Thursday, August 4, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-13

 गोईल को शाम को लालगढ़ स्टेशन ले जाया गया। वहीं गिरफ्तार हुए गंगादास कौशिक और दाऊदयाल आचार्य भी मिल गये। तीनों ने अपनी-अपनी गिरफ्तारी पर बात की, कौशिक को खादी मन्दिर से और आचार्य को कोर्ट से उठाया गया था। रात में आई बठिंडा वाली गाड़ी में पुलिस वालों ने तीनों को चढ़ा दिया। गोईल को लूनकरणसर में उतार दिया गया, उन्होंने अनिश्चित भविष्य के साथ दोनों से विदाई ली। कौशिक और आचार्य को सूरतगढ़ में उतारा गया। पुलिस वालों ने इतना ही बताया कि आप दोनों को सूरतगढ़ पुलिस को सौंपना है। दोनों दो दिन सूरतगढ़ हवालात में रहे। वे समझ गये कि बीकानेर रियासत के 'कालापानी' अनूपगढ़ भेजा जा रहा है। सप्ताह में चलने वाली एक गाड़ी से दोनों को अनूपगढ़ भेज दिया गया। अनूपगढ़ तहसील दफ्तर से कुछ दूरी पर स्थित किले में दोनों को ले जाया गया जहां कौशिक को कुछ ठीक कमरे में तो आचार्य को बुर्ज पर स्थित कोठड़ी में रहने को कहा। कोठड़ी की सीढिय़ां सामान्य से डबल ऊंचाई की थीं। कोठड़ी में कबाड़ के साथ चमगादड़ों का निवास था। बदबूदार कोठड़ी में कबाड़ को खिसका कर उन्होंने थोड़ी जगह बनाई। इतने में नीचे से आवाज आई कि राशन ले लो। राशन में आटा, दाल, नमक और माचिस ही दिया गया। जिन्दगी में कभी रोटियां नहीं बनाने वाले को ऐसे कमरे के बाद दूसरा झटका यह लगा कि खाना भी खुद को ही बनाना है।

जैसे-तैसे कुछ बनाया जला-अध-कच्चा खाया। पानी लेने उन्हीं सीढिय़ों से जाना और आना यह सब बीकानेर जेल की कोठरी से कई गुना असहनीय था। अनियमित खाना, चमगादड़ और मच्छरों की संगत में पेट और देह, दोनों जवाब देने लगे। मां और बहनोई मिलने आए लेकिन दूर से ही देख गये। सर्दियां शुरू हो गईं। बिछाने को पहले ही नहीं था, ओढऩे को भी नहीं दिया गया। शरीर निढ़ाल होता जा रहा था। शरीर पर सोजन, बुखार, खांसी। पेट ने साथ देना बन्द कर दिया। साथी कौशिक कभी दिखे नहीं। आचार्य टूटने लगे। राज को पत्र लिखने के लिए कागज-कलम मांगा तो इस शर्त पर मिले कि पत्र खुले लिफाफे में हो। आचार्य ने पूरी व्यथा लिखी, घर की स्थितियां लिखीं और सफाई दी कि हम वही कर रहे थे, जिसकी छूट थी। इस पत्र के एक सप्ताह बाद गृह विभाग का एक अधिकारी आया और आचार्य की शारीरिक जर्जरता देखकर बोला कि इतने लम्बे-चौड़े पत्रों से कुछ नहीं होगा। चार लाइनों का मजमून लिखकर लाया हूं। उसे अपने हाथ से लिख हस्ताक्षर कर दें। मजमून में सीधे माफी मांगी गई और भविष्य में कुछ भी करने का आश्वासन। साथ ही ये धमकी कि इसे लिखकर हस्ताक्षर कर दें अन्यथा पछताओगे। आचार्य ने ऐसा नहीं किया। एक दिन बेहोशी में बीकानेर अस्पताल लाकर साइड रूम में भर्ती करवा दिया। घरवालों को सूचना मिली तो आने-जाने लगे। घर वालों के भावनात्मक दबाव से आचार्य टूट गये और लिख दिया माफीनामा, जिसकी ग्लानी आजादी मिलने तक ही नहीं, जिए तब तक आचार्य को रही। 

