाया। चुनावी व्यस्तता के चलते मान लेते हैं कि वे अस्त-व्यस्त शहरी यातायात और चौखूंटी पुलिया पर अपना मंतव्य नहीं दे पाएं हों, पर अब तो थकान उनकी भी उतर गई होगी।
कांग्रेस के शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत और पिछले चुनाव में बीकानेर (पूर्व) से उम्मीदवार रहे गोपाल गहलोत कुछ मौजिज कांग्रेसियों के साथ 8 अप्रेल को जब चौखूंटी क्षेत्र में जनसम्पर्क पर थे तो लोगों की परेशानियां सुन 'भैरूं' बन गये और आव देखा ताव नवनिर्मित चौखूंटी पुलिया पर बळों की बाधाएं हटा कर यातायात चालू करवा दिया। भाजपाइयों को यह नागवार लगा और उन्होंने केवल प्रशासन में हड़कम्प ला दिया बल्कि सम्बन्धित ठेका कम्पनी इरकॉन के तकनीकी अधिकारी को भी हाऊ-जूजू कर दिया। प्रशासन ने तुरत-फुरत पुलिये पर अवरोध वापस लगवाए और उन कांग्रेसियों पर धारा 144 के तहत मुकदमा दर्ज करवाया जिन्होंने जनता के हित में इस काम को अनधिकृत तौर पर अंजाम दिया। जिन सम्बन्धित तकनीकी अधिकारी के नाम से इस घटना से एक सप्ताह पूर्व मीडिया में यह बयान जारी हुआ था कि पुलिया यातायात के लिए तैयार है और खोला जा सकता है-संकेतकों का थोड़ा काम बाकी है जिसे रात्रि में करवाया जा सकता है-उन्हीं के हवाले से 9 अप्रेल को दूसरा बयान आया कि इस पुलिया पर अभी सुरक्षा सम्बन्धी काम बकाया हैं। इसलिए यातायात की इजाजत नहीं दी जा सकती। जनता समझ गई होगी कि उनकी सुविधा के मसले को किस तरह चकर-घिन्नी में चढ़ाया जाता है। यह जनता फिर भी नहीं बोलती-नहीं बोलोगे तो भुगतेगी भी, भुगतते रहो।

21 अप्रेल, 2014

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