'सन् 1942 के बाद विद्यार्थी वर्ग अपने अभिभावकों के काबू में नहीं रहे हैं और बीकानेर के ही अनेक उच्चपदस्थ अधिकारियों के बच्चों ने उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सरकारी वजीफे पर शिक्षा पाते हुए भी आंदोलन में भाग लिया वह सर्वविदित है। इसीलिए मेरा कोई कुसूर हो तो सरकार मुझे बताए, मैं अपने आप को ठीक कर सकता हूं। कानून अपना काम करे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।'
नागौर सम्मेलन के बाद दामोदर सिंघल ने बीकानेर आने की कोशिश की, लेकिन नोखा पुलिस को मौखिक आदेश देकर चौकस कर दिया गया था। नागौर सम्मेलन की जो बात विशेष उल्लेखनीय है, वह यह है कि आजादी के आंदोलन के सेनानी जोधपुर के जयनारायण व्यास का अपनी सूचनाओं के आधार पर बीकानेर के संभागियों को अच्छे से इस तरह हड़काना :
'आपके यहां मजबूत संगठन जैसी कोई चीज नहीं है तो आप सरकार से संघर्ष करने की तो कल्पना ही नहीं कर सकते। मजबूत संगठन का निर्माण तब तक नहीं हो सकता जब तक उसे आम जनता का सहयोग प्राप्त न हो और जनता का सहयोग तब तक नहीं मिलता जब तक आप उसकी सेवा न करो, उसके दुख-दर्द में हिस्सेदार न बनो, रचनात्मक कार्य न करो और उनके अभाव-अभियोगों को मिटाने में जी-जान से न लग जाओ। गोईल और उनके साथी गत अगस्त से नजरबंद कर दिये गये, आप लोग बताएं कि इन 8-10 महीनों में आपने क्या किया?' व्यास द्वारा इस तरह हड़काने पर बीकानेर के प्रतिनिधि निरुत्तर थे। (आज के राजनीतिक कार्यकर्ता जयनारायण व्यास की इन बातों को अमल में ला सकते हैं)
बीकानेर के कार्यकर्ताओं की नागौर सम्मेलन की एक और उपलब्धि थी, गंगानगर क्षेत्र के रिवाड़ी मूल के अहीर राव माधोसिंह जैसे कार्यकर्ता का जुड़ना वापसी में गंगानगर जाते हुए वे कई दिन बीकानेर स्थित वैद्य मघाराम के घर रहे और बाद में अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय होने की ऊर्जा से भरपूर होकर गये। 13 मई को वैद्य मघाराम भी गंगानगर पहुंच गये। गंगानगर में माधोसिंह के साथ जो लोग जुड़े और सक्रिय हुए उनमें हरिशचन्द्र दर्जी, वैद्य जीवनदत्त, हंसराज लोहिया, चौधरी ज्ञानीराम वकील, चौधरी हरिशचन्द वकील, माधोसिंह और जीवनदत्त वैद्य ने मिलकर प्रजा परिषद् की गंगानगर शाखा स्थापित की। बाद में 4 डब्ल्यू के सरदार तारासिंह और चक 10 डब्ल्यू के कालासिंह, इन्दरसिंह व छविसिंह इनसे जुड़ गये।
चूरू जिले के दूधवाखारा में किसानों पर जागीरदार के अत्याचार लगातार बढ़ रहे थे जिसके चलते वहां के किसान उद्वेलित होने लगे। किसानों का एक बड़ा समूह अपने बीवी-बच्चों को लेकर बीकानेर भी आया ताकि अपनी व्यथा से महाराजा को वाकिफ करवा सके। गर्मियों में महाराजा माउंट आबू चले जाते थे। यहां के अधिकारियों ने किसानों के उस समूह को कह दिया कि आपको अपनी बात महाराजा तक पहुंचानी है तो आबू जाना होगा। किसानों का वह समूह माउंट आबू तक भी गया। लेकिन जाने से पूर्व किसानों ने प्रजा परिषद् से सहयोग करने का अनुरोध कर दिया।
वैद्य मघाराम अपने पुत्र रामनारायण बधुड़ा सहित दूधवाखारा पहुंच गये, मघाराम के बुलावे पर गंगानगर से माधोसिंह भी दूधवाखारा पहुंचे और वहां के आन्दोलन को हर तरह के सहयोग देने का आश्वासन दिया।
माधोसिंह की गंगानगर में सक्रियता से रियासत का गृह मंत्रालय परेशान हो गया। खुद गृहमंत्री प्रतापसिंह गंगानगर पहुंचे और परिषद् को तोडऩे की कोशिशें कीं। डराया-धमकाया, प्रलोभन दिये, पर माधोसिंह दृढ़ रहे। 27 जुलाई, 1945 को माधोसिंह को रियासत छोडऩे का आदेश दिया, जिसे मानने से माधोसिंह ने इनकार कर दिया। पत्नी के बीमार होते हुए भी माधोसिंह को जबरदस्ती बठिंडा पहुंचा दिया गया। राज के डर के कारण पत्नी को कोई परिचित संभालने नहीं जाते। लूनकरणसर की नजरबंदी में रघुवरदयाल गोईल बीमार, पत्नी-बच्चे बीमार लेकिन न इलाज की व्यवस्था न ही आजीविका की। ऐसे में मौका पाकर शासन ने गोईल को खरीदने का दुस्साहस किया। सरदारशहर के नेमीचन्द आंचलिया और बीकानेर के वकील ईश्वरदयाल गर्ग के माध्यम से प्रस्ताव भेजा कि आपको खादी के काम के लिए 5 लाख रु. दिये जायेंगे जिन्हें लौटाने नहीं होगे। शर्त यही है कि वे नागरिक अधिकारों की मांग छोड़ दें। इस पर गोईल ने बिचौलियों पर नाराज होते हुए गृहमंत्री को जो कहलवाया, वह इस प्रकार है—
'प्रज्ञा परिषद् का अध्यक्ष तो क्या कोई छोटे-से-छोटा कार्यकर्ता सिपाही भी चांदी के टुकड़ों में अपने आपको और राष्ट्र-कार्य को बेचने को कभी तैयार नहीं होगा। आइन्दा फिर कभी सच्चे देशभक्तों को खरीदने से बाज आवें। देशभक्तों की बलि राष्ट्र की बलिवेदी पर गृहमंत्री महोदय चढ़ा देना चाहे तो चढ़ावे, पर आइन्दा फिर कभी चांदी के टुकड़ों में खरीदने की कल्पना ही न करें।'
महाराजा और प्रधानमंत्री को भेजे अनेक पत्रों में से किसी का भी उत्तर न मिलने पर गोईल ने न्यायालय की शरण में जाना तय किया और बंदी प्रत्यक्षीकरण की दरख्वास्त 15 मई, 1945 को प्रधानमंत्री की मार्फत भिजवा दी जिसमें अब तक उनके और उनके परिवार के साथ किये जाने वाले गैर कानूनी और दमनकारी व्यवहार की पूरी विगत दी।
अनूपगढ़ में नजरबन्द गंगादास कौशिक को उसी तरह की यातनाएं दी जाने लगी जैसी दाऊदयाल आचार्य को दी गई। माफीनामे का वैसा ही मजमून लिखकर हस्ताक्षर करवाने को दिया गया जैसा आचार्य को दिया गया। जर्जर हुई काया लिए कौशिक टस-से-मस नहीं हुए। रामपुरिया विद्यालय में नवीं कक्षा में अध्ययनरत गंगादास कौशिक के पुत्र द्वारका ने कक्षा की हाजिरी में 'हाजिर' के स्थान पर जोर से जयहिन्द बोल दिया। भयभीत हेड मास्टर ने स्कूल छोड़ तत्काल जाकर राज में शिकायत की। शाम तक द्वारका को स्कूल से निष्कासित कर दिया गया। 'जयहिन्द' का यह अभिवादन रियासत के विद्यार्थियों में आम होने लगा था। क्रमश...
—दीपचंद सांखला
18 अगस्त, 2022
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