आचार्य छूट गये तो शासन का दबाव कौशिक और गोईल पर बढ़ा। कौशिक को सामान्य कमरे से उसी बुर्ज वाली कोठरी में भेज दिया जिसमें आचार्य थे। उसी तरह से रहने को। कौशिक सभी स्थितियों को झेल कर भी डटे रहे।

लूनकरणसर में गोईल पर शिकंजा कसता गया। चिट्ठी-पत्री, मिलने-जुलने की छूट खत्म कर दी गयी। ऐसे निष्कासन में वकालती आजीविका भी कमजोर पड़ गयी। लेकिन इन सब स्थितियों की जानकारी अखबारों तक, आसपास के नेताओं तक पहुंचती रही। मूलचंद पारीक जैसा निर्भय कार्यकर्ता गोईल को मुंशी के रूप में मिल गया जो गोईल के निजी वकालत और देश के कामों को बहुत ही चतुराई से अंजाम देता था। 

मूलचंद पारीक, वैद्य मघाराम, दाऊदयाल तथा अन्यों के साथ जोधपुर, जयपुर तक के सेनानियों से सम्पर्क कर आते थे। यह सब उन्होंने भोले बने रहकर लगातार और सावधानीपूर्वक किया। मूलचन्द पारीक का प्रशिक्षण कलकत्ता में उनकी स्कूली पढ़ाई के दौरान सुभाषचन्द्र बोस के फारवर्ड ब्लॉक के आन्दोलनों से हुआ था। यहां आए तो प्रजा परिषद् के संस्थापकों में से एक रावतमल पारीक जैसों का पीठ पर हाथ मिल गया। दाऊदयाल आचार्य छूटकर अरजीनवीसी में पुन: लग गये। ऐसे में प्रजा परिषद् के सन्देशों को 'अटक से कटक' और 'कश्मीर से कन्याकुमारी' तक, यानी सारे भारतवर्ष में पहुंचाने वाले गुप्तदूत के तौर पर मूलचन्द पारीक प्रसिद्ध हुए। मूलचन्द पारीक, दाऊदयाल आचार्य के साथ भी गोपनीयता बरतते हुए लगातार सम्पर्क में रहे और मार्गदर्शन लेते रहे।

उधर लूनकरणसर में सख्तियां ज्यादा लागू होने के बाद गोईल ने अपने परिवार को भी वहीं बुला लिया। सभी तरह की सख्तियों के होते हुए भी लूनकरणसर के तातेड़ उपनाम के परचून व्यापारी ने पुलिस वालों के साथ क्या गोटियां बिठाई कि वह कैसे--कैसे नजरबन्द गोईल की हर जरूरत स्वयं पूरी कर देते। ये तातेड़ बीकानेर के पान पत्ते के थोक व्यापारी बन्धु तोलाराम भैराराम सुराणा के रिश्तेदार थे। गोईल की लूनकरणसर में नजरबन्दी के बाद ये सुराणा बन्धु गोईल से विशेष तौर पर मिलने गये और सहयोग करने का प्रस्ताव दिया। चूंकि महाराजा को भनक लगते ही शहर के सेठ खुशालचन्द डागा, सेठ नरसिंहदास डागा, सेठ बद्रीप्रसाद डागा और सेठ रामगोपाल मोहता जैसे बड़े सेठों को लालगढ़ बुलाकर स्वतंत्रता सेनानियों को किसी भी तरह के सहयोग करने पर चेतावनी दे दी गई थी, इसीलिए सुराणा बन्धुओं ने बीकानेर में गोईल के परिजनों को और लूनकरणसर में खुद उनके लिए गुप्त तौर पर ही करने की मंशा जाहिर की। सुराणा बन्धु का झुकाव गोईल की तरफ तब से था जब बाहर से आने वाले उनके माल पर शासन कर्मचारी उनसे अवैध वसूली करने की फिराक में रहते थे, तब गोईल ने ही उनसे भिड़ने का हौसला दिया था।   क्रमश...

दीपचंद सांखला

4 अगस्त, 2022

No comments: