Wednesday, August 24, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-16

 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में गिरफ्तार नेता देशभर की जेलों में बंद थे। अंग्रेजों को लग गया कि कांग्रेस अपने इस आन्दोलन को वापस लेने वाली नहीं है। जून 1943 . में सभी नेताओं को बिना शर्त छोड़ दिया गया, जिसका दबाव रियासतों पर पड़ा तो सहीलेकिन वे ऐंठी रही।

रियासत के चूरू में दूधवाखारा का किसान आन्दोलन प्रजा परिषद् के मेल से आजादी का आंदोलन बनने की अंगड़ाई लेने लगा। दूधवाखारा की जिस प्रशासनिक क्रूरता की ओर महाराजा आंखें मूंदे थे, वह बहुत निर्दयतापूर्ण था। दरअसल दूधवाखारा के जागीरदार की मौत के बाद उनके तीनों बेटे वारिस बन बैठे। इतना ही नहीं, किसानों से लगान वसूली समांतर तीनों करने लगे। इस तरह लगान देने पर किसानों के पास कुछ बचता ही नहीं। लगान नहीं देने पर खेती की जमीनें जप्त कर हाथों-हाथ नीलाम की जाने लगी। वणिक समुदाय के कुछ धनाढ्यों ने इसका लाभ उठाना शुरू किया और निलामी में खरीद कर हाथों हाथ चारदीवारी करवा ली, ऐसी चार दीवारियां, क्षेत्र में आज भी मिल जायेंगी। सादुलसिंह द्वारा दूधवाखारा के इस असंतोष से आंखें मूंदने की वजह तीन वारिस में से एक सूरजमालसिंह का खासमखास होना दिख तो रहा थालेकिन महाराजा सादुलसिंह क्रूर और कामी सूरजमालसिंह से इतना दबते क्यों थे, ये किसी को समझ नहीं आया। इस अनुकूलता का लाभ लेने से गृहमंत्री प्रतापसिंह कहां चूकने वाले थे। उन्होंने दूधवाखारा के किसानों को दबाने की सभी करतूतें कीं उनके नेता हनुमानसिंह को अज्ञात स्थान पर नजरबन्द आचार्य और कौशिक को दी गई जैसी ही यातनाएं दी। आखिर हनुमानसिंह से भी माफीनामा लिखा लिया।

इन क्रूरताओं की सभी खबरें अखबारों के माध्यम से देशभर में पहुंच ही रही थी। जिसके मुख्य सूत्रधार थे मूलचंद पारीक, जो भोले बनकर बड़ी सावधानी से खबरें इक_ करते और गंतव्य तक पहुंचाते। दूधवाखारा में हो रहे अन्याय की खबरें भी देश भर में पहुंची। अखबारों में छपने वाली इन खबरों से गृहमंत्री प्रतापसिंह का पारा और चढ़ता जाता। उधर महाराजा सादुलसिंह केवल व्यवहार में बल्कि बात भी दो-मुंही करने वाले साबित हुवे। अपनी जबान की कीमत खुद ही खोते जा रहे थे। असहाय हुवे रियासत के प्रधानमंत्री पणिकर अपने को गृहमंत्री प्रतापसिंह के आगे बेबस पा रहे थे।

गोईल और उनके साथियों की अनुपस्थिति में वैद्य मघाराम अपने पुत्र रामनारायण के साथ पिछले निर्वासन को भूलकर केवल सक्रिय थे बल्कि रियासत के माधोसिंह जैसे अन्यों को भी सक्रिय किये हुवे थे। वे दूधवाखारा के किसानों की हिम्मत बंधवाने तक पहुंच जाते। जोधपुर रियासत के सहयोगी जयनारायण व्यास के माध्यम से दूधवाखारा के किसानों पर जुल्म की खबर 'हिन्दुस्तान टाइम्स' तक पहुंचाई। जिसे उसने विस्तार से छापा भी। इन सेनानियों की एक-एक खबर चाक-चौबन्द सीआईडी के माध्यम से गृहमंत्री तक पहुंचती। इनमें से रियासत से कोई बाहर भी गया है तो उसकी मिनट-मिनट की खबर से प्रतापसिंह वाकिफ रहते। दूधवाखारा के किसानों पर जुल्म इतने संगीन थे कि सैकड़ों की संख्या में उन्हें दो बार माउण्ट आबू और एक से अधिक बार बीकानेर आकर महाराजा से रहम चाहा, लेकिन महाराजा सादुलसिंह उन्हें उदारता से आश्वस्त तो करते, लेकिन करते कुछ भी नहीं।

किसी प्रलोभन और यातना से टूटने और कोर्ट में उनकी अपील के मद्देनजर इस बार पब्लिक सेफ्टी (अंग्रेजी कानून) के अन्तर्गत 11 जून, 1945 . को रघुवर दयाल गोईल को रियासत से पुन: निष्कासित कर पुलिस द्वारा बठिंडा तक खदेड़ दिया गया, पर गोईल कहां शान्त बैठने वाले थे। दूसरे ही दिन वे दिल्ली पहुंच हिंदी और अंग्रेसी अखबारों के संपादकों से मिले। उनकी बातों के आधार पर अखबारों ने खबरें लगाई।

22 जुलाई, 1942 . को प्रजा परिषद् की स्थापना हुई। 6 जुलाई, 1945 . बीकानेर के लिए 'किसान दिवसÓ के तौर पर दूसरा महत्त्वपूर्ण दिवस हो गया। दूधवाखारा और रियासत के अन्य छिटपुट आंदोलन और प्रजा परिषद् का आंदोलन एक-मेक हो गये। 6 जुलाई को वैद्य मघाराम और उनके पुत्र रामनारायण के नेतृत्व में जस्सूसर गेट क्षेत्र में जुलूस निकला। धोखे से नजरबन्द किये गये किसान नेता हनुमानसिंह चौधरी जिन्दाबाद के नारे जुलूस में लगाए जा रहे थे। पुलिस ने लाठीचार्ज कियाविशेषकर मघाराम, रामनारायण को सड़क पर ही बुरी तरह पीटा। आन्दोलनकारियों के फूट डालने के मकसद से उन सभी को गिरफ्तार कर सिर्फ 41 को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार नेताओं में मघाराम को गिराई (पुलिस लाइन) और चंपालाल उपाध्याय, श्रीराम आचार्य, मुल्तानचन्द दर्जी, किशनगोपाल गुट्टड़ और चिरंजीलाल सुनार को शहर कोतवाली की हवालात में बन्द कर दिया। जज ने भी इन सेनानियों की सुनवाई करते हुए सभी को 16 दिन के रिमाण्ड पर अलग-अलग थानों में भेज दिया और इन पर, विशेष कर मघाराम पर जुल्म ढाये जाने लगे। बाद में इन सभी को सदर जेल भेजकर काल कोठरियों में बन्द कर दिया गया।

30 जून, 1945 . को शिमला में वाइसराय लार्ड वेवल और भारतीय नेताओं में भारतीय राजनीतिक गुत्थी सुलझाने के लिए सम्मेलन आहूत था। इसलिए अंग्रेज हुकूमत की ओर से सभी रियासतों के पोस्ट मास्टरों को आदेश दिया गया था कि सम्मेलन के दौरान शिमला की डाक और तार रोके जाए।

दीपचंद सांखला

25 अगस्त, 2022

